कोरोना ने दुनिया भर की इकॉनामी को चौपट कर दिया
कोरोना महामारी ने दुनिया को बहुत बड़ी चुनौती दी
कोरोना से जंग, अनलॉक के संग
मास्क पहनना अब और ज़रूरी हो जाएगा?
अगर आप ऐसी किसी चीज़ को छूते हैं तो खुद को सैनिटाइज़ ज़रूर करें
कोरोना महामारी ने दुनिया को बहुत बड़ी चुनौती दी
अनलॉक का पीरियड काफी बदला हुआ-सा होगा
सबको अपनी तरफ से और आगे बढ़कर काफी सावधानियाँ बरतनी बेहद जरूरी होंगी
पेट्रोल पंप पर संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा?
कोरोना वायरस संक्रमण के मामले दुनियाभर में बढ़ रहे हैं। लेकिन पेट्रोल पंप खुले हैं और अब ऐसे दावे सामने आ रहे हैं जिनमें कहा जा रहा है कि पेट्रोल पंप पर ''वायरस कई दिनों तक मौजूद रह सकता है'। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वायरोलॉजिस्ट डॉ. जॉय ग्रोव के मुताबिक, किसी धातु या प्लास्टिक से बनी सतह पर वायरस कई दिनों तक ज़िंदा रह सकता है। डॉ ग्रोव ने कहा कि वो डॉमिनिक के मामले में कुछ भी नहीं कह सकते क्योंकि संक्रमण का स्तर व्यक्ति दर व्यक्ति अलग होता है। लेकिन सर्विस स्टेशन जैसी जगहों पर वायरस कुछ समय तक रह सकता है जो कि चिंता की बात है। उन्होंने कहा, ''अगर किसी व्यक्ति के हाथों में वायरस है तो ऐसी जगहों वायरस के रह जाने का ख़तरा काफ़ी है।' यानी अगर कोई व्यक्ति किसी धातु या प्लास्टिक से बनी चीज़ को छूता है तो वायरस उसके हाथों से उस चीज़ पर जा सकता है और वहां कई दिनों तक ज़िंदा रह सकता है। इससे दूसरों के संक्रमित होने का ख़तरा बढ़ जाता है। डॉ. ग्रोव का कहना है कि इस महामारी के दौरान लोगों को सतर्कता बरतने की सख़्त ज़रूरत है. सरकार लॉकडाउन को सफल बनाने की कोशिशें करे और बेहतर उदाहरण पेश करे। विशेषज्ञों का कहना है कि पेट्रोल पंप या दूसरी किसी सार्वजनिक जगह पर ऐसी चीज़ों के संपर्क में आने से बचें जिन्हें दूसरे लोग छूते हैं.। अगर आप ऐसी किसी चीज़ को छूते हैं तो खुद को सैनिटाइज़ ज़रूर करें। हाथ बिना धोए अपनी आंख, नाक या मुंह को न छुएं। सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करें या साबुन से अपने हाथ धोएं।
कोरोना वायरस सारी दुनिया के लिए एकदम नया है। ये कहां से आया है?, कैसे रुकेगा? इसका इलाज क्या है? अभी किसी को कुछ नहीं पता। लेकिन एक बात सौ फीसद सही साबित हो गई है कि इसे सोशल डिस्टेंसिंग से रोका जा सकता है.। जिन देशों ने भी इस पर क़ाबू पाया, वहां यही हथियार अपनाया गया है।भारत में भी सोशल डिस्टेंसिंग करने को कहा जा रहा है। और इसीलिए सरकार को लॉकडाउन करना पड़ा। लेकिन ये सोशल डिस्टेंसिंग आख़िर कब तक चलेगी?
पिछली सदी की शुरुआत में जिस वक़्त पहला विश्व युद्ध ख़त्म हो रहा था, तो एक वायरस ने दुनिया पर हमला बोला था। जिसने दुनिया की एक चौथाई आबादी को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था। इस महामारी को आज हम स्पेनिश फ्लू के नाम से जानते हैं। पूरी दुनिया में इस महामारी से पांच से दस करोड़ लोगों की जान चली गई थी। साल 1918 में इस महामारी के दौरान ही अमरीका के कई शहर लिबर्टी बॉन्ड परेड की तैयारी कर रहे थे। इस परेड के ज़रिए यूरोपीय देशों को युद्ध में मदद करने के लिए पैसे जुटाए जा रहे थे। फ़िलाडेल्फ़िया और पेंसिल्वेनिया शहरों के प्रमुखों ने महामारी के बावजूद ये परेड करने का फ़ैसला किया.। जबकि इन शहरों में रह रहे 600 सैनिक पहले से ही स्पेनिश फ़्लू के वायरस से पीड़ित थे। फिर भी यहां परेड निकालने का फ़ैसला लिया गया। वहीं सेंट लुई और मिसौरी राज्यों ने अपने यहां होने वाली परेड रद्द कर दी। और लोगों को जमा होने से रोकने के लिए अन्य क़दम भी उठाए। नतीजा ये रहा है कि फ़िलाडेल्फ़िया में एक महीने में दस हज़ार से ज़्यादा लोग स्पेनिश फ़्लू की चपेट में आकर मर गए। जबकि सेंट लुई जिसने लोगों को जमा नहीं होने दिया था वहां मरने वालों की संख्या 700 से भी कम रही. यानी सेंट लुईस में लोग सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से बच गए। न्यूज़ीलैंड में महामारियों और संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ अरिंदम बसु का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब दो या दो से ज़्यादा लोगों को निजी तौर पर मिलने से रोकना है। और वायरस के फैलने में ये बहुत बड़ी रुकावट का काम करता है। कोविड-19 को रोकने के लिए दुनिया भर में सोशल डिस्टेंसिंग का सहारा लिया जा रहा है। इतिहास में इसकी कई मिसालें मिलती हैं। 1918 में अमरीका ने भी कई शहरों में सार्वजनिक समारोह पर पाबंदी लगा दी थी। स्कूल, थियेटर, चर्च सब बंद कर दिए थे। पूरी एक सदी बाद दुनिया एक बार फिर उसी दौर से गुज़र रही है. ।लेकिन इस इस सदी में दुनिया की आबादी उस दौर की आबादी की तुलना में 6 अरब ज़्यादा हो चुकी है। कोविड-19 भी स्पेनिश फ्लू के वायरस जैसा नहीं है। वैज्ञानिकों के लिए भी ये वायरस रिसर्च का विषय है। फ़िलहाल इस पर क़ाबू पाने का एकमात्र उपाय है-सोशल डिस्टेंसिंग। इसके माध्यम से ही कोविड-19 की इन्फ़ेक्शन चेन तोड़ी जा सकती है।
क्या कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को फ़ेस मास्क पहनना चाहिए? इस सवाल का जवाब अब विश्व स्वास्थ संगठन के कुछ विशेषज्ञ ढूंढेंगे। विशेषज्ञों का यह समूह अब ये जानने के लिए शोध करेगा कि क्या कोरोना वायरस छींक के ज़रिए 6-8 मीटर से भी ज़्यादा दूरी तक जा सकता है? अमरीका में हुए एक अध्ययन का कहना है कि कोविड-19 वायरस छींक के ज़रिए 6-8 मीटर की दूरी तक जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व निदेशक प्रोफ़ेसर हेमैन ने कहा, "नए साक्ष्यों को देखते हुए हम एक बार फिर यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हमें मास्क पहनने के तरीकों में बदलाव करने की ज़रूरत है या नहीं।" विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ संक्रमण के ख़तरे को रोकने के लिए खांसने या छींकने वाले व्यक्ति से एक मीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए। डब्ल्यूएचओ बीमार या कोरोना संक्रमण के लक्षणों वाले व्यक्तियों को मास्क पहनने की सलाह देता है। फ़िलहाल डब्ल्यूएचओ उन्हीं लोगों को मास्क पहनने की सलाह देता है जिन्हें या तो संक्रमण की आशंका हो या वो संक्रमित लोगों की देखभाल कर रहे हों। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बात पर भी ज़ोर देता है कि मास्क पहनने का फ़ायदा तभी होगा जब इन्हें थोड़े समय में बदला जाए, ठीक से डिस्पोज़ किया जाए और बार-बार हाथ धोया जाए। ब्रिटेन और अमरीका समेत कई देश सोशल लोगों को डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने और एक-दूसरे से कम से कम दो मीटर की दूरी बनाए रखने को कह रहे हैं। ये सलाह उन साक्ष्यों पर आधारित है जिनमें पाया गया है कि कोरोना वायरस नाक और मुंह के ज़रिए बाहर आने वाली बूंदों के ज़रिए फैलता है। ऐसा माना जाता है कि संक्रमित व्यक्ति के नाक और मुंह से निकलने वाली ज़्यादातर बूंदें या तो वाष्प बनकर उड़ जाती हैं या ज़मीन पर गिर जाती हैं।
वजन में 1 ग्राम से भी बेहद हल्के और न दिखने वाले इस महावायरस ने वो सनसनी फैलाई जो दोनों विश्वयुध्द के दौरान भी नहीं दिखी। स्वास्थ्य संबंधी दुनियाभर के जानकार, विशेषज्ञ यहाँ तक कि शोधकर्ता भी वुहान के इस वायरस के दुष्परिणामों से बेखबर रहे और जब एकाएक सामना हुआ तो समझ आया कि बात बहुत आगे तक निकल चुकी है। कोरोना महामारी ने तमाम दुनिया को बड़ी नहीं, बहुत बड़ी चुनौती दी।