भारत से भिड़कर चीन दुनिया का ध्यान बंटाने की रणनीति बना रहा है

जंग की तैयारी! भारत और चीन में सीमा पर तनाव


भारत से भिड़कर चीन दुनिया का ध्यान बंटाने की रणनीति बना रहा है


चीन के विस्तार के सामने कितना बेबस है भारत?


भारत-चीन भिड़े तो नतीजे कितने ख़तरनाक?


क्या चीन भूटान को अगला तिब्बत बनाना चाहता है? 


नजरियारू रूस-चीन संबंध से भारत को कोई हानि नहीं


तेजस ने भरी उड़ान  दुश्मन देश की हालत खराब, भारत की है ताकतवर ‘फ्लाइंग बुलेट्स’


जब रूस ने दी थी चीन पर परमाणु हमले की धमकी



बीते कई दिनों से भारत की चीन और नेपाल के साथ तगड़ी तनातनी जारी है। पिछले दिनों लद्दाख में चीन और भारत के सैनिक आमने-सामने आ गए, जिसके बाद से ही बॉर्डर पर जवानों की संख्या बढ़ाई गई है। इन हालातों को देखते हुए ही भारत ने भी अपनी क्षमता को बढ़ाया है। अपने नागरिकों की इस तरह की सामूहिक वापसी कोई भी देश तभी करता है, जब उसे युद्ध का खतरा हो। इस खतरे के अंदेशे को बढ़ाने में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंग्रेजी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ का भी योगदान है। उसमें छपे एक लेख में भारत को धमकी दी गई है। उसको उसकी आक्रामकता के लिए सावधान किया गया है। उसे अमेरिकी चश्मा उतारकर चीन की तरफ देखने के लिए कहा गया है। कुछ विशेषज्ञों ने मुझे यह भी कहा कि भारत से भिड़कर चीन दुनिया का ध्यान बंटाने की रणनीति बना रहा है याने चीन चाहता है कि कोरोना की विश्व-व्यापी महामारी फैलाने में चीन की भूमिका को भूलकर लोगों का ध्यान भारत-चीन युद्ध के मैदान में भटक जाए। उनका मानना यह भी है कि चीन से उखड़नेवाले अमेरिकी उद्योग-धंधे भारत की झोली में न आन पड़ें, इसकी चिंता भी चीन को सता रही है। भारत से भिड़कर वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहता है और अपनी भड़ास भी निकालना चाहता है। भारत या चीन युद्ध करने की मनस्थिति में हैं। जो चीन जापान और ताइवान को गीदड़भभकियां देता रहा और जो दक्षिण कोरिया और हांगकांग को काबू नहीं कर सका, वह भारत पर हाथ डालने का दुस्साहस कैसे करेगा, क्यों करेगा ? भारत या चीन युद्ध करने की मनस्थिति में हैं। जो चीन जापान और ताइवान को गीदड़ भभकियां देता रहा और जो दक्षिण कोरिया और हांगकांग को काबू नहीं कर सका, वह भारत पर हाथ डालने का दुस्साहस कैसे करेगा, क्यों करेगा।


भारत से भिड़कर चीन दुनिया का ध्यान बंटाने की रणनीति बना रहा है याने चीन चाहता है कि कोरोना की विश्व-व्यापी महामारी फैलाने में चीन की भूमिका को भूलकर लोगों का ध्यान भारत-चीन युद्ध के मैदान में भटक जाए।


चीन से उखड़ने वाले अमेरिकी उद्योग-धंधे भारत की झोली में न आन पड़ें, इसकी चिंता भी चीन को सता रही है। भारत से भिड़कर वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहता है और अपनी भड़ास भी निकालना चाहता है। देश में महामारी के संकट के चलते चीन और नेपाल से सीमाओं पर तनातनी की चर्चाएं जोरो-शोरों पर हैं। ऐसे में आज स्वदेशी विमान तेजस की दूसरी स्क्वाड्रन वायुसेना में सम्मिलित हो गई है। वायुसेना की इस स्क्वाड्रन का नाम फ्लाइंग बुलेट्स दिया गया है। बता दें दूसरी स्क्वाड्रन की शुरुआत वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने की है। इसके साथ ही खुद वायुसेना प्रमुख ने तेजस लड़ाकू विमान में उड़ान भरी है।


 दुनिया को तबाही की कगार पर लाकर खड़े करने वाला चीन अब देश की लद्दाख और कई अन्य सीमाओं पर अपना हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आ रहा है। सीमाओं पर कई दिनों से चल रहे विवाद के बीच इंडियन एयरफोर्स ने भी अपनी तैयारी कर ली है। इंडियन एयरफोर्स ने अपनी 18वीं स्क्वॉड्रन को एक्टिव कर दिया है। वायुसेना को ये आदेश एयरफोर्स चीफ एयर मार्शल आरकेएस भदौरिया ने दिया है। इसके साथ ही उन्होंने तमिलनाडु के कोयम्बटूर के पास सुलूर एयरफोर्स स्टेशन पर स्वदेशी विमान तेजस के इस कार्यक्रम का आयोजन किया। एयरफोर्स चीफ एयर मार्शल आरकेएस भदौरिया ने 18वीं स्क्वॉड्रन में तैनात फ्लाइंग बुलेट्स हल्के लड़ाकू विमान एलसीए तेजस को सक्रिय रहने के लिए कहा है। बता दें वायुसेना की 18वीं स्क्वॉड्रन का ध्येय वाक्य है तीव्र और निर्भय। मतलब की दुश्मन से तेज और न डरने वाला।


पूरी दुनिया में कोरोना वायरस से जंग के बीच श्व्यापारिक युद्धश् भी अंदर ही अंदर शुरू हो चुका है। भारत में नीति-निर्धारक में कोरोना वायरस की वजह से उपजीं चुनौतियों के बीच नए संभावनाओं को भी देख रहे हैं। चीन भले ही कहे कि उसने कोरोना पर काबू पा लिया है लेकिन उसके यहां कई विदेशी कंपनियों की यूनिटें बाहर आने के लिए तैयार बैठी हैं उसकी वजह अमेरिका का उसको लेकर अविश्वास है और भारत सरकार की कोशिश इस बात की है ये यूनिटें  उसकी जमीन पर लगाई जाएं। इस बात का अंदाजा इस बात से हाल ही में दिए उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा कि राज्य सरकार चीन से मोह भंग हुई कंपनियों के लिये विशेष पैकेज व सहूलियत देने को तैयार है। 


भारत और चीन भिड़े तो रूस किसका साथ देगा?


1962 के भारत-चीन युद्ध में रूस दोनों देशों में से किसी के साथ खड़ा नहीं था। तब सोवियत संघ का पतन नहीं हुआ था और वैचारिक स्तर पर चीन-रूस काफी करीब थे। आज की तारीख़ में जब एक बार फिर से चीन और भारत के बीच तनाव है तब सोवियत संघ कई देशों में बंट चुका है। 1962 के युद्ध में भी रूस के लिए किसी का पक्ष लेना आसान नहीं था और आज जब दोनों देशों के बीच तनाव है तब भी उसके लिए किसी के साथ खड़ा रहना आसान नहीं है।


जेएनयू के सेंटर फोर रसियन में प्रोफेसर संजय पांडे ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि 1962 के युद्ध को रूस ने भाई और दोस्त के बीच की लड़ाई कहा था। रूस ने चीन को भाई कहा था और भारत को दोस्त। ऐसे में रूस के लिए भाई या दोस्त का पक्ष लेना आसान नहीं रहा और वह तटस्थ रहा था। 1962 के युद्ध हुए 55 साल गए। आज जब एक बार फिर से डोकलाम में भारत और चीन की सेना आमने-सामने हैं तो क्या 55 साल बाद भी रूस का वहीं रुख रहेगा? क्या रूस तटस्थ बना रहेगा?


अमरीका को चीन की चुनौती


जब तक सोवियत संघ रहा तब तक दुनिया दो ध्रुवीय रही. आज की तारीख़ में अमरीका को चीन कई मोर्चों पर चुनौती दे रहा है. रूस भी सीरिया और यूक्रेन में अपनी भूमिका को लेकर यूरोप और अमरीका के निशाने पर है। दूसरी तरफ भारत भी पिछले 10 सालों में अमरीका के करीब गया है। ऐसे में रूस का रुख क्या होगा? संजय पांडे कहते हैं, श्श्अभी दुनिया की जैसी तस्वीर है उसमें रूस चीन की उपेक्षा कर भारत का साथ नहीं दे सकता है। यूक्रेन में हस्तक्षेप के कारण रूस अमरीका और यूरोप के निशाने पर है तो दूसरी तरफ साउथ चाइना सी में सैन्य विस्तार के कारण चीन निशाने पर। इस स्थिति में चीन और रूस एक दूसरे को मौन समर्थन देते हैं।


आख़िर किसके साथ होगा रूस?


भारत और रूस का संबंध नेहरू के समय से ही भावनात्मक रहा है। प्रोफेसर अर्चना उपाध्याय कहती हैं कि रूस चीन का साथ देकर अपना गुडविल ख़त्म नहीं करना चाहेगा। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के नागरिकों के बीच भावनात्मक संबंध हैं। आज भी भारत रूस से ही 70 फीसदी हथियारों की ख़रीद करता है।


अर्चना उपाध्याय ने कहा, श्श्रूस कभी नहीं चाहेगा कि दोनों देशों के बीच युद्ध हो। वह यही कहेगा कि दोनों देश विवाद को बातचीत के जरिए ख़त्म करें। रूस खुलकर न चीन का समर्थन कर सकता है और न भारत के विरोध में जा सकता है। रूस कभी नहीं चाहेगा कि चीन इस इलाके में महाशक्ति बने और उसकी जगह दुनिया के शक्तिशाली देशों में और निचले पायदान पर जाए. यूएन के सुरक्षा परिषद में आज भी रूस भारत का खुलकर समर्थन करता है।


साउथ चाइना सी पर रूस चीन के ख़िलाफ नहीं बोलता है और यूक्रेन में रूसी हस्तक्षेप पर चीन रूस के विरोध में नहीं बोलता है। संजय पांडे का कहना है कि रूस और चीन आज की तारीख़ में करीब आए हैं। उन्होंने कहा कि मई 2014 में दोनों देशों के बीच 400 बिलियन डॉलर का गैस समझौता हुआ था। हालाँकि 1969 आमूर और उसुरी नदी के तट पर रूस और चीन के बीच एक युद्ध भी हो चुका है। प्रोफेसर पांडे ने कहा कि इस युद्ध में रूस ने चीन पर परमाणु हमले की धमकी तक दे डाली थी। इसमें चीन को क़दम पीछे खींचने पड़े थे। उन्होंने कहा कि 2004 में दोनों देशों के बीच समझौते हुए और सेंट्रल एशिया के कई द्वीपों को रूस ने चीन को सौंप दिया।


कम खर्चा और ज्यादा बचत से चीन परेशान


चीन की सरकार जनता में बचत की बढ़ती प्रवृत्ति से परेशान है। चीन की आर्थिक मजबूती में लोगों की खर्चा करने और उपभोग की ताकत का बहुत बड़ा हाथ रहा है। 2019 में देश की आर्थिक बढ़ोतरी में 60 फीसदी योगदान लोगों के उपभोग का था। लेकिन महामारी के कारण कंज्यूमर आइटम्स की खुदरा बिक्री साल की पहली तिमाही में 19 फीसदी घट गई जो चिंता का कारण बन गई है। पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि लॉकडाउन खुलने के बाद लोग जम कर खरीदारी करेंगे लेकिन ये उम्मीद ध्वस्त हो गई है। सरकार ने कंज्यूमर आइटम्स की बिक्री बढ़ाने के लिए तरह तरह के उपाय भी किए हैं। ‘कंजंप्शन कूपन’ जारी किए गए। 2.8 मिलियन डालर कीमत के इन ई-कूपनों को लोग मनोरंजन और पर्यटन में खर्च कर सकते थे। ये स्कीम 25 शहरों और प्रान्तों में चलायी गई। लेकिन साथ ही साथ लोगों में बचत की भावना भी बढ़ती गई।


नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स के अनुसार 2020 की पहली तिमाही में लोगों ने पिछले साल की तुलना में 6.6 फीसदी ज्यादा रकम अपने खातों में जमा की। 34 हजार लोगों के बीच किया गए एक अध्ययन से पता चला कि आधे से ज्यादा लोग कम खर्चा और ज्यादा बचत की योजना बना रहे हैं। महामारी ने ये सबक सिखा दिया है। कोविड-19 महामारी से पहले चीनी युवा शॉपिंग, विदेश यात्रा और लक्जरी आइटम्स पर दिल खोल के खर्च करते थे। अब महामारी के साथ आए आर्थिक संकट ने एक नई सोच को जन्म दिया है। जो बड़ी कंपनियों या सरकारी उपक्रमों में काम करते हैं वो वेतन कटौती और छटनी से बच गए लेकिन अपने इर्द गिर्द की घटनाओं ने युवाओं को पैसे बचाने की ओर जबर्दस्त तरीके से प्रेरित किया है। लंबे समय तक लॉकडाउन में घर में बंद रहने के साथ युवाओं ने कम में जीना सीख लिया है।  


लद्दाख में अपने सैनिकों की तैनाती करके टकराव का माहौल बनाने वाले चीन को भारत हर मोर्चे पर उसी की भाषा में जवाब देगा। भारत ने हर मोर्चे पर चीन को करारा जवाब देने के लिए रणनीति तैयार कर ली है। पिछले दो दिनों के दौरान दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय बैठकों में व्यापार, कूटनीति और सैन्य आक्रामकता सहित हर मोर्चे पर चीन को जवाब देने की रणनीति तैयार कर ली गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सीडीएस जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुख लद्दाख में पैदा हुई संवेदनशील स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं।


तो वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने अपनी सेना को जंग की तैयारी तेज करने के लिए कहा है। अब दोनों तरफ से टेंशन बढ़ गई है तो आईए जानते हैं किस देश में कितनी ताकत है। भारत और चीन में कौन कितना ताकतवर है। 26 मई को पेश चीन का रक्षा बजट इस साल 179 बिलियन डॉलर रखा गया है। इतने बड़े रक्षा बजट के पीछे देश के सामने खड़ी चुनौतियों को बताया गया है। पिछले साल के मुकाबले में इसे 6.6 प्रतिशत बढ़ाया गया है। भारत की बात की जाए तो हमारे देश का रक्षा बजट साल 2020 के लिए 66.9 बिलियन डॉलर है। चीन का रक्षा बजट इसका 2.7 गुना ज्यादा है। 


अगर युद्ध मिसाइलों की बात करें तो भारत और चीन एक दूसरे की जद में हैं। भारत के पास 5 हजार किलोमीटर तक मार करनेवाली अग्नि-5 मिसाइल है। चीन का अधिकतर हिस्सा इसकी रेंज में है। जबकि चीन के पास क्थ्-41 मिसाइल है। चीन का दावा है कि यह 30 मिनट में अमेरिका पर हमला कर सकती है। इसकी रेंज 9,320 किलोमीटर है। इसे न्यूक्लियर हथियार ले जाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी में फिलहाल 23 लाख कर्मचारी हैं, तो वहीं भारत में सैनिकों की संख्या 21 लाख 40 हजार है। चीन के पास 3,210 विमान हैं। जबिक भारत के पास 2,123 विमान। लड़ाकू विमानों की बात करें तो यह भारत के पास 538 हैं, वहीं चीन के पास 1,232 हैं। हेलिकॉप्टर भारत के पास कुल 722 वहीं चीन के पास 911 हैं। भारत ने फ्रांस के साथ 36 राफेल विमान का सौदा किया है। इनमें से चार जुलाई के आखिर तक भारत आ सकते हैं जिसके बाद भारत और मजबूत होगा।


चीन से कम नहीं भारत


भारत ने हाल के वर्षों में लेटेस्ट सैन्य उपकरण और साजो समान से अपने को सुसज्जित किया है। आंकड़ों के लिहाज से जानते हैं कि डिफेंस मजबूती में भारत और चीन एक दूसरे के सामने कहाँ ठहरते हैं।  लद्दाख और सिक्किम में भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देश की सेनाओं से युद्ध की तैयारी करने को कहा है। सैन्य क्षमता में भारत किसी भी तरह से पीछे नहीं है और उसकी गिनती विश्व की टॉप पाँच सैन्य शक्तियों में की जाती है। भारत और चीन 1962 में युद्ध के मैदान में आमने सामने लड़ चुके हैं। चीन ने उसके बाद किसी पूर्ण युद्ध में हिस्सा नहीं लिया है जबकि भारत ने पाकिस्तान के साथ कई युद्धों का सामना किया हुआ है। चीन की सैन्य क्षमता भले ही आंकड़ों में मजबूत दिखती हो लेकिन उसकी कोई परीक्षा नहीं हुई है। भारत की सैन्य तैयारी का लेवल कहीं ज्यादा ऊंचा रहा है और सेनाएँ किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में कार्रवाई करके लिए तैयार बताई जाती है। वर्तमान परिस्थिति में तैयारियों के लिहाज से भारत ज्यादा मजबूत स्थिति में दिखता है।


चीन के बीच युद्ध की संभावना है? इसके वे तीन कारण बताते हैं। पहला, लद्दाख से दोनों देशों के बीच तनाव की खबर आने पर पहले रक्षा मंत्री ने सेनापतियों के साथ बैठक की और उसके बाद प्रधानमंत्री ने भी उनके साथ गंभीर विचार-विमर्श किया। कोरोना-संकट की गंभीरता के बावजूद संपूर्ण शासन-तंत्र द्वारा भारत-चीन मुद्दों पर घंटों खर्च करने का अर्थ क्या है? दूसरा, लद्दाख और सिक्किम की भारतीय सीमाओं के पास तीन-चार स्थानों पर चीनी सेनाओं के असाधारण जमावड़े का संदेश क्या है? अपने सीमा-पार क्षेत्रों में चीन ने पहले से मजबूत सड़कें, बंकर और फौजी अड्डे बना रखे हैं। अब हर चैकी पर उसने फौजियों की संख्या बढ़ा दी है। तीसरा, भारत में काम कर रहे चीनी कर्मचारियों, व्यापारियों, अफसरों और यात्रियों को वापस चीन ले जाने की कल अचानक घोषणा हुई है। किसी देश से अपने नागरिकों की इस तरह की थोक-वापसी का कारण क्या हो सकता है? अपने नागरिकों की इस तरह की सामूहिक वापसी कोई भी देश तभी करता है, जब उसे युद्ध का खतरा हो। इस खतरे के अंदेशे को बढ़ाने में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंग्रेजी अखबार श्ग्लोबल टाइम्सश् का भी योगदान है। उसमें छपे एक लेख में भारत को धमकी दी गई है। उसको उसकी आक्रामकता के लिए सावधान किया गया है। उसे अमेरिकी चश्मा उतारकर चीन की तरफ देखने के लिए कहा गया है। कुछ विशेषज्ञों ने मुझे यह भी कहा कि भारत से भिड़कर चीन दुनिया का ध्यान बंटाने की रणनीति बना रहा है याने चीन चाहता है कि कोरोना की विश्व-व्यापी महामारी फैलाने में चीन की भूमिका को भूलकर लोगों का ध्यान भारत-चीन युद्ध के मैदान में भटक जाए। उनका मानना यह भी है कि चीन से उखड़नेवाले अमेरिकी उद्योग-धंधे भारत की झोली में न आन पड़ें, इसकी चिंता भी चीन को सता रही है। भारत से भिड़कर वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहता है और अपनी भड़ास भी निकालना चाहता है। उपरोक्त सारे तर्क और तथ्य प्रभावशाली तो हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि वर्तमान परिस्थितियों में भारत या चीन युद्ध करने की मनस्थिति में हैं। जो चीन जापान और ताइवान को गीदड़ भभकियां देता रहा और जो दक्षिण कोरिया और हांगकांग को काबू नहीं कर सका, वह भारत पर हाथ डालने का दुस्साहस कैसे करेगा, क्यों करेगा?