भारत की पुरानी प्रथाओं का डंका बज रहा है विश्व में 

 त्रिनाथ कुमार शर्मा 


भारतीय संस्कृति में रीति-रिवाज और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्व है


भारत में हालांकि मौसम के मुताबिक कपड़े से चेहरे को ढंकने का ट्रेंड सदियों पुराना है


प्रात: उठते ही धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते है


ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता


महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले घूंघट, बुर्का और दुपट्टे के लिए संस्कृत के शब्दों की एक विस्तृत शब्दावली है


 


लखनऊ। जब से कोरोना का कहर दुनिया में बरपा है तब से विश्व के तमाम देश अपनी पाश्चात्य जीवनशैली से बॉय-बॉय कर रहे हैं। अब किसी गले लगने, या हाथ मिलाने या फिर गाल चूमने से परहेज कर रहे हैं। अधिकतर दुनिया के बभशदे अभी नमस्ते से एक-दूसरे का अभिवादन करना शुरू कर दिया है। इसकी वजह से अब भारतीय प्रथाएं दुनिया के लोगों को आत्मसात करने पर मजबू कर रही हैं। अमेरिका और भारतीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने सिफारिश की है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए हम लोग जरूरी नहीं मेडिकल मास्क पहनें बल्कि कोई भी साधारण कपड़े का मास्क भी पहन सकते हैं। हालांकि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अभी दुनिया दो तरह के लोगों में बंटी हुई है। पहला वे जो पब्लिक प्लेस में मास्क पहनते हैं, और दूसरा वे जो इसके प्रभाव पर शक करते हैं। भारत में हालांकि मौसम के मुताबिक कपड़े से चेहरे को ढंकने का ट्रेंड सदियों पुराना है।

भले ही प्राणघातक बीमारी कोरोना की वजह से जहां आज दुनिया एक बार फिर भारतीय जीवन शैली को आत्मसात करने को मजबूर है वहीं अपनी पाश्चात्य रहन-सहन को बॉय-बॉय कर रही है। इससे एक बार फिर भारत की पुरानी प्रथाओं का डंका विश्व में बज रहा है। आधुनिकता और महिला सशक्तिकरण के नाम पर देसी जीवन शैली यानी घूंघट या फिर बुर्का का विरोध करने वालों के लिए एक बड़ी नसीहत है कि आज मास्क के रूप में फिर मुंह को ढंकने के रिवाज को अनिवार्य रूप से पालन करने को कहा जा रहा है।

 

भारतीय संस्कृति में रीति-रिवाज और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्व है, जैसे प्रात: उठते ही धरती पर पैर रखने से पहले धरती माँ को प्रणाम करते है। इसी तरह कहा जाता है कि हमें सूर्योदय से पहले उठना चाहिए क्योंकि इस समय सूरज की किरणों में भरपूर विटामिन डी होता है और ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हम दिनोंदिन तरोताजा रहते हैं और आलस हमारे पास भी नहीं फटकता। घर में पूजा पाठ करते समय धूप, अगरबत्ती, ज्योति जलाते हैं तथा शंख बजाते हैं इन सबके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से शंख, ध्वनि जहाँ तक जाती है वहंा तक की वायु से जीवाणु, कीटाणु सभी नष्ट हो जाते है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरु के पैर छूने की परंपरा है। माता-पिता और बड़ों को अभिवादन करने से मनुष्य की चार चीजें बढ़ती हैं आयु, विद्या, यश और बल। सज्जन और श्रेष्ठ लोगों का अपना एक प्रभा मंडल होता है और जब हम अपने गुरु और अपने से बड़ों के पैर छूते हैं तो उसकी कुछ अच्छाईयां हमारे अंदर भी आ जाती हैं।


अधिकतर रिवाजों को धर्म से जोडना उचित नहीं। अधिकतर रिवाज तो अंधविश्वास हैं जो हजारों वर्षों की परंपरा, भय और व्यापार के कारण समाज में प्रचलित हो गए हैं। इसीलिए ये रिवाज आज कोई धाॢमक मायने नहीं रखते। दरअसल लोगों की भजदगी से संबंध रखने वाला काम रिवाज होता है। खाने के वक्त लोगों का व्यवहार कैसा होना चाहिए और उन्हें दूसरों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए, कपड़े कैसे पहनना चाहिए और क्या खाना चाहिये। पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने से खान-पान, रहन-सहन और पहनावे में तेजी से बदलाव आ रहा है। यह संस्कृति पतन की है या उत्थान की, यह आत्म भचतन का विषय है। टेक्स्टाइल एक्सपर्ट और अनुभवी डिजाइनर रितु कुमार बताती हैं कि भारतीयों ने हमेशा थ्री-पीस ड्रेस पहनी है। एक ऊपरी, निचला और एक सिर का कपड़ा जो एक $फेस मास्क के रूप में काम करता है। वह बताती हैं कि महाराष्ट्र की कार्ले गुफाओं में, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की हैं, वहंा बने चित्रों से पता चलता है कि महिला और पुरुष थ्री पीस ड्रेस ही पहनते थे।

 

वहीं आज भी, शहर में रहने वाली महिलाएं जब भी बाहर किसी काम से निकलती हैं तो $फेस को कवर करने के लिए अपने दुपट्टे का इस्तेमाल करती हैं जो एक फैशन भी है और उन्हें गर्मी और प्रदूषण से बचाता है। उदाहरण के लिए जब वे खेतों में जाती हैं तो गंध, मक्खियों और गंदगी को दूर रखता है। यह उसी तरह है जैसे जापान में महिलाएं पंखों का इस्तेमाल करती हैं।

पुरुष भी अपनी पगड़ी और गमछे से चेहरे को कवर करते हैं।  कपड़े को $फेस मास्क के रूप में ले जाने का ट्रेंड किसानों ने शुरू किया है जो उन्हें गर्मी और धूल से बचाता था। वह बताती है कि गुजरात के कच्छ जिले में, व्यापारियों के कंधे पर एक कपड़ा देखना आम था। वे इसको एक बैग के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। कॉस्ट्यूम डिजाइनर संध्या रमन ने बताया कि प्राचीन काल में महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले घूंघट, बुर्का और दुपट्टे के लिए संस्कृत के शब्दों की एक विस्तृत शब्दावली है। वह बताती है कि माना जाता है कि दुपट्टा प्राचीन से है। हिजाब का भी इस्तेमाल होता है। लेटेस्ट ट्रेंड में स्टोल और स्कार्फ हैं, जो युवा महिलाओं ज्यादा लेना पसंद करती हैं।