यूपी से भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकना आसान नहीं है विपक्ष के लिए

अपने तीन साल के कार्यकाल की वजह से जनता में खासे लोकप्रिय रहे हैं योगी


 


हिन्दुत्व फिर मारेगा हिलोरे


 


यूपी से भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकना आसान नहीं है विपक्ष के लिए



बसपा सुप्रीमो मायावती मजदूरों के मुद्दों पर कांग्रेस पर ज्यादा हमलावर रहीं, जबकि भाजपा पर मेहरबानी

  

 

 

लखनऊ। यूपी में भाजपा के हिन्दुत्ववादी रणनीति के चलते न तो दो लड़कों की दोस्ती बरकरार रख पाई और न ही बुआ-बबुआ का रिश्ता ज्यादा दिन चल पाया। डेढ़ साल बाद यूपी में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से राजनीतिक दलों ने होमवर्क शुरू कर दिया है। भले ही कोरोना संक्रमण की वजह से जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही हो लेकिन विपक्षी दलों अपने-अपने सुर और एजेंडे की वजह से भाजपा को सत्ता से बाहर करने के सपने पर पानी फिरने की पूरी उम्मीद है।

उल्लेखनीय है कि 2017 में प्रदेश के दो प्रमुख दल सपा और बसपा को भाजपा ने अपनी हिन्दुत्व के मुद्दे पर प्रचंड बहुमत लाकर सूबे में 19 मार्च 2017 को योगी सरकार बनी थी। भाजपा ने 312 और सहयोगी दल अपना दल ने 9, सुहेलदेव राजभर भारतीय समाज पार्टी ने 7, बसपा ने 19, सपा ने 47, कांग्रेस ने 7 तथा लोकदल 1 सीट जीती थी। बाद में लोकदल का विधायक भाजपा में शामिल हो गया था। 2017 के विधान सभा चुनाव में सपा, बसपा, कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा का चुनाव कैम्पेन बहुत ही आक्रामक रहा। सपा, बसपा और कांग्रेस ने इस चुनाव में कई गलतियां की। जिसकी वजह से जनता का विश्वास हासिल नहीं कर पाए। बसपा अकेले सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। बसपा को उम्मीद थी उसकी सरकार बनेगी, लेकिन लगभग 100 से अधिक मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव में उतारने का मुद्दा गले की हड्डी बन गया। इसी तरह सत्तारूढ़ रही सपा पार्टी का पारिवारिक कलह भाजपा के लिए वरदान साबित हुआ था। जबकि कांग्रेस का गठबंधन सपा के साथ होने के बावजूद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जोड़ी भी कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाई थी। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार मिश्रा ने कहा कि न तो सपा, बसपा और कांग्रेस की मॉडस आपरेंडी में बदलाव आया है और न ही  भाजपा की आक्रामता में कमी आई है। कोरोना संक्रमण काल के दौरान सूबे के राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर नजर डाले तो उनकी भविष्य की रणनीति का पता चलता है। बसपा सुप्रीमो मायावती मजदूरों के मुद्दों पर कांग्रेस पर ज्यादा हमलावर रहीं, जबकि भाजपा पर मेहरबानी। इससे उपजे संदेह को दूर करने के लिए बसपा सुप्रीमो को एक प्रेसवार्ता में ऐलान करना पड़ा कि किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेंगी। इससे साफ हो गया है कि बसपा आगामी विधान सभा   के चुनाव में पहले गठबंधन नहीं करेगी। अकेले ही मैदान में उतरेगी। मजदूरों को बस उपलब्ध कराए जाने के मुद्दे पर कांग्रेस को सपा का समर्थन जरूर मिला। इससे संकेत मिल रहे हैं कि ये दोनों पाॢटयां एक बार फिर चुनाव में एक साथ आ सकती हैं। जहंा तक बात भाजपा की है तो भाजपा ने अपनी आक्रामता बरकरार रखी है। यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमान संभाल रखी है। अपने तीन साल के कार्यकाल की वजह से जनता में खासे लोकप्रिय हैं।

कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। जिसकी वजह से मजदूरों से लेकर जिलों तक सरकारी सहायता आम आदमी तक पहुंच रही है। भाजपा ने भी मिशन 2022 पर फोकस शुरू कर दिया है। जून माह से भाजपा की गतिविधियां तेज हो जाएंगी। सूबे के हर घर तक केन्द्र और प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को पहुंचाने की तैयारी है। इसके साथ ही विपक्ष की रणनीति को कुंद करने के लिए भाजपा के फ्रंटल संगठन और पदाधिकारी रणनीति बनाने में जुटे हैं। इस साल की अंत तक भाजपा कई बड़े मुद्दों को जनता के बीच लेकर जाएगी जो मोदी सरकार ने अपनी दूसरी सरकार के कार्यकाल के प्रथम माह में पूरे किए थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूपी से भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकना विपक्ष के लिए आसान नहीं है।