डीएचएफएल डूबी तो यह राशि एनपीए में तब्दील हो गई
राणा कपूर ने एक कंपनी को अपने बैंक से 600 करोड़ रुपये का कर्ज दिलवाया था
लालच की मैली धारा में डूबते निजी बैंक
रिजर्व बैंक और सरकार की ज्यादा बड़ी भचता अभी यस बैंक को बचाने की है, जिसके लिए उन्हें एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। इसके खातेदारों की स्थिति दयनीय है। उन्हें एक महीने में सिर्फ 50,000 रुपये निकासी की इजाजत उन्हें दी गई है, जिसे अब बढ़ाया जा रहा है। उनके भीतर तरह-तरह की आशंकाएं हैं। वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा है कि अगले महीने से बैंक की हालत सुधरने लगेगी। वित्त मंत्रालय ने बैंक को बचाने के लिए कवायद शुरू की है। इसके लिए देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को चुना गया है जिसने इसकी 49 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने की इच्छा जताई है। यस बैंक के शेयर वह 10 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से खरीदकर इसमें पूंजी डालेगा। कुल 24.57 अरब रुपये का निवेश स्टेट बैंक इसमें करेगा। लेकिन यह काफी नहीं है क्योंकि इसे लगभग 150 अरब रुपये की जरूरत है।
भारतीय बैंङ्क्षकग सेक्टर की परेशानियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सिस्टम में लूपहोल का फायदा उठाकर बड़े-बड़े घोटाले किए जाते हैं और रिजर्व बैंक देखता रह जाता है। वित्त मंत्रालय जब तक संभल पाता है तब तक खेल हो जाते हैं। हीरा कारोबारी नीरव मोदी जब पंजाब नेशनल बैंक को अरबों रुपये का चूना लगाकर फरार हो गया था तो उसके बाद जबर्दस्त हो-हल्ला मचा। रिजर्व बैंक, सारी एजेंसियों, और वित्त मंत्रालय ने भी पूरी सख्ती बरती। कई कड़े कदम उठाए गए और मान लिया गया कि अब सिस्टम की कमियों से पार पा लिया गया है। लेकिन कुछ ही दिनों बाद पंजाब महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक (पीएमसी) खस्ताहाल हो गया।
पीएमसी के प्रमोटरों ने डीएचएफएल नाम की एक रीयल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी को 6500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा कर्ज दे रखा था जिसका कोई समुचित हिसाब-किताब नहीं था। डीएचएफएल डूबी तो यह राशि एनपीए में तब्दील हो गई। बाद में रिजर्व बैंक ने इसे अपने हाथों में लिया लेकिन डूबी रकम कब मिलेगी, यह कोई नहीं जानता। अब मामला सामने आया है देश के एक प्रीमियर प्राइवेट बैंक का। यह है यस बैंक जिसे अशोक कपूर, हरकीरत भसह और राणा कपूर ने खड़ा किया था। हरकीरत ङ्क्षसह अलग हो गए और अशोक कपूर को मुंबई हमलों में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मार डाला। राणा कपूर ने इस बैंक को ऊपर तो उठाया लेकिन बाद में इसके पैसों को जिस बेदर्दी से उड़ाया उसे देखकर जांच एजेंसियां भी सकते में हैं। ऐसा नहीं है कि राणा कपूर के कारनामों का सरकार को पता नहीं चल रहा था लेकिन बातें साफ नहीं थीं। 2003 में यस बैंक को बैंङ्क्षकग का लाइसेंस मिला था और 2017 आते-आते इसने बुलंदियां छू लीं। लेकिन इस बीच राणा कपूर रास्ता भटकने लगे और अपने दोस्तों को बड़े पैमाने पर मोटी रकम कर्ज के रूप में बांटने लगे जिसकी रिकवरी आज असंभव है।
बैंक का आकार शुरुआती वर्षों की तुलना में 26 गुना बढ़ा लेकिन इसका घाटा बढ़कर 54,000 करोड़ रुपये हो गया। बैंक ने कभी भी उन कर्जों के बारे में सार्वजनिक रूप से नहीं बताया जिनके डूबने का खतरा पैदा हो रहा था और इस तरह के सभी तथ्य छुपाकर रखे। कहीं कोई पारदॢशता नहीं थी। 2018 तक हालत इतनी बिगड़ गई कि यस बैंक के निदेशक मंडल को राणा कपूर को सीईओ के पद से हटाना पड़ा और इसके साथ ही यस बैंक के पतन की दास्तान शुरू हुई। आज राणा कपूर ही नहीं उनकी पत्नी और तीनों बेटियां ईडी तथा अन्य जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। बताया जाता है कि राणा कपूर ने एक संदेहास्पद कंपनी को अपने बैंक से 600 करोड़ रुपये का कर्ज दिलवाया था जिससे उनकी लड़कियां जुड़ी हुई हैं। पत्नी 18 कंपनियों की डायरेक्टर हैं जबकि तीनों लड़कियां 20 कंपनियां संभाल रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन कंपनियों में कर्मचारी बहुत ही कम हैं और ये नाम मात्र के लिए काम करती हैं। लेकिन इन्हें यस बैंक से लगातार लोन मिलता रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि ये शेल कंपनियां हैं जिन्हें फर्जीवाड़े के लिए खड़ा किया गया था। ये किकबैक और प्रॉपर्टी में निवेश करने के लिए खड़ी की गई थीं। इनसे हुई कमाई कहंा जाती थी, इसकी अब जांच हो रही है।
स्टेट बैंक का दावा है कि इसमें निवेश के लिए कई वित्तीय संस्थाएं आगे आ रही हैं। इस प्रकरण से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवालिया निशान तो रिजर्व बैंक के कामकाज पर ही लगता है जिसने निगरानी के अपने प्राथमिक कार्य में चूक की। उसके विशेष ऑडिटर ने क्या किया? रिजर्व बैंक के काम करने का स्टैंडर्ड गिरा है। इसका कारण साफ है कि इसमें नियुक्तियां राजनीतिक ढंग से होने लगी हैं। प्र$फेशनल लोगों को जगह देने की बजाय अपनी पसंद के लोगों को चुना जाने लगा है। अभी बहुत सी चीजें अस्पष्ट हैं। ग्राहकों को अपनी इच्छानुसार पैसे निकालने की सुविधा कब मिलेगी? जिन ग्राहकों, म्यूचुअल फंडों, वित्तीय संस्थाओं ने बैंक के बॉन्ड (बैंक ने 10,800 करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी कर रखे हैं) खरीदे हैं उनका क्या होगा? आगे के लिए जल्दी कोई ब्लूप्रिंट बन पाएगा? स्टेट बैंक इसमें बड़े पैमाने पर निवेश करके फंस तो नहीं जाएगा? हमारे देश की समस्या यह है कि सरकारी बैंकों को जनधन योजना और मुद्रा मेला जैसी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में न केवल अपने पैसे बल्कि स्टाफ को भी लगाने के लिए बाध्य किया जाता है। इनसे न केवल उनका लाभ घटता है बल्कि रोजमर्रा के काम भी प्रभावित होते हैं। पेशेवर रवैये के लिए लोग निजी बैंकों की सेवाएं लेते हैं लेकिन उनका हाल भी यस बैंक जैसा देखने को मिलता है। बेईमानी से आगे बढऩे वाले कॉरपोरेट घरानों, बेलगाम नौकरशाहों, राजनेताओं और भ्रष्ट बैंकरों के गठजोड़ से होने वाले घोटालों के शिकार आम जमाकर्ता और निवेशक ही होते हैं।