यू.ट्यूब पर घर बैठे देखी प्रदेश की लोक कला प्रदर्शनी
अंतरराष्ट्रीय दिवस पर लोक कला संग्रहालय की पहल

 

लखनऊ । अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर प्रदेश के अपने तरह के एक मात्र केन्द्र, लोक कला संग्रहालय की ओर से लॉकडाउन का पालन करते हुए पहली बार ऑनलाइन प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसमें यू.ट्यूब ही नहीं फेसबुक, वॉट्सऐप आदि से प्रदेश के विभिन्न खंडों की पांरपरिक लोक कलाओं की जानकारियां स्लाइड.शो के माध्यम से दी गई।

प्राणी उद्यान स्थित संग्रहालय परिसर में हर साल अंतरराष्ट्रीय दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से हर उम्र के लोगों को जोड़ा जाता रहा है। इस साल कोरोना संकट के दौर में भी यह क्रम रुका नहीं बल्कि इसने वैश्विक रूप प्राप्त किया। लोक कला संग्रहालय की प्रभारी संग्रहालयाध्यक्ष डॉण्मीनाक्षी खेमका की परिकल्पना में ऑनलाइन प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। यू.ट्यूब पर संग्रहालय की ऑनलाइन प्रदर्शनी के लिंक इसकी मदद से लोगों ने अपने घरों या कार्यालयों में बैठे.बैठे अपने प्रदेश की उन्नत लोक विरासत को जाना। इसमें एक ओर जहां लोक संगीत वाद्यों को शामिल किया गया वही दूसरी ओर लोक हस्तशिल्प को भी। उन्होंने बताया कि वर्ष 1983 में 18 मई को संयुक्त राष्ट्र ने संग्रहालय की विशेषता एवं महत्व को समझते हुए अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था।

‘‘लोक कला संग्रहालय लोक कला के विविध आयाम नाम की इस दिलचस्प और गागर में सागर समेटती ऑनलाइन प्रदर्शनी में सबसे पहले भोजपुर क्षेत्र के दर्शन होते हैं। उसमें वहां के प्रचलित वाद्ययंत्र में ढोलक की तरह दिखने वाले मादकए उंगलियों से बजने वाला झांझ और करताल.मंजीरे को दर्शाया गया। मुखौटा कला में प्रथम देव गणेश के साथ काली माई और महादेव के मुखौटे देखते ही बने। रामलीला के बिना तो प्रदेश की कला यात्रा ही अधूरी रह जाएगी। इसमें जरीदार कपड़े और आभूषण भी ऑनलाइन प्रदर्शनी का आवश्यक अंग बनते है।  अवध क्षेत्र में प्रचलित ब्रास का हुक्काए रामतीर्थ की मूर्तिए टेराकोटा में बनी पहाड़ी औरत, बंदगोभी, हरदल का भित्ती चित्र ज्ञानवर्धक लगा। प्रदर्शनी के माध्यम से बताया जा रहा है कि अवध में प्रचलित जांघिया नटवरी लोक नृत्य की पोशाक खास होती है। उसमें लाल रंग की जाघियां में घुंघरू लगे होते हैं। ब्रज क्षेत्र में बहु प्रचलित सांझी कला में पनिहारिनए गज.ग्राह की कहानी को चित्रित किया गया है। बुंदेलखंड क्षेत्र का अलंकृत हाथ का पंखा, धातु से तैयार खिलौना घोड़ा गाड़ीए मटकी, दवात ही नहीं हरदौला बाबा का चित्र भी आकर्षित करता है। इसमें वह अश्व पर सवार तलवार थामे दर्शाए गए हैं। रुहेलखंड क्षेत्र के लकङी का पात्र हो या फिर कुमायूं क्षेत्र की ज्यूति ऐपण प्रदेश की विविधता को बखूबी दर्शाते हैं। गढ़वाल में प्रचलित जन्माष्टमी और गोवर्धन पट्टा आस्था और कला के गहरे सम्बंधों को उजागर करता है। 

लोक कला संग्रहालय, लखनऊ की प्रभारी डॉण् मीनाक्षी ने बताया कि यू.ट्यूब के कारण इस प्रदर्शनी को लोग अपने सुविधा से अब कभी भी और कहीं भी निरूशुल्क देख सकेंगे। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन प्रदर्शनी का क्रम आगे भी जारी रहेगा। प्रयास किया जाएगा कि हर महीने लोकपरंपराओं पर आधारित जानवर्धन और रोचक एक ऑनलाइन प्रदर्शनी अपलोड की जाए।