40 प्रतिशत तक सैलरी काटना शुरू कर दिया है कोरोना बीमारी की वजह से मीडिया संस्थानों ने 

देश का चौथा स्तम्भ यानी मीडिया पर कोरोना का इपैक्ट दिखने लगा है


कोरोना बीमारी की वजह से व्यापार पूरी तरह से ठप है


देश के हजारों अखबार, पत्रिकाएं, चैनल बंद हो गए


स्किल्ड जर्नलिस्टों को भा रही है वर्क फ्राम होम की कार्यशैली


तकनीक ने अब पत्रकारिता को काफी आसान बन दिया है


कोरोना जैसी महामारी ने मीडिया को अपनी परम्परिक कार्यशैली में बदलाव लाने को मजबूर कर दिया है


जो पत्रकार नवीनतम तकनॉलाजी से अनभिज्ञ है, तो वे चलन से बाहर हो गए हैं


जो नई-नई तकनालॉजी में अभ्यस्त हैं वे मस्त हैं और उनकी नौकरी भी सुरक्षित हैं


काफी संख्या में स्टाफ को नौकरी से बाहर निकालने की नीति पर अमल भी शुरू हो गया है 



 

लखनऊ। अगर आप स्किल्ड हैं, तो आप वर्क फ्राम होम से काम चल सकते हैं। कोरोना बीमारी के रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाऊन ने पत्रकारों के लिए भविष्य के दरवाजे खोल दिए हैं। मौजूदा समय तमाम मीडिया संस्थान लॉकडाऊन पीरियड में अपने स्टाफ से घर काम करवा रहे हैं। अब आमने-सामने बैठक कर परम्परागत मीटिंग का दौर के बजाए टेलीकॉफ्रेंसिंग के जरिए काम होना शुरू हो गया है। डेस्क के तमाम स्टाफ अपने घर से पेज बनाकर अपने संस्थान को भेज रहा है। इन सब प्रयोगों की वजह से मीडिया में अमूल-चूल परिवर्तन आने वाला है। इससे एक बात साबित हो गई है कि अगर आप स्किल्ड यानी आर्टीफिशियल इंटेलीजेंसी में अभ्यस्त हैं तो आपकी नौकरी सुरक्षित होगी, अन्यथा नौकरी से हाथ धोना होगा। सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबार के एक वरिष्ठï संवाददाता ने बताया कि कोरोना ने मीडिया की कार्यशैली में जबरदस्त बदलाव लाया है। अब अपने ब्यूरो चीफ या एडिटर से संवाद कायम करने के लिए तमाम ऐप हैं, जिनका उपयोग किया जा रहा है। इन ऐपों के माध्यम से काम की समीक्षा हो रही है। तकनीक ने अब पत्रकारिता को काफी आसान बन दिया है। वरिष्ठï पत्रकार  ने बताया कि टेक्नोॅलाजी ने पत्रकारिता में आमूल-चूल परिवर्तन करके रख दिया है। देश में स्किल्ड जर्नलिस्टों की काफी मांग है। लेकिन मांग के सापेक्ष मीडिया में स्किल्ड लोगों का अभाव है। कोरोना जैसी महामारी ने मीडिया को अपनी परम्परिक कार्यशैली में बदलाव लाने को मजबूर कर दिया है। जो पत्रकार नवीनतम तकनॉलाजी से अनभिज्ञ है, तो वे चलन से बाहर हो गए हैं। जो नई-नई तकनालॉजी में अभ्यस्त हैं वे मस्त हैं और उनकी नौकरी भी सुरक्षित हैं।


लेकिन, अब इस पर कुछ मेनस्ट्रीम भारतीय मीडिया में भी चर्चा हो रही है। इन मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पूछा जा रहा है कि कोरोना वायरस कहीं चीनी जैविक हथियार प्रोजक्ट का नतीजा तो नहीं है। कोरोना वायरस के शुरू होने के बाद शुरुआती चरण में अग्रिम पंक्ति की भारतीय मीडिया कवरेज चीनी सरकार को लेकर बड़े स्तर पर संयमित और निरपेक्ष थी। हालांकि, कुछ हिंदी न्यूज़ चैनल चीन पर गैर-प्रामाणिक आरोप लगा रहे थे कि चीन ने बायोलॉजिकल रिसर्च के जरिए कोविड-19 को तैयार किया है। दूसरी ओर, प्रमुख भारतीय आउटलेट्स चीन में कोरोना से प्रभावित इलाकों में मौजूद भारतीयों को वहां से निकाले जाने पर फोकस कर रहे थे। हालांकि, भारत में चल रहे मौजूदा 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान चीन के ख़िलाफ़ आरोपों पर अब प्रामाणिक मीडिया आउटलेट्स और एक्सपर्ट भी चर्चा कर रहे हैं। ये चीन के उत्तरदायित्व को तय करने की मांग कर रहे हैं।



 

देश का चौथा स्तम्भ यानी मीडिया पर कोरोना का इपैक्ट दिखने लगा है। देश के अधिकतर सबसे अधिक बिकने का दावा करने वाले अखबारों और चैनलों ने अपने कर्मचारियों की सैलरी काटना शुरू कर दिया है। कई मीडिया संस्थान कर्मचारियों और अन्य संसाधनों में कटौती की नीति पर अमल करना शुरू कर दिया है। अगर यही हालत रहे तो जहां भारी संख्या में पत्रकार बेरोजगार होंगे और लघु और मध्यम अखबारों व चैनलों पर बंद होने का संकट मंडराना शुरू कर दिया है।

बताते चलें कि बीते छह सालों से देश का लघु, मध्यम मीडिया पर नकेल कसने के लिए तरह-तरह की नीतियां और आदेश अमल में लाए गए। इसकी वजह से देश के हजारों अखबार, पत्रिकाएं, चैनल बंद हो गए। इससे लाखों की संख्या में पत्रकार बेरोजगार हुए। इन छह सालों में देश का कारपोरेट मीडिया हर दिन तरक्की करता रहा। एक जनसूचना से प्राप्त सूचना के मुताबिक वित्त वर्ष 2018-19 तक मात्र कुछ अखबारों और चैनलों को 95 प्रतिशत विज्ञापन का राजस्व दिया गया। केन्द्र सरकार की भेदभाव पूर्ण नीतियों के कारण लघु और मध्यम अखबार व चैनल अंतिम सांसे गिन रहे थे। अब रही-सही कसर कोरोना बीमारी ने पूरी कर दी है।

जानलेवा कोरोना बीमारी में जब हर तबका घर में रहकर सेफ महसूस कर रहा है तब देश का चौथा स्तम्भ के प्रहरी जान हथेली पर रखकर देश और जनता के हित में रिपोर्टिंग कर रहे हैं। सरकार के तमाम निर्देशों और आदेशों को दरकिनार करके कई बड़े मीडिया संस्थानों ने डेस्क और फील्ड के रिपोर्टरों की सैलरी 40 से लेकर 30 प्रतिशत तक काटना शुरू कर दिया है। साथ ही काफी संख्या में स्टाफ को नौकरी से बाहर निकालने की नीति पर अमल भी शुरू हो गया है। सबसे ज्यादा बिकने वाले मीडिया संस्थान अपने स्टाफ को बता रहे हैं कि कोरोना बीमारी की वजह से व्यापार पूरी तरह से ठप है। इससे विज्ञापन भी नहीं आ पा रहा है। जिसकी वजह से रेवन्यू काफी घट गया है। इस गंभीर समस्या को लेकर प्रदेश और केन्द्र सरकार का ध्यान खींचने के लिए कुछ मीडिया संगठनों ने ज्ञापन सौंपा है, तो कुछ ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की है। कुछ पत्रकार हितैषी संगठन मीडिया के बुरे हालात के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं तो कुछ अपनी लाइजनिंग में व्यस्त हैं।