पाँच अगस्त को रचा जायेगा नया इतिहास, खत्म होगा 500 वर्षों का वनवास

नरेन्द्र मोदी अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन अनुष्ठान करेंगे




राममंदिर भूमि पूजन के दिन देशभर में दीपावली मनाने की तैयारी


पाँच अगस्त को रचा जायेगा नया इतिहास, खत्म होगा 500 वर्षों का वनवास


मंदिर के भूमि पूजन पर शंका करना व्यर्थ


18 जुलाई को तय हुई थी 5 अगस्त की तारीख


राम मंदिर भूमि पूजन के मुहूर्त पर उठे सवाल


शंकराचार्य ने 5 अगस्त को बताया अशुभ घड़ी


त्रिनाथ कुमार शर्मा  


लखनऊ । अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन की तिथि पांच अगस्त को तय की गई है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि पूजन करेंगे। हालांकि अब इस मुहूर्त को लेकर सवाल उठ रहे हैं। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने पांच अगस्त की तिथि को 'अशुभ घड़ी' करार दिया है।  शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि हमें कोई पद नहीं चाहिए और न ही हम राम मंदिर के ट्रस्टी बनना चाहते हैं। हम केवल यह चाहते हैं कि मंदिर का निर्माण ठीक ढंग से हो और आधारशिला सही समय पर रखी जाए। अभी जो तिथि तय की गई है वह 'अशुभ घड़ी' है। 18 जुलाई को  श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की अयोध्या में हुई बैठक में लिए गए निर्णय के बाद पांच अगस्त को भूमि पूजन का दिन तय किया गया था। ट्रस्ट की बैठक में ही भूमि पूजन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आमंत्रित करने का फैसला लिया गया था और उसी दिन उन्हें आमंत्रित किया गया था। बताया जाता है कि ट्रस्ट के आमंत्रण को प्रधानमंत्री कार्यकाल ने स्वीकृति दे दी थी। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी ने बुधवार को कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रखेंगे और भूमि पूजन करेंगे। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के लिए सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया जाएगा। 


अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन का विधान तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। प्रथम चरण में सूर्यादि नवग्रह का आह्वान किया जाएगा। दूसरे चरण में इंद्रादि प्रधान देवताओं एवं गंधर्वों का आह्वान होगा। तीसरे चरण में महागणपति पूजन के साथ भूमिपूजन किया जाएगा। इन तीनों चरणों के दौरान वैदिक ब्राह्मणों द्वारा चतुर्वेद पारायण निरंतर होता रहेगा। भूमिपूजन के कर्मकांड के साक्षी काशी के तीन विद्वान बनेंगे। पांच अगस्त को अभिजित मुहूर्त में होने वाला भूमि पूजन शास्त्रों के अनुसार हो, इसकी निगरानी करने के लिए काशी विद्वत परिषद के तीन पदाधिकारियों को अयोध्या आमंत्रित किया गया है। काशी विद्वत परिषद के मंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार भूमि पूजन तीन चरणों में संपन्न होगा। भूमिपूजन के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से 11 वैदिक ब्राह्मणों को अयोध्या बुलाया गया है। काशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ज्योतिषविद् पं. रामचंद्र पांडेय, बीएचयू के ज्योतिष विभागाध्यक्ष एवं परिषद के संगठन मंत्री पं. विनय कुमार पांडेय और मंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी चार अगस्त की शाम अयोध्या रवाना होंगे। पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 51 किलो की रजत शिला का पूजन करेंगे। सोमवार को काशी विद्वत परिषद् की ऑनलाइन बैठक हुई। बैठक में अध्यक्ष प्रो. रामयत्न शुक्ल, महामंत्री प्रो. शिवजी उपाध्याय, प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी, प्रो राजाराम शुक्ल, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो. विंधेश्वरी मिश्र ने विचार विमर्श किया। इस बैठक में भूमिपूजन के कर्मकांड के विभिन्न चरणों में पूर्ण किए जाने वाले विधानों पर चर्चा की गई। यह भी तय हुआ कि अयोध्या में भूमि पूजन के उपरांत प्रधानमंत्री जब भी काशी आएंगे, तब उनका अभिनंदन परिषद की ओर से किया जाएगा। प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि हरिशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी के बीच विवाह आदि मंगल कार्य करने का निषेध है, लेकिन पूजन आदि धार्मिक कृत्य करने पर कोई रोक नहीं है। श्रीरामचरितमानस के एक प्रसंग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब राजा दशरथ भगवान् श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए महर्षि वशिष्ठ से शुभ मुहूर्त निकालने को कहते हैं, तब ज्योतिष शास्त्र के अष्टादश प्रवर्तकों में प्रमुख महर्षि वशिष्ठ जी कहते हैं 'बेगि  बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाज। सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराज।।' अर्थात् हे राजन्! अब देर न कीजिये। शीघ्र सब समाज को जुटाइए, जब श्रीराम राज्याभिषेक कराना चाहेंगे, वही समय और दिन शुभ और मंगल होगा। इस दृष्टि से श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन जब किया जाएगा, वही शुभ दिन और मंगल मुहूर्त बन जाएगा। 



आखिरकार वह ऐतिहासिक घड़ी आ ही गई, जिसका पांच सौ से अधिक वर्षों से राम भक्त इंतजार कर रहे थे। पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या में प्रभु राम की जन्मभूमि पर जब राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे तो उन असंख्य लोगों की आत्मा को भी शांति मिलेगी, जिन्होंने पिछले पांच सौ सालों में राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा करने के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी। ऐसे लोगों के लिए राम मंदिर निर्माण होना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बने यह हर हिन्दू चाहता था। राम मंदिर निर्माण के समय केन्द्र में मोदी और प्रदेश में योगी सरकार का होना भी कम संयोग नहीं है। अगर केन्द्र और राज्य दोनों जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकारें नहीं होती तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि अभी यह विवाद और लम्बा खिंचता। पिछले पांच सौ वर्षों से राम मंदिर निर्माण में कई तरह की अड़चनें खड़ी की जा रही थीं।


राम मंदिर निर्माण की शुभ घड़ी पर पांच सौ वर्ष पुराने विवाद के इतिहास को कैसे भुलाया जा सकता है, जब वर्ष 1528 में में श्रीराम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी, जबकि हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। बताते चलें कि 1528 में राम मंदिर तोड़ा गया था, इससे दो वर्ष पूर्व 1526 में भारत में मुगलकाल शुरू हुआ था, मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, अधिकतर मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे। मुगल शासन 17वीं शताब्दी के आखिर में और 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। जब तक देश पर मुगलों का राज रहा तब तक राम भक्तों की आवाज को किसी न किसी तरह से दबा दिया जाता था। इस दौरान काशी से लेकर मथुरा तक तमाम मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बना दी गई थीं। 


पांच अगस्त को दोपहर सवा 12 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन अनुष्ठान करेंगे तो उसी दिन रात्रि को पूरी दुनिया में फैले राम भक्त दीपावली से पूर्व ही घर-घर दीप प्रज्ज्वलित करके खुशियां मनाएंगे। विश्व हिन्दू परिषद इस दिन प्रत्येक हिंदू परिवार को गौरवमयी अवसर से जोड़ने के लिए वृहद दीपोत्सव अभियान चला रहा है। शहर हो या गांव घर-घर, दीपोत्सव मनाया जाएगा। रामजन्मभूमि पर भूमि पूजन अनुष्ठान के समन्वयक-संयोजक आचार्य इंद्रदेव शास्त्री के अनुसार भूमि पूजन कार्यक्रम पहली अगस्त से शुरू हो जायेगा। पहले दिन गणपति पूजन एवं पंचांग पूजन के साथ अनुष्ठान की शुरुआत होगी। साथ ही वाल्मीकि रामायण एवं कई अन्य शास्त्रीय ग्रंथों का पाठ शुरू होगा। दूसरे दिन पाठ की निरंतरता के साथ रामार्चा पूजन और प्रवचन का क्रम संयोजित होगा, जबकि पांच अगस्त को शास्त्रानुकूल भूमि पूजन का पारंपरिक अनुष्ठान होगा। इसे 10 से 15 वैदिक आचार्य संपादित कराएंगे। इनमें चुनिंदा स्थानीय के साथ दिल्ली एवं बनारस तक के विद्वान शामिल होंगे। संभवना यही जताई जा रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा।


पांच सौ वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद जब मंदिर के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम होने जा रहा है तो इस मौके पर उन साधु-संतों, विश्व हिन्दू परिषद के लोगों और राजनीतिज्ञों को कैसे भुलाया जा सकता है जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए लम्बा संघर्ष किया था। इसीलिए प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के समय लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, पूर्व सांसद और बजरंगी नेता विनय कटियार, साध्वी उमा भारती आदि सहित शिवसेना के नेताओं के भी अयोध्या पहुंचने की संभावना है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के कई मंत्री भी इस मौके पर अयोध्या में नजर आ सकते हैं।


भूमि पूजन के दौरान संभवतः कांग्रेस, सपा-बसपा जैसे दलों के नेताओं की उपस्थिति नजर नहीं आए क्योंकि वोट बैंक की सियासत के चलते मंदिर निर्माण के प्रति उक्त दलों के नेताओं ने कभी रूचि नहीं दिखाई। उक्त दलों में राम भक्त भले मिल जाएंगे, लेकिन राम मंदिर निर्माण में इन दलों के नेताओं का योगदान शून्य ही नहीं निगेटिव भी रहा। पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को कौन भूल सकता है जिन्होंने निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलवाई थीं। इसी प्रकार बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम तो रामजन्म भूमि पर शौचालय बनाने की वकालत किया करते थे। वोट बैंक की सियासत के चलते कांग्रेस नेता लगातार मंदिर निर्माण की राह में अड़चन डालने का काम करते रहे। कांग्रेस के कारण ही यह मामला लम्बे समय तक अदालतों में लटका रहा। कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने तो विवादित ढांचा गिरने के बाद यहां तक घोषणा कर दी थी कि बाबरी मस्जिद का पुनः निर्माण कराया जाएगा।


बहरहाल, एक तरफ जहां राम मंदिर का निर्माण शुरू होने जा रहा है, वहीं दूसरी और योगी सरकार ने इसे विश्वस्तरीय बनाने के लिए कमर कस ली है। योगी सरकार की अयोध्या को लेकर प्रतिबद्धता इस बात से भी समझी जा सकती है कि उसके द्वारा नई सुविधाओं के विकास की सीमा देखते हुए इससे डेढ़ किमी की दूरी पर 400 हेक्टेयर क्षेत्र में नई अयोध्या बसाने की योजना बनाई जा रही है। नई नगरी की खासियत यह होगी कि इसमें आधुनिक सुविधायुक्त रहन-सहन, शिक्षा-दीक्षा, खेल मनोरंजन, व्यायम-चिकित्सा और पर्यटन-परिवहन की सुविधाएं तो होंगी ही, इसकी स्थापना इस तरह की जाएगी कि यहां पहुंच कर त्रेतायुगीन अयोध्या तीर्थटन की दृष्टि से श्रद्धालुओं का सबसे बड़ा गंतव्य बन जाएगी। बड़ी संख्या में घरेलू-विदेशी पर्यटक यहां पहुंचेंगे जिनकी सुविधा के लिए नई अयोध्या बसाने की योजना दूरदृष्टि का बढ़िया उदाहरण है


अयोध्या सरयू नदी के बिना अधूरी है। इसीलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरयू पर गुप्तार घाट से नया घाट तक पक्का पुल बनवाने की मंजूरी दी है, जिस पर तीव्र गाति से काम चल रहा है। यह देश की किसी भी नदी के तट पर सबसे लंबा पक्का घाट होगा। यह घाट बन जाने पर सरयू में नौका विहार को भी बढ़ावा मिलेगा। मुख्यमंत्री की ही योजना से नया घाट स्थित राम की पैड़ी का सौंदर्यीकरण किया गया है। जहां तक प्राचीन अयोध्या का सवाल है, प्रभु राम की अवतार-नगरी होने के कारण इसका कण-कण परमपूज्य माना जाता है, पर पुरानी, घनी और बेतरतीब बसावट के कारण इसकी सीमा में मौजूदा सुविधाओं के विस्तार एवं नई सुविधाओं की स्थापना की ज्यादा गुंजाइश नहीं है। इसके बावजूद राम जन्मभूमि, जहां राम मंदिर का निर्माण होगा और हनुमान गढ़ी के आसपास यथासंभव नागरिक एवं पर्यटन सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण किए जाने की योजना बन रही है।