गरीब परिवारों के बच्चों को मजदूरी मिलती है विरासत में 


विश्व बालश्रम निषेध दिवस पर विशेष




 


 कोरोनाकाल में मासूम बच्चे कर रहे हैं श्रम  

 

गरीब परिवारों के बच्चों को मजदूरी मिलती है विरासत में 

 

भारत का प्रत्येक 11वां बच्चा बाल मजदूरी करता है

 


 

विश्व बालश्रम निषेध दिवस का मुख्य उद्देश्य बालश्रम की वैश्विक समस्या पर ध्यान केंद्रित करके और बाल श्रम को पूरी तरह से खत्म करने के लिए आवश्यक प्रयास करना होता है। इस दिवस को महज रस्म अदायगी के तौर पर नहीं लेना चाहिए, गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है। भारत में बालश्रम प्रतिबंध एवं नियमन संशोधन अधिनियम के तहत 14 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चों से काम कराने पर दो साल की सजा और पचास रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। केंद्र सरकार ने 1979 में बालश्रम की समस्या के अध्ययन और उससे निपटने के लिए उपाय सुझाने हेतु गुरुपादस्वामी समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी सिफारिशें करते हुए पाया कि जबतक गरीबी जारी रहेगी, तबतक बालश्रम को पूरी तरह मिटाना मुश्किल हो सकता है और इसलिए किसी कानूनी उपाय के माध्यम से उसे समूल मिटाने का प्रयास व्यावहारिक प्रस्ताव नहीं होगा। समिति ने महसूस किया था कि इन परिस्थितियों में खतरनाक क्षेत्रों में बालश्रम पर प्रतिबंध लगाना और अन्य क्षेत्रों में कार्यकारी परिस्थितियों को विनियमित करना और उनमें सुधार लाना ही एकमात्र विकल्प है। कामकाजी बच्चों की समस्याओं से निपटने के लिए विविध-नीति दृष्टिकोण आवश्यक है। उसके बाद अबतक कई बार कानून में संशोधन किया गया। स्थिति सुधरने की जगह और विकराल हो गई। शहरों में बाल मजदूरों की बहुत ज्यादा डिमांड रहती है। क्योंकि शहरों में लोग बच्चों से मजदूरी के अलावा बाकी अन्य काम भी जबरन कराते हैं। शहरों में बच्चों का शारीरिक शोषण जमकर किया जा रहा है।

 

बालश्रम जैसी बुराई को बढ़ावा क्यों दिया जाता है इस थ्योरी को भी हमें समझना होगा। दरअसल, छोटे-छोटे बच्चे सस्ती दिहाड़ी के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इसकी भरपाई के लिए मानव तस्कर गिरोह सबसे ज्यादा निशाना बच्चों को बनाते हैं। बालश्रम के लिहाज से भारत की स्थिति अन्य देशों के मुकाबले भयावह है। साथ ही हिंदुस्तान का प्रत्येक 11वां बच्चा बाल मजदूरी करता है। इसके अलावा सबसे ज्यादा शारीरिक, मानसिक शोषण भी छोटे बच्चों का होता है। बाल तस्करी भयानक रूप लेती जा रही है। धनाड्य लोग जमकर बच्चों का शारीरिक शोषण करते हैं। बच्चों की तस्करी करके उन्हें कारखानों में जबरन कैद करके उनसे मजदूरी कराई जाती है। कई तरह के जुल्म नौनिहाल सह रहे हैं। दुख की बात यह है कि भारत के अधिकांश बच्चे अपने अधिकार यानी बाल अधिकार कानून से वंचित हैं। अधिकार के रूप में उन्हें विभिन्न बीमारियों से बचाव हेतु उनका टीकाकरण किया जाना चाहिए, उससे पूरी तरह से वंचित हैं। नौनिहालों के बचपन को बचाने व श्रमिकता भरे दलदल से निकालने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं बल्कि हम सबकी सामाजिक जिम्मेदारी बनती है।


 

गरीब परिवारों के बच्चों को मजदूरी विरासत में मिलती है। ये उन्हीं के हिस्से आती है जो बच्चे शुरू से गरीबी का दंश झेलते हैं। यही कारण है कि बाल मजदूरी हिंदुस्तान की दूसरी सबसे बड़ी समस्या है। वैसे, देखा जाए तो बालश्रम की समस्या न सिर्फ हिंदुस्तान के लिए अभिशाप है बल्कि समूची संसार के लिए भी एक कलंक की तरह है। इससे निजात पाना सभी के लिए बड़ी चुनौती है। सरकारी-सामाजिक स्तर पर हो रही कोशिशों के बावजूद इस विकट समस्या पर अंकुश नहीं लग पा रहा। लाॅकडाउन-कोरोनाकाल में मासूम बच्चे श्रम करते देखे जा रहे हैं। ज्यादातर मुल्कों ने अपने यहां बालश्रम पर प्रतिबंध लगाया हुआ, बावजूद इसके बच्चों से खुलेआम मजदूरी कराई जाती है। चाय की दुकानें हो या छोटे-बड़े होटल, वहां कम उम्र के बच्चे ही काम करते हैं। प्रशासनिक स्तर पर समय-समय पर विभिन्न प्रकार के कदम उठाए जाते हैं। लेकिन खास नतीजा नहीं निकलता। इस क्रम में पूरे संसार भर में बालश्रम की क्रूरता को समाप्त करने के लिए 12 जून की तारीख को मुकर्रर किया गया है जिसे विश्व बालश्रम निषेध दिवस के रूप मनाया जाता है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या है, बाल श्रम को काबू में लाने के लिए विभिन्न देशों द्वारा प्रयास किए जाने के बाद भी इस स्थिति में सुधार नहीं हो पाता?

 

बहरहाल बालश्रम रोकने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाए जाने की जरूरत है। बालश्रम मुख्यता गरीबी का मुख्य हिस्सा समझा जाता है। भारत जैसे विकासशील देश में लोग अपने बच्चों और अपने पेट की भूख मिटाने के लिए श्रम की भट्ठियों में तपाने के लिए विवश हैं। बुंदेलखंड से कुछ वक्त पहले एक खबर आई थी जिसमें वहां के गरीब किसानों ने अपने बच्चों को राजस्थान के व्यापारियों के पास गिरवी रख दिए थे। बच्चों से अनैतिक कार्य कराना हो, भीख मंगवाना हो, मजदूरी करानी हो, कई ऐसे काम हैं जो बच्चों से कराए जा रहे हैं। ये तस्वीरें हमारी तरक्की पर पलीता लगाने का काम करती हैं। हिंदुस्तान में बच्चे आज भी चुनावी मुद्दों, राजनैतिक, सामाजिक प्राथमिकताओं में नहीं गिने जाते। बच्चों से कई अपराध जुड़े हैं लेकिन उनकी समस्या कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनती। इनको परेशानी विरासत में मिलती है। खबरें ऐसी भी सुनने को मिलती हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से बच्चों के लिए जो कल्याणकारी योजनाएं चलती हैं उसे स्थानीय प्रशासन उनतक पहुंचाते ही नहीं। अगर ऐसा है तो बहुत चिंतनीय बात है। ऐसा कतई नहीं होना चाहिए।

 

यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत में आर्थिक रूप से पिछड़े करीब बीस करोड़ बच्चे मजदूरी करते हैं। इनकी सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है दूसरे नंबर पर बिहार आता है। इन बच्चों का इस्तेमाल सस्ते श्रमिकों के रूप में किया जाता है। लोग इन बच्चों को कम दिहाड़ी पर रखते हैं लेकिन काम बड़ों से ज्यादा लेते हैं। भारत वह देश है, जो विविधता में एकता के सिद्वांत में विश्वास रखता है। जहां विभिन्नधर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय और भाषा के लोग एक साथ रहते हैं। कर्तव्य, नैतिकता और जिम्मेदारी की दुहाई दी जाती है। लेकिन इन सबके बीच बालश्रम जैसी बुराई खुलेआम होती है। सभी की नजरों के सामने। फिर हम क्यों इस बुराई से अपनी नजरें फेर लेते हैं। रोड पर मजदूरी करते देख एक मासूम बच्चे से हम क्यों अपनी आंखे मूंद लेते हैं। उस समय क्यों हम अपने हिस्से की सामाजिक जिम्मेदारी पर पर्दा डाल लेते हैं। ऐसे कई सवाल हैं। पर, उसका जवाब हमारे पास नहीं होता। इस समस्या को रोकने के लिए सामाजिक स्तर पर लोगों को आगे आना होगा। जहां भी बच्चे मजदूरी करते दिखें, उनकी शिकायत स्थानीय प्रशासन से करें। लगातार जब ऐसी कार्रवाई होना शुरू हो जाएगी तो स्थिति में सुधार शुरू होगा।