कांग्रेस में आतंरिक लोकतंत्र खत्म हो चला है

त्रिनाथ के.शर्मा


मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार का भविष्य फिलहाल सुरक्षित नहीं है


युवा नेताओं पर भरोसा जताने के बजाय बुजुर्ग पीढ़ी पर भरोसा जताया गया


ध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार का भविष्य फिलहाल सुरक्षित नहीं है। भसधिया पूरी राजनैतिक तैयारी और पैंतरेबाजी से बगावत के मैदान में उतरे हैं। जिसकी कीमत कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और कमलनाथ सरकार को चुकानी पड़ेगी। मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय भसह ने ज्योतिरादित्य भसधिया के खिलाफ जिस तरह की साजिश रची उसका खामियाजा पूरी कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने या फिर त्यागपत्र देने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं है। राज्य का राजनैतिक संकट सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच सकता है।

भाजपा ने अपने सभी विधायकों को मध्य प्रदेश से बाहर भेज दिया है। इस राजनीतिक उलट$फेर के बाद सारा फैसला विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल पर आ टिका है। जिसमें विस अध्यक्ष बड़ी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। विधायकों के त्यागपत्र को नामंजूर भी कर सकते हैं। वह उन्हें बुलाकर सीधे बात कर सकते हैं या फिर पुन: त्यागपत्र मांग सकते हैं। फिलहाल यह तो संवैधानिक संकट है। लेकिन इस घटना से यह साबित हो गया है कि कांग्रेस में 10 जनपथ निर्णायक भूमिका में नहीं रहा। युवा नेताओं पर गांधी परिवार की पकड़ ढीली पड़ गई है। कांग्रेस में अब निर्णायक भूमिका वाले नेतृत्व की आवश्यकता है, जिसमें इंदिरा गांधी जैसी निर्णय क्षमता हो। उनकी राजनैतिक कुशलता और मुखर नेतृत्व पार्टी के आतंरिक विरोधियों और गुटबाजों पर हमेशा भारी पड़ी। लेकिन सोनिया गांधी और बेटे राहुल में यह कार्यशैली नहीं दिखती है। जबकि प्रियंका को सोनिया गांधी जाने क्यों राष्ट्रीय स्तर पर लाना नहीं चाहती हैं।

राजनीति में महत्वाकाक्षाएं अहम होती हैं। दलीय प्रतिबद्धता, राजनैतिक शुचिता और नैतिकता का कोई स्थान नहीं होता। समय के साथ जो पाला बदलकर गोट फिट कर ले वही बड़ा खिलाड़ी है। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य भसधिया की तरफ से जो पटकथा लिखी गई है, उसके लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार है। मध्य प्रदेश की राजनीति में ङ्क्षसधिया घराने का अपना प्रभाव है। ज्योतिरादित्य ङ्क्षसधिया ने 2018 के चुनाव के दौरान अच्छी मेहनत की, जिससे कांग्रेस राज्य में 15 साल बाद सत्ता में लौट पाई। लेकिन आपसी गुटबाजी की वजह से भसधिया समेत 22 से अधिक विधायकों के त्यागपत्र के बाद मध्य प्रदेश सरकार अल्पमत में आ गई। कमलनाथ सरकार को अब कोई करिश्मा ही बचा सकता है।

 

ङ्क्षसधिया को फिलहाल राज्यसभा भेजकर केंद्रीय मंत्री का तोहफा मिल सकता है। राज्य में बनने वाली नई सरकार में उनके करीबियों को मंत्रीपद का तोहफा भी मिलेगा। निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका है। क्योंकि ग्वालियर, गुना, झांसी और दूसरे जिलों में राजघराने की अच्छी पकड़ है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भसधिया की मेहनत की वजह से मालवा क्ष़ेत्र से कांग्रेस की कई सींटे निकली। राज्य में कांग्रेस की वापसी में भसधिया ने अहम भूमिका निभाई थी। कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पहली कुर्बानी तो उसे सरकार गंवाकर चुकानी पड़ेगी। दूसरा नुकसान पार्टी का विभाजन हुआ है। तीसरी बात मलावा क्षेत्र में कांग्रेस का भारी नुकसान होगा जहंा भसधिया परिवार की चलती है। वहंा की जनता राजपरिवार का बेहद सम्मान करती है।

मध्य प्रदेश की राजनैतिक इतिहास में होली का दिन विशेष है। क्योंकि कांग्रेस में विभाजन की आधारशिला उस दिन रखी गई जिस दिन माधवराव भसधिया की 75 वीं जयंती थी। जिससे यह साबित होता है कि राज्य में विभाजन की पटकथा एक सोची समझी रणनीति थी। गांधी परिवार कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र नहीं स्थापित कर सका है। युवा नेताओं पर भरोसा जताने के बजाय बुजुर्ग पीढ़ी पर भरोसा जताया गया। जिसका नतीजा रहा कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वापसी के बाद ज्योतिरादित्य ङ्क्षसधिया और राजस्थान में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कमान सौंपने के बजाय सत्ता से दूर रखा गया। जबकि राहुल गांधी युवाओं को नेतृत्व सौंपने की बात करते हैं। लेकिन पार्टी के भीतर खुद युवाओं की उपेक्षा की जाती रही।

कांग्रेस में गांधी परिवार की कमान कमजोर पड़ती जा रही है। कांग्रेस में आतंरिक लोकतंत्र खत्म हो चला है। क्या सोनिया गांधी जानबूझकर कांग्रेस की कमान किसी युवा नेतृत्व के हाथ नहीं सौंपना चाहती हैं? ऐसा करने से पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ कमजोर पडऩे का डर सता रहा होगा। यही वजह है कि कांग्रेस एक अदद अध्यक्ष की तलाश नहीं कर पाई है। पार्टी में युवाओं को अहमियत नहीं दी जा रही है। कहा जाता है कि नेताओं को आलाकमान से मिलने का समय नहीं मिलता। निश्चित रूप से कांग्रेस और सोनिया गांधी को ज्योतिरादित्य की नाराजगी दूर करनी चाहिए थी। उन्हें राज्यसभा या प्रदेश अध्यक्ष का पद देेकर इस संकट को टाला जा सकता था। बिखरती पार्टी को संभालने के लिए युवा नेताओं की नाराजगी को दूर करना चाहिये था।