...पढ़िए क्या देशव्यापी हिसा किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा तो नही ंहै?

देशव्यापी हिसा किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा तो नही ंहै? 
प्रधानमंत्री ने नागरिकता कानून को लेकर भ्रम व भय फैलाने वालों पर जमकर हमला बोला है
मुस्लिम समाज के समझदार लोग सक्रिय हों और इस कानून को लेकर फैले भय और भ्रम को दूर करें
इस मामले में खुफिया तंत्र की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है
उत्तर प्रदेश में हिसा के जुड़े हैं तार पश्चिम बंगाल से 
सीएए पर हिसा किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं?
अकेले यूपी में ही करीब 282 पुलिसकर्मी घायल हुए है
पुलिस थानों और वाहनों को निशाना बनाया जा रहा है


आशीष वशिष्ठ


देश के अधिकतर शहरों में सीएए के विरोध में हुई हिसा तरीका और स्वरूप एक जैसा होने से ये संदेह मजबूत हो रहा है कि विरोध करने वालों को मानों इसका प्रशिक्षण दिया गया हो। कहना गलत नहीं होगा कि कश्मीर घाटी में अलगाववादी संगठनों द्बारा युवाओं को सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने के लिए जिस प्रकार से तैयार किया जाता है, वैसा ही कुछ मौजूदा हिसा में दिखाई दे रहा है। दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद, गोरखपुर, मेरठ, कानपुर, भदोही, संभल, बिजनौर अथवा अन्य कोई शहर, अचानक इतने पत्थर कहां से आ गए, ये यक्ष प्रश्न है। कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर सीधा हमला किया। इन हमलों में सैकड़ों पुलिसकर्मी बुरी तरह जख्मी हुए हैं। अकेले यूपी में ही करीब 282 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। अब तक 15 लोगों की मौत हुई है। अहमदाबाद के शाह-ए-आलम इलाके में उपद्रवियों ने हिसा का नंगा नाच किया, जिसमें डीसीपी, एसीपी, कई इंस्पेक्टरों समेत 19 पुलिसवाले जख्मी हुए। हालांकि, भीड़ में ही कुछ ऐसे युवा भी दिखे, जिन्होंने पुलिसवालों को उपद्रवियों से बचाया। 
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से लेकर देशभर में विरोध का एक जैसा पैटर्न इस हिसा पर कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं। कश्मीरी पत्थरबाजों की तरह जिस तरीके से देशभर में पत्थरबाजी, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हुई हैं, वो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किसी बड़े खतरे की चेतावनी है। जिस तरह उग्र भीड़ ने कश्मीरी पैटर्न पर पुलिसबल और मीडिया पर हमला किया है, उससे इस बात की आशंका गहरा जाती है कि प्रदर्शनकारियों की भीड़ में शरारती तत्व शामिल थे। इन्हीं शरारती तत्वों के दिशा-निर्देशन में सुनियोजित तरीके से हिसा भड़काई गई और अशांति का माहौल बनाया गया। 
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लखनऊ में हुई हिसा की प्रारंभिक जांच से पता चला है कि हिसा के तार पश्चिम बंगाल से जुड़े हैं। लखनऊ में हुई हिसा व आगजनी में राज्य की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले कोलकाता के छह लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। पुलिस ने कहा कि जब हजरतगंज इलाके में घटनास्थल से बरामद 11 मोबाइल फोन की जांच की गई तो फोन की टेक्स्ट लिस्ट बांग्ला भाषा में मिली। पुलिस कई युवाओं से पूछताछ कर रही है, जो मूल रूप से पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हैं। पुलिस महानिदेशक ने बाद में कहा भी कि लखनऊ में बाहरी लोग हिसक विरोध प्रदर्शन में शामिल थे। पुलिस हिसा के मामले में कश्मीरी कनेक्शन पर भी जांच कर रही है। अगर आगे की जांच में इन तथ्यों की पुष्टि हो जाती है तो आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से यह गंभीर मसला है। 


फिरोजाबाद में जुमे की नमाज अदा कर लौट रहे लोगों ने कई स्थानों पर उपद्रव किया। नालबंद पुलिस चौकी में आग लगा दी। कानपुर हाईवे पर कब्जा कर पुलिस पर फायरिग की गई। लखनऊ में उपद्रव के दौरान दो पुलिस चौकियां जला दी गईं। कई वाहनों को फूंक दिया गया। देशभर से उपद्रव से जुड़ी जितनी खबरें आ रही हैं, उनके मुताबिक विशेष तौर पर पुलिस थानों और वाहनों को निशाना बनाया जा रहा है। कानपुर और जबलपुर के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में जो उपद्रव हुआ उसमें कम उम्र के बच्चों को चेहरे पर रुमाल बांधकर पुलिस पर पथराव करने के लिए भीड़ में आगे रखा जाना ये साबित करता है कि बलवा किये जाने की पूरी तैयारी की गई थी। 


प्रदर्शन के कश्मीरी पैटर्न के दृश्य उस समय भी दिखे जब दिल्ली में छात्रों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस से बचने के लिए लड़कों ने लड़कियों को आगे कर ढाल बनाया। विरोध का यही तरीका कश्मीर में पत्थरबाज और उपद्रवी अपने बचाव के लिए करते रहे हैं। दिल्ली में जितने भी प्रदर्शन हुए उनमें उपद्रवियों ने सुनियोजित तरीके से महिलाओं और छात्राओं को आगे रखा ताकि पुलिस कार्रवाई से बच सकें। प्रदर्शन के दौरान एक जैसे नारे भी किसी षडयंत्र की ओर इशारा करते हैं। 
इस पूरी हिसा में कई राजनीतिक दल पर्दे के पीछे पूरी तरह सक्रिय थे। ये बात काफी हद तक साफ हो चुकी है। प्रधानमंत्री ने नागरिकता कानून को लेकर भ्रम व भय फैलाने वालों पर जमकर हमला बोला है। इस हिसा और पूरे घटनाक्रम में जेएनयू छाप संगठन जिस तरह सक्रिय हुए उससे भी किसी सुनियोजित षड्यंत्र की बात पुष्ट होती है। तीन तलाक और राम मंदिर फैसले का जिस तरह शांति के साथ मुस्लिम समाज ने विरोध किया था उससे इन संगठनों के मंसूबे फ़ेल हो गए। जो हमेशा किसी न किसी तरह से देश को अंदर से कमजोर करने में लगे रहते हैं। दिल्ली में हुए विरोध में जेएनयू का वह छात्र नेता भी शामिल था, जिसे भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वालों का मुखिया कहा जाता है। जंतर-मंतर पर भी प्रदर्शन के दौरान चंद ऐसे चेहरे दिखाई दिये जो टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा हैं। 
इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोकसभा चुनाव में मिली जबरदस्त पराजय के बाद जब तीन तलाक, अनुच्छेद-37० और फिर अयोध्या विवाद जैसे मसले आसानी से हल हो गए तब विपक्ष को ये पूरी तरह नागवार गुजरा। वे किसी अवसर की ताक में थे। जो मुसलमान शांति के साथ अपने काम-धंधे में लगा हुआ था उसे देश से निकाले जाने के नाम पर भयभीत करते हुए उपद्रव के लिए उकसा दिया गया। अगर ये कहा जाए कि नागरिकता संशोधन अधिनियम और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर पूरे देश में पूर्व तैयारी से हिसा करने का षड्यंत्र किया गया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस मामले में खुफिया तंत्र की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है। मुस्लिम समाज के कई धर्मगुरु भी अचानक हुए उपद्रवों से हैरान हैं। तमाम तथाकथित मुस्लिम नेताओं को भी कोई भाव नहीं मिल रहा। इससे ये आशंका और प्रबल होती है कि देशव्यापी हिसा किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा हैं। अनुच्छेद-37० हटने के बाद से तिलमिलाई अलगाववादी ताकतों ने देश का माहौल खराब करने का षड्यंत्र किया है। मुस्लिमों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई है। जरूरत इस बात की है कि मुस्लिम समाज के समझदार लोग सक्रिय हों और इस कानून को लेकर फैले भय और भ्रम को दूर करें। 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)