प्रेस कांफ्रेंस में लूट मचाने वाले पत्रकारों पर क़ाबू करने की जरूरत

लखनऊ । भारतीय जनता पार्टी द्बारा आज मंगलवार को पत्रकारों को आम पार्टी पत्रकार मन मिलन कार्यक्रम में दावत लखनऊ के क्लार्क्स अवध होटल में आयोजित की गयी। सीनियर पत्रकरों के अलावा बहुत से फट्टर पत्रकार भी आम पार्टी में पहुंच गये। क्यों कि आमंत्रण पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो गया था इसलिए आम और ख़ास पत्रकारों के साथ फट्टर पत्रकारों के झुंड के झुंड भाजपा की आम की दावत मे पंहुच गये।
पार्टी में भाजपा के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौया,कानून मंत्री बृजेश पाठक, ऊर्जा मंत्री श्री कांत शर्मा आदि बीजेपी के बड़े नेता भी शामिल हुए थ्ो। पत्रकारों के साथ भाजपा के भारी संख्या में कार्यकर्ताओं भी मौजूद थ्ो। आम खाने के बाद पत्रकारों को जब आम की बारी आई तो लोगों की भीड़ काफी संख्या में एकत्र हो गई, जिसमें भाजापा के कार्यकताã भी मौजूद थ्ो। बड़ेअखबारों के बहुत कर्मचारी और डेस्क पर कार्य करने वाले की संख्या भी बहुत थी। इसके अलावा छोटे अखबार के कर्मचारी और पत्रकार भी मौजूद थ्ो। कुछ गलती भाजपाइयों कार्यकर्ताओं की भी थी, जो एक साथ आम के गिफ्ट बांटने लगे, कार्यकर्ताओं को जहां पर पत्रकार लोग बैठे थ्ो वहीं पर यदि गिफ्ट बांटते तो ऐसी हालत और नहीं ही पत्रकारों की बेज्जती नहीं होती ।
पत्रकार मन मिलन समारोह में आम के गिफ्ट बांटने वाले भाजपाइयों और पत्रकारों के मन ही नहीं शरीर भी मिल गये।
आम की दावत में खूब आम खाने के बाद आम के पैकेट बंटने थे। जैसे ही गिफ्ट पैकेट बंटने का सिलसिला शुरु हुआ दर्जनों पत्रकारों ने आम बांटने वालों को घेर लिया। ऐसा लपके के एक दूसरे पर गिरने लगे। पत्रकार मन मिलन कार्यक्रम में मन मिला हो या ना मिला हो पर एक दूसरे का शरीर मिल गया। पैकेट पाने की तड़प में पत्रकार एक दूसरे पर चढ़े हुए थे।
भीड़ ज्यादा थी इसलिए जो लूट पाया उसे आम का पैकेट मिल गया। जो लूटने में नाकाम हुआ वो मायूस हो गया। इसके अलावा जब कहीं प्रेस कांफे्रस होती है तो वहां पर भी लूट मच जाती है।
कुछ इज्जतदार पत्रकार ये सब देखकर शîमदा हो रहे थे। कह रहे थे यहां आकर गलती कर दी। ऐसी तमाम प्रतिक्रियाओं में लखनऊ के वरिष्ठ और सम्मानित पत्रकार अजय कुमार जी की टिप्पणी इस ख़बर के साथ सलंग्न है।
इस घटना के बाद मैंने दसवीं बार उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति से मांग की है कि पत्रकारों को बदनाम करने वाली ऐस शर्मनाके घटनाओं को खत्म करने के लिए कोई कदम उठाया जाया।
प्रेस सम्मेलनों का टाइम शेड्यूल सैट करने के उद्देश्य से तीस बरस पहले संवाददाता समिति का गठन हुआ था। तीन दशक में पत्रकारिका की सूरत बदल चुकी है। अब जरूरत इस बात की है कि प्रेस कांफ्रेंस में लूट मचाने वाले पत्रकारों पर क़ाबू करने की।