पालक के निरंतर सेवन से रंग में निखार आता है

स्त्रियों के लिए अत्यंत उपयोगी है पालक का शाक 




भूख को करती है नियंत्रित


पालक-अलसी की स्मूदी


 पालक की भाजी सामान्यतः रुचिकर और शीघ्र पचने वाली होती है


पालक के निरंतर सेवन से रंग में निखार आता है


पालक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है, सर्वसुलभ एवं सस्ता है


लखनऊ। पालक रेशों से भरपूर होती है और पाचनतंत्र में ज्यादा देर तक रहने के कारण यह आपको जरूरत से ज्यादा खाने से रोकती है। पालक पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और फोलेट से भी भरपूर होती है। वहीं, अलसी में प्रोटीन की प्रचुरता होती है और हर समय भूख लगने वाले हार्मोन को भी नियंत्रित करने में सहायक है। इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड और अन्य खनिज पदार्थ भी होते हैं। समस और नए साल में अगर आपने जमकर फास्टफूड और तला-भुना खाया हो तो दोबारा फिटनेस के लिए डाइटिंग और जिम जाने की जरूरत नहीं है। आप इसकी शुरुआत शरीर से विषाक्तता दूर करके कर सकते हैं। इस समय आने वाली हरी सब्जियां व फल ऐसे हैं, जिनसे खास पेय या जूस बनाए जा  सकते हैं, जो शरीर से जहरीले तत्व निकालकर वजन घटाने में मदद करते हैं।
पालक विटामिन और अन्य तमाम पोषक तत्वों से भरपूर होती है। दो कप ताजा पालक, दो चम्मच पिसी अलसी, एक कप अनानास, एक कप योगर्ट को मिक्सी में डालकर पीस लें। इससे स्वादिष्ट और पौष्टिक स्मूदी तैयार हो जाएगी। ध्यान रखें कि इसका सेवन किसी तैलीय या भारी भोजन के साथ न करें।
पालक में जो गुण पाए जाते हैं, वे सामान्यतः अन्य शाक-भाजी में नहीं होते। यही कारण है कि पालक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है, सर्वसुलभ एवं सस्ता है।यह भारत के प्रायः सभी प्रांतों में बहुलता से सहज मिल जाता  है। इसका पौधा लगभग एक से डेढ़ फुट ऊँचा होता है। इसके पत्ते चिकने, मांसल व मोटे होते हैं। यह साधारणतः शीत ऋतु में अधिक पैदा होता है, कहीं-कहीं अन्य ऋतुओं में भी इसकी खेती होती है।


गुण और लाभइसमें पाए जाने वाले तत्वों में मुख्य रूप से कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, फास्फोरस, लोहा, खनिज लवण, प्रोटीन, श्वेतसार, विटामिन 'ए' एवं 'सी' आदि उल्लेखनीय हैं। इन तत्वों में भी लोहा विशेष रूप से पाया जाता है।लौह तत्व मानव शरीर के लिए उपयोगी, महत्वपूर्ण, अनिवार्य होता है। लोहे के कारण ही शरीर के रक्त में स्थित रक्ताणुओं में रोग निरोधक क्षमता तथा रक्त में रक्तिमा (लालपन) आती है। लोहे की कमी के कारण ही रक्त में रक्ताणुओं की कमी होकर प्रायः पाण्डु रोग उत्पन्न हो जाता है। लौह तत्व की कमी से जो रक्ताल्पता अथवा रक्त में स्थित रक्तकणों की न्यूनता होती है, उसका तात्कालिक प्रभाव मुख पर विशेषतः ओष्ठ, नासिका, कपोल, कर्ण एवं नेत्र पर पड़ता है, जिससे मुख की रक्तिमा एवं कांति विलुप्त हो जाती है। कालान्तर में संपूर्ण शरीर भी इस विकृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। लोहे की कमी से शक्ति ह्रास, शरीर निस्तेज होना, उत्साहहीनता, स्फूर्ति का अभाव, आलस्य, दुर्बलता, जठराग्नि की मंदता, अरुचि, यकृत आदि परेशानियाँ होती हैं।


आयुर्वेद के अनुसार पालक की भाजी सामान्यतः रुचिकर और शीघ्र पचने वाली होती है। इसके बीज मृदु, विरेचक एवं शीतल होते हैं। ये कठिनाई से आने वाली श्वास, यकृत की सूजन और पाण्डु रोग की निवृत्ति हेतु उपयोग में लाए जाते हैं। गर्मी का नजला, सीने और फेफड़े की जलन में भी यह लाभप्रद है। यह पित्त की तेजी को शांत करती है, गर्मी की वजह से होने वाले पीलिया और खाँसी में यह बहुत लाभदायक है।


पालक की शाक में एक तरह का क्षार पाया जाता है, जो शोरे के समान होता है, इसके अतिरिक्त इसमें मांसल पदार्थ 3.5 प्रतिशत, चर्बी व मांस तत्वरहित पदार्थ 5.5 प्रतिशत पाए जाते हैं। पालक में लोहा काफी मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें पाए जाने वाले तत्वों में कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, फास्फोरस, खनिज लवण, प्रोटीन, श्वेतसोर आदि मुख्य हैं।


स्त्रियों के लिए पालक का शाक अत्यंत उपयोगी है। युवतियां यदि अपने चेहरे का नैसर्गिक सौंदर्य एवं रक्तिमा (लालिमा) बढ़ाना चाहती हैं, तो उन्हें नियमित रूप से पालक के रस का सेवन करना चाहिए। प्रयोग से देखा गया है कि पालक के निरंतर सेवन से रंग में निखार आता है। इसे भाजी (सब्जी) बनाकर खाने की अपेक्षा यदि कच्चा ही खाया जाए, तो अधिक लाभप्रद एवं गुणकारी है। पालक से रक्त शुद्धि एवं शक्ति का संचार होता है।


 


यह पेय शरीर से जहरीले पदार्थ बाहर निकालकर प्रतिरक्षातंत्र को मजबूत करता है, साथ ही यह त्वचा को चमकदार बनाने में भी मददगार है। सर्दी में ऐसे में यह पेय पीने से लाभ होगा।