...असल में नुकसान होगा तो बिचैलियों, आढ़तियों का जो मंडियों में कमीशन लेते हैं

किसानों को गुमराह करने की सियासत


 कृषि सुधार लागू होने से किसान और उसकी उपज पर प्राइवेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा


सारा फायदा बड़ी कंपनियों को मिलेगा


उपज की ऑनलाइन खरीद-फरोख्द भी की जा सकेगी


...असल में नुकसान होगा तो बिचैलियों, आढ़तियों का जो मंडियों में कमीशन लेते हैं


 आशीष वशिष्ठ


कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधारों और किसानों को लाभ पहुंचाने की नीयत से केंद्र सरकार तीन बिल लाई है। विपक्ष संसद से सड़क तक इन बिलों का विरोध कर रहा है। विरोध के स्वर सरकार के अंदर से भी उठ रहे हैं। एनडीए का पुराना साथी अकाली दल सरकार के इस कदम से बेहद नाराज है। अकाली दल के कोटे से केंद्रीय कैबिनट मंत्री हरसिमरत कौर ने विरोध में अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया है। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान संगठन विरोध जता रहे हैं। विपक्षी दल और किसान संगठन किसानों को यह कहकर बरगला रहे हैं कि इन बिलों की आड़ में सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म करने की दिशा में काम कर रही है। सरकार निजी कंपनियों को लाभ देने और किसानों को भूमिहीन करने की नीयत से ये बिल लायी है। नये तथाकथित कृषि सुधार लागू होने से किसान और उसकी उपज पर प्राइवेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा और सारा फायदा बड़ी कंपनियों को मिलेगा। असल में ये अध्यादेश किसानों की बजाय बिचैलियों के लिए नुकसानदायक हैं। इसलिये विपक्ष, किसान संगठन और व्यापारियों की मजबूत लाॅबी किसानों की आड़ में विरोधी माहौल तैयार कर रही है।



जिस बिल का ज्यादा विरोध हो रहा है, वो अध्यादेश ‘कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 है। यह बिल कृषि उपज की बिक्री हेतु पहले की वर्तमान व्यवस्था के समानांतर एक नयी व्यवस्था बनाने की दिशा में क्रांतिकारी कदम है। यह अध्यादेश राज्यों के कृषि उत्पाद मार्केट (एपीएमसी) कानूनों के अंतर्गत अधिसूचित बाजारों के बाहर किसानों की उपज के फ्री व्यापार की सुविधा देता है। इस अध्यादेश के प्रावधान राज्यों के एपीएमसी एक्ट्स के प्रावधानों के होते हुए भी लागू रहेंगे। सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी। जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे।


इस अध्यादेश का मूल मकसद एक देश, एक कृषि बाजार की अवधारणा को बढ़ावा देना और एपीएमसी बाजारों की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के साथ ही अवसर मुहैया कराना है, ताकि किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिल सके। इसके अलावा, यह अध्यादेश इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग को भी बढ़ावा देगा। यानी उपज की ऑनलाइन खरीद-फरोख्द भी की जा सकेगी। बिल में यह भी व्यवस्था है कि कोई भी व्यापार करने पर राज्य सरकार किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स से कोई बाजार फीस, सेस या प्रभार नहीं वसूलेगी।


विशेषज्ञों का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में कहीं भी बेचने की आजादी देता है, इस तरह इससे वन नेशन वन मार्केट का मॉडल लागू हो जाएगा। इस अध्यादेश के समर्थकों का मानना है कि इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। जबकि विरोधी कह रहे हैं कि इस अध्यादेश से मंडी एक्ट केवल मंडी तक ही सीमित कर दिया गया है और मंडी में खरीद-फरोख्त पर शुल्क लगेगा जबकि बाहर बेचने-खरीदने पर इससे छूट मिलेगी। इस नियम से खासकर मंडी व्यापारी और आढ़ती बहुत नाराज हैं। उनका कहना है कि इससे बाहरी या प्राइवेट कारोबारियों को फायदा पहुंचेगा।


जमीनी हकीकत यह है कि नई व्यवस्था एक नया विकल्प है, जो वर्तमान मंडी व्यवस्था के साथ-साथ चलती रहेगी। किसानों को एपीएमसी के अलावा अपनी उपज बेचने का विकल्प मिला है, देश में जहां भाव ज्यादा मिले किसान वहां अपनी उपज बेच सकता है। असल में नुकसान होगा तो बिचैलियों, आढ़तियों का जो मंडियों में कमीशन लेते हैं। नेताओं की चिंता मंडियों पर कमजोर होने को लेकर है। हरियाणा और पंजाब में आढ़तियों यानी बिचैलियों का दबदबा जगजाहिर है। इनकी ताकतवर लाॅबी के आगे असली किसान अपने मन की बात नहीं कह पा रहा है। तमाम किसानों का यह मानना है कि मंडी की वजह से किसानों का नुकसान हुआ है और बाजार खुलने से किसानों को जरूर लाभ होगा।



मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात करता है। छोटे किसानों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है। वर्तमान में कुछ राज्यों में अनुबंध खेती के लिये एपीएमसी के द्वारा पंजीकरण किये जाने की जरूरत होती है। मतलब यह है कि अनुबंध समझौतों को एपीएमसी के साथ दर्ज किया जाता है जो इन अनुबंधों से उत्पन्न होने वाले विवादों को हल करने का काम करती है। इसके अलावा, अनुबंध खेती करने के लिये एपीएमसी को बाजार शुल्क और लेवी का भुगतान किया जाता है। मॉडल एपीएमसी अधिनियम, 2003 के तहत राज्यों को अनुबंध खेती से संबंधित कानूनों को लागू करने संबंधी अधिकार प्रदत्त किये जाते हैं। इस अधिनियम के परिणामस्वरूप 20 राज्यों द्वारा अपने एपीएमसी अधिनियमों में अनुबंध खेती हेतु संशोधन किये गए हैं, इतना ही नहीं, पंजाब में तो अनुबंध खेती पर अलग से एक कानून का निर्माण किया है।


छोटी जोत के किसानों को मत है कि सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का जो फैसला लिया है, वो सही है। उनका ये भी कहना है कि ये फैसला पहले ही हो जाना चाहिए था। वास्तव में कृषि भूमि सीलिंग कानून की वजह से किसानों को नुकसान हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक देश के 85 फीसदी किसान दो एकड़ कृषि भूमि के नीचे है। सीलिंग कानून के तहत हर राज्य अपने हिसाब से कृषि भूमि की सीमा तय करता है। किसानों का भी मानना है कि जमीन के छोटे टुकड़े के साथ किसानों का जीना नामुमकिन जैसा है। छोटे जमीन वाले किसान ही तो शहर की ओर आए थे और अपना पेट पाल रहे थे, लॉकडाउन हुआ तो वे फिर गांव लौट गए। ऐसे में अगर सरकार ने ये कदम पहले उठाये होते तो किसान और अर्थव्यवस्था दोनों ज्यादा मजबूत होते। जमीनी हकीकत ये भी है कि छोटे किसानों को बैंक भी कर्ज नहीं देता है और दो से चार एकड़ की जमीन पर साल भर कैसे गुजारा होगा यह अपने आप में सोचने वाला विषय है। खेती एक नुकसानदायक काम है और इसमें बड़ी कंपनियां नहीं आती है।


सरकार का मानना है कि यह अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा। इससे किसानों की आय में सुधार होगा। सरकार का मानना है कि इस बिल से बिचैलियों की भूमिका खत्म होगी और किसानों को अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा। हालांकि, विरोध करने वालों का दावा है कि अब निजी कंपनियां खेती करेंगी जबकि किसान मजदूर बन जाएगा। किसान नेताओं का कहना है कि इसमें एग्रीमेंट की समयसीमा तो बताई गई है लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं किया गया है।


आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के जरिए अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर कर दिया गया है। यानी अब इनका स्टोरेज किया जा सकेगा। सरकार का मानना है कि किसानों की अच्छी पैदावार होने के बावजूद कोल्ड स्टोरेज या निर्यात की सुविधाओं के अभाव में और वस्तु अधिनियम के चलते अपनी फसल के सही दाम नहीं ले पाते हैं। विपक्ष का कहना है कि उपज के स्टोरेज से कालाबाजारी भी बढ़ेगी और बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे। वहीं जब मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा तो किसान पूरी तरफ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर निर्भर हो जाएगा। इसका नतीजा ये होगा कि बड़ी कंपनियां ही फसलों की कीमत तय करेंगी। कांग्रेस ने तो इसे नया जमींदारी सिस्टम तक बता दिया है।


इसमें कोई दो राय नहीं है कि तमाम लाभकारी प्रावधानों के बावजूद प्रत्येक व्यवस्था और कानून में सुधार की गंुजाइश बनी रहती है। चूंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था केवल गेंहू, धान जैसी कुछ फसलों और कुछ राज्यों तक ही वास्तविक रूप से सीमित रही है अतः एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए। किसानों से एमएसपी से नीचे फसलों की खरीद वर्जित हो और इसके उल्लघंन पर सख्त कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए। विपक्ष और किसान संगठनों के विरोध के बीच सरकार इन सुधारों को कैसे लागू करवाती हैं, यह देखना अहम होगा। मुद्दाविहीन विपक्ष किसानों को इन अध्यादेश की आड़ में बरगलाकर अपनी सियासत चमका रहा है। विपक्ष को घटिया राजनीति और किसानो को बरगालने से बाज आना चाहिए। असल में ये बिल कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने की दिशा में बड़ा कदम साबित होंगे।