भारत को आंख दिखाने वाले नेपाल को करारा झटका लगा

भारत को आंख दिखाने वाले नेपाल को करारा झटका लगा


नेपालगंज के होटलों, पर्यटन उद्योग, कैसिनो और ट्रैवल एजेंसियों की आॢथक कमर टूट गयी है


 

नेपाल ने किसी और के कहने पर जताई आपत्ति : सेना प्रमुख

 

 

लखनऊ। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में लिपुलेख पास मार्ग निर्माण से हजारों भारतीयों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा में भारत सरकार की इस कूटनीति और रणनीति के तहत जहां चीन की गोद मे बैठकर भारत को आंख दिखाने वाले नेपाल को करारा झटका लगा है वहीं माह मई से सितंबर 2020 की तिब्बत मानसरोवर यात्रा रदद हो जाने से जिले से सटे नेपालगंज के होटलों, पर्यटन उद्योग, कैसिनो और ट्रैवल एजेंसियों की आॢथक कमर टूट गयी है। 

भारत के लगभग एक दर्जन प्रदेशों के हजारों तीर्थयात्री बहराइच के रुपईडीहा सीमा से नेपाल राष्ट्र के नेपालगंज से नेपाली हुमला जिला होते हुए अभी तक तिब्बत में मानसरोवर की यात्रा करते थे। अब दस हजार भारतीयों ने नेपालगंज के होटलों की बुङ्क्षकग रदद कर दी है। दोनों देशों भारत और नेपाल में वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप के चलते भारतीय यात्रियों के इस कदम से नेपालगंज के पर्यटन उद्योग को करारा झटका लगा है। अभी तक मानसरोवर की यात्रा करने वाले हजारों भारतीय हेलिकॉप्टर और नेपाली विमानों के जरिए नेपाल के हुमला पहुंचकर तिब्बत में मानसरोवर के दर्शन करते थे। जिले से सटे नेपालगंज से हुमला होते हुए मानसरोवर की जो यात्रा सात दिन में पूरी करते थे वह लिपुलेख पास मार्ग बन जाने से यह दो दिन में पूरी हो जाएगी। एक भारतीय को लगभग 2 से 3 लाख रूपये लगते थे। वह अब भारतीय क्षेत्र उत्तराखंड के जिले पिथौरागढ़ में लिपुलेख पास मार्ग बन जाने से केवल एक से डेढ़ लाख का खर्च ही आएगा। इससे जहंा आॢथक लाभ भारतीयों को मिलेगा वही समय की भी बचत इन्हें मिल सकेगी।देश के रक्षामंत्री राजनाथ  सह ने पिछले शुक्रवार को वीडियो भलक के माध्यम से लगभग 90 कि. मी .दारुचुला- लिपुलेख पास मार्ग का उद्घाटन कर जो मानसरोवर की यात्रा करने वाले भारतीयों को तोहफा दिया है।उससे भारतीय को समय समय पर आंख दिखाने वाले चीन समर्थक नेपाली सरकार को सबक और आत्म मंथन करने का मौका मिलेगा।हालांकि नेपालगंज में इस मार्ग को लेकर जहाँ कई राजनीतिक दलों ने हाल ही में प्रदर्शन किया है और भारत मुर्दाबाद के नारे लगाए है। लेकिन भारतीय कूटनीति के आगे नेपाल आने वाले दिनों में घुटने टेकने को मजबूर होगा। भारत सरकार द्वारा यह कदम मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा जिससे अब भारतीय मानसरोवर यात्रा लगभग 80 प्रतिशत भारतीय भू- भाग से करेंगे।

भारत द्वारा मानसरोवर यात्रियों को ध्यान में रखते हुए लिपुलेख पास मार्ग उत्तराखंड के पिथोरागढ़ जिले में सड़क निर्माण किया गया है। जिसको लेकर नेपाल के विभिन्न राजनीतिक संगठन भी विरोध कर रहे हैं।जबकि सच्चाई यह है कि भारत ने उत्तराखंड में सड़क निर्माण की सूचना नेपाल सरकार को पहले ही दे दी थी।इस सड़क के निर्माण के बाद तीर्थ यात्रियों का लगभग एक लाख से डेढ़ लाख रुपये तक बचने का अनुमान लगाया जा रहा है।बहराल इस सड़क के बनने के बाद मानसरोवर यात्री जो पूर्व में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से रुपईडीहा होते हुए नेपालगंज व नेपालगंज से पहाड़ी $िजलों सिमीकोट व हुमला तक हवाई यात्रा करते हुए कैलाश मानसरोवर तक तीर्थ यात्रा करते थे। जिससे नेपालगंज बांके तथा कैलाली जिलों में नेपाली होटलों व ट्रैवल एजेंसियों को भारी लाभ होता था। यहंा बताते चलें नेपाल का आय का स्रोत या तो भारतीय टूरिस्ट यात्रियों से होता है या फिर भारतीय उत्पाद से वसूले गए कस्टम शुल्क इसमें एक बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है। ट्रैवल एजेंसियां यात्रियों को सिमीकोट व हुमला जिलों तक पहुंचाने में हेलीकॉप्टर व नेपाली विमानों का प्रयोग करती थी। नेपाली विमानों का भाड़ा पंद्रह हजार तथा हेलीकॉप्टर का भाड़ा पच्चीच हजार भारतीय मुद्रा में लिया जाता था।इस काम में लगभग 7 हेलीकॉप्टर कंपनियों का इस्तेमाल किया जाता था।नेपाल होटल व्यवसायी महासंघ प्रदेश पाँच के अध्यक्ष भास्कर काफ्ले बताते हैं की चूंकि भारत के विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रियों के पिछले कई वर्षों से आने का नेपालगंज बहुत बड़ा क्षेत्र बन गया था। जिससे इस क्षेत्र में बड़े-बड़े होटल तथा कैसीनो कि भरमार हो गई थी। एसोसिएशन ऑफ कैलाश मानसरोवर  ट्रेवल एंड ट्रैङ्क्षकग एजेंट आपरेटर्स नेपाल के पूर्व अध्यक्ष तेन्जिन नोर्बू लामा के अनुसार नेपाल सरकार की सड़क निर्माण की ढिलाई के कारण हमने तकरीबन 10 लाख भारतीय तीर्थ यात्रियों जो कि नेपाल के जरिए तिब्बत तक की मानसरोवर यात्रा करते थे।उन्हें खो दिया है। जिसकी वजह से नेपाल के होटलों ट्रैवल एजेंसियों तथा नेपाल में पर्यटन उद्योग पर इसका बुरा असर पड़ेगा।लामा के अनुसार भारतीय तीर्थयात्री काफी धनाढ्य होते हैं। जो नेपाल में तीर्थ यात्रा भी करते हैं। तथा यहंा के होटलों के कैसीनो का भी आनंद लेते हैं। जिसकी वजह से नेपाल में आय का बड़ा स्रोत बने इन तीर्थ यात्रियों को खोने का गम नेपाल के पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को हो रहा है।उनका कहना है कि 1960 में तातोपानी तथा 1993 में हिलसा नामक दो नाके को तीर्थ यात्रियों के लिए चिन्हित किया गया था। लेकिन इन रास्तों के निर्माण सरकारी उदासीनता के भेंट चढ़ गए।अब भारत ने नये रास्ते लिपुलेख का निर्माण खुद ही कर लिया है तो ऐसी स्थिति में भारतीये तीर्थ यात्री नेपाल क्यों आएंगे। एक अनुमान के अनुसार कैलाश मानसरोवर यात्रा पर एक भारतीये तीर्थ यात्री तकरीबन दो से तीन लाख भारतीय मुद्रा खर्च करता है। जिसमें 30 प्रतिशत रकम नेपाल में खर्च होती है।और लगभग 60 प्रतिशत रकम हवाई यात्रा पर खर्च होती है।देश के रक्षामंत्री राजनाथ ङ्क्षसह द्वारा वीडियो भलक से पिछले शुक्रवार 8 मई को लिपुलेख पास में $करीब 5,200 मीटर रोड का उद्घाटन किया गया है और इसे लेकर नेपाल के लोग $गुस्से में भी है। बताते चले कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद भी एक बड़ा मुद्दा है।सुस्ता और कालापानी इला$के को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद है।चार साल पहले दोनों देशों के बीच सुस्ता और कालापानी को लेकर विदेश सचिव के स्तर की बातचीत को लेकर सहमति बनी थी, लेकिन अभी तक एक भी बैठक नहीं हुई है।ओली जब भारत आते हैं तो उन पर दबाव होता है कि इन दोनों मुद्दों पर बातचीत करें, लेकिन द्विपक्षीय वार्ताओं में इनका $िजक्र नहीं होता है। रक्षामंत्री राजनाथ ङ्क्षसह ने पिछले हफ्ते शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्ऱेंङ्क्षसग के जरिए लिपुलेख में सड़क का उद्घाटन किया था और तब से नेपाल में इसे लेकर आपत्ति जताई जा रही है। इसी क्रम में पिछले सोमवार को नेपाल ने काठमांडू में भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को एक 'डिप्लोमैटिक नोट'  भी सौंपा है। लिपुलेख की इस सड़क को कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले भहदू, बौद्ध और जैन तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए बनाया गया है।भारतीय रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था, ÓÓइस सड़क की मदद से कैलाश मानसरोवर की यात्रा महज एक हफ्ते में की जा सकेगी। पहले इसमें दो-तीन हफ्ते लगते थेÓÓ। बयान के मुताबिक रक्षामंत्री राजनाथ ङ्क्षसह ने लिपुलेख की इस सड़क को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सुदूर इला$कों में विकास का खास वि$जन का प्रमाण बताया है। भारत ने नेपाल की भचताओं को यह कहकर खारिज कर दिया है कि लिपुलेख ÓÓपूरी तरह से भारतीय सीमा में' है। भारत और नेपाल के बीच में इस मुद्दे पर अब तक कोई द्विपक्षीय वार्ता तो नहीं हुई है लेकिन इससे दोनों देशों के बीच जारी तनाव का पता $जरूर चलता है। नेपाल ने भी पिछले वर्षों में भारत की बजाय चीन पर ज्यादा भरोसा किया है कि जबकि ऐतिहासिक रूप से नेपाल के सबसे महत्वपूर्ण कूटनीतिक सम्बन्ध भारत से रहे हैं। उल्लेखनीय रहे इस लिपुलेख पास मार्ग का नया नाम मानसरोवर यात्रा मार्ग रखा गया है।अब देखना यह है कि चीन की गोद मे बैठे नेपाल आॢथक रूप से पिछडऩे के बाद भी व्यापारिक संतुलन बनाएं रखकर भारत को अपने हित मे साधने का काम करता है या भारत से दूरी बनाकर नेपाल को आॢथक रूप से कमजोर और अस्थिर बनाने में अपनी नीतियों का प्रयोग करता है। 

 

 सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने नेपाल और भारत के बीच लिपुलेख दर्रे को लेकर पनपी तनाव की स्थिति के लिए परोक्ष रूप से चीन को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे तक भारत के सड़क बिछाने पर नेपाल किसी और के कहने पर आपत्ति जता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि चीनी सेना के साथ हाल की तनातनी पर भारतीय सेना सिलसिलेवार तरीके से निपट रही है। भारत द्वारा लिपुलेख-धारचुला मार्ग तैयार किये जाने पर नेपाल द्वारा आपत्ति किये जाने के सवाल पर जनरल नरवणे ने कहा कि पड़ोसी देश की प्रतिक्रिया हैरान करने वाली थी।


सेना प्रमुख ने कहा, काली नदी के पूरब की तरफ का हिस्सा उनका है। हमने जो सड़क बनाई है वह नदी के पश्चिमी तरफ है। इसमें कोई विवाद नहीं था। मुझे नहीं पता कि वे किसी चीज के लिए विरोध कर रहे हैं। पूर्व में कभी कोई समस्या नहीं हुई है। यह मानने के कारण हैं कि उन्होंने किसी दूसरे के कहने पर यह मामला उठाया है और इसकी काफी संभावना है।