...युद्ध चाहे कोई भी हो कमोबेश मानव और मानवता ही शिकार बनती है
दुनिया को दहशत में डालता जैविक आतंकवाद
मानव इतिहास का अध्ययन धरती पर युद्ध के अस्तित्व की कहानी बयां करता है, जो कभी न समाप्त होने वाली गाथा है
जैविक खतरों से निपटने के लिए पूरे देश को एकजुटता के साथ काम करना होगा
मानव की विस्तारवादी नीति, महामारियों का कारण बनती रही है
...आने वाला समय दुनिया के लिए चुनौतियों भरा है
कोरोना महासंकट को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। चीन के वुहान से फैला वायरस दुनिया के अधिकंाश देशों को चपेट में ले चुका है। यही कारण है कि दुनिया को यह सोचने पर विवश होना पड़ा है कि कहींं यह वायरस कोई जैविक हथियार की तैयारियों का परिणाम तो नहीं जो चमगादड़ से मानव शरीर में संक्रमित हो गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी दुनिया को इन वायरस, बैक्टीरिया या फंगस के तौर पर जैविक हथियार की मौजूदगी के बारे में पहले भी आगाह कर चुका है। हालांकि यह कहना कि कोविड-19 एक जैविक हथियार है, थोड़ी जल्दबाजी होगी। दुनिया के लिए यह गम्भीर चिन्तन का विषय है। जैविक आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए सरकार को पहले से ज्यादा मुस्तैद रहने की आवश्यकता है। जैविक आतंकवाद के खतरे को रोकने के लिए वाइल्ड लाइफ हेल्थ सेंटर, जुनोसिस सेंटर, फॉरेन्सिक सेंटर आदि की स्थापना पर जोर देने की आवश्यकता है, साथ ही टीके और औषधियों पर शोध को और बढ़ावा देने की आवश्यकता है, हालांकि भारत सरकार द्वारा अबतक किए गए प्रयासों की सराहना दुनिया भर में हो रही है। इस तरह के जैविक खतरों से निपटने के लिए राज्य और केन्द्र सरकारों को एकसाथ आना होगा, साथ ही पूरे देश को एकजुटता के साथ काम करना होगा। तभी हम इस तरह के जैविक आतंकवाद से पार पा पाएगे।
मानव इतिहास का अध्ययन धरती पर युद्ध के अस्तित्व की कहानी बयां करता है, जो कभी न समाप्त होने वाली गाथा है। दुनिया भर के लोग शांति की आज जितनी अधिक कामना करते हैं, उतने ही युद्ध में उलझते जा रहे हैं। कहीं विस्तार का युद्ध तो कहीं व्यापार का युद्ध। युद्ध चाहे सीमाओं को लेकर हो या संसाधनों के बंटवारे या फिर आतंकवाद के खौफनाक मंजर को समाप्त करने को लेकर हो, इन सभी के बीच कमोबेश मानव और मानवता ही शिकार बनती है। दहशत के माहौल में दुनिया नये-नये आधुनिक हथियारों की होड़ में लगी हुई है। पिछली एक सदी का इतिहास हथियारों की बेतहाशा प्रतिस्पर्धा से भरा पड़ा है। इन अत्याधुनिक हथियारों की प्रतिस्पर्धा ने मानव को पारम्परिक हथियारों से कई गुना शक्तिशाली हथियार की खोज करने में लगा दिया है, जिसका नया तरीका जैविक हथियारों का निर्माण भी हो सकता है। दुनिया दहशत में है कि कहीं मानव सभ्यता के भविष्य पर मंडराता सबसे बड़ा संकट जैविक आतंकवाद तो नहीं? जैविक हथियार परम्परागत गोला-बारूद, बम, मिसाइलों से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इसमें तमाम हथियारों से ज्यादा विध्वंस की ताकत है, वो भी बहुत कम खर्च पर। इसलिए जैविक हथियार जहंा मानवता के लिए खतरा बन गये हैं, वहीं दुनिया के लिए किसी चुनौती से कम नहीं न$जर आ रहे हैं। जैविक हथियार मानव निॢमत सर्वाधिक प्राचीन होने के साथ विनाशकारी हथियारों में से है। यह ऐसा हथियार है जिनके द्वारा कम खर्च में युद्ध की बड़ी से बड़ी सेना को नष्ट किया जा सकता था। यह विनाशकारी हथियार विषाणु, कीटाणु, वायरस या फफूंद जैसे संक्रमणकारी तत्वों से निॢमत किए जाते हैं। जो सदियों से युद्ध का कूटनीतिक हिस्सा रहे हैं। युद्ध में विरोधी सेना को बीमार करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। मानव की विस्तारवादी नीति इन महामारियों का कारण बनती रही है। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के लोगों ने अपने शत्रुओं को मारने के लिए उनके पानी के कुओं में जहरीला कवक डलवा दिया। जिससे भारी संख्या में लोग हताहत हुए जो संभवत: इतिहास के प्राचीनतम उदाहरणों में से एक है, जब जैविक हथियार का प्रयोग किया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन सैनिक द्वारा एंथ्रेक्स तथा ग्लैंडर्स के जीवाणुओं का प्रयोग विकसित जैविक हथियारों की श्रेणी में आता है। जापान-चीन युद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध में प्लेग, हैजा जैसी बीमारी से लोगों में संक्रमण फैलाने का प्रयास किया जाना आदि भी इन्हीं हथियारों का परिणाम थे। जैविक हथियारों का प्रयोग भारी भरकम तकनीकी से नहीं बल्कि छोटे-मोटे जीव-जन्तु, जानवरों, पक्षियों और मनुष्यों के माध्यम से हवा, पानी में आसानी से फैलाया जा सकता है। विश्व के जिन देशों में इनका हमला हुआ है, वहंा दशकों तक इसका असर देखा जा सकता है। सबसे चॢचत जैविक हथियार के रूप में एंथ्रेक्स बीमारी फैलाने वाला बेसिलस एंथ्रेसिस बैक्टीरिया है इसे आसानी से जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सन् 2001 में अमेरिका मे एक पोस्ट के जरिये आतंकवादियों ने इसे फैलाने की कोशिश की थी, जिससे लाखों अमेरिकी दहशत में आ गये थे। यदि इन बीमारियों का एण्टीडोज नहीं है तो इनको रोकना दुनिया के लिए जोखिम भरा भी साबित हो सकता है।
जैविक हथियारों के निर्माण एवं प्रयोग पर रोक लगाने हेतु कई विश्व सम्मेलन किए गये हैं। सर्वप्रथम 1925 में जिनेवा प्रोटोकॉल के तहत दुनिया के कई देशों ने जैविक हथियारों के खतरे एवं नियन्त्रण पर बातचीत प्रारम्भ की थी। सन् 1972 में बायोलॉजिकल विपेन कन्वेंशन की स्थापना हुई। भारत 1973 में इसका सदस्य बना। आज लगभग 182 देश इसके सदस्य हैं। 10 अप्रैल, 1972 को चीन ने सन्धि पर हस्ताक्षर किए और 9 फरवरी 1973 को इसकी पुष्टि की। जैव हथियार के वाहक के रूप में लगभग 200 प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया, फंगस हमारे पर्यावरण में उपस्थित हैं। जैव हथियार आज के दौर में मानव जाति पर मंडरा रहे सबसे बड़े खतरों में से एक है। इससे निपटने के लिए दुनिया को अपनी तैयारी में और तेजी लाने की आवश्यकता है। भारत में डर और आतंक के इस जैविक रूप से निपटने के लिए गृह मंत्रालय नोडल एजेंसी है। साथ ही रक्षा मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, डीआरडीओ इत्यादि मुस्तैदी से इसपर कार्य कर रहीं है। आने वाला समय दुनिया के लिए चुनौतियों भरा है। मानवता को ताक पर रखकर यदि हम शांति की कामना करते हैं तो यह व्यर्थ साबित होगी। आज भी चेचक, हैजे, प्लेग जैसी बीमारियों को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका है। इस तरह के संक्रमण से लडऩे के लिए सेना और चिकित्सा सेवाओं को और मुस्तैद रहने की जरूरत है। नये और जटिल तरह के इन युद्धों से भयावह स्थिति पैदा हो सकती है। जीन इंजीनियभरग इनके विकास में प्रयोग की जाती है।