योगी ही नहीं पिछली सरकारों के दामन पर हैं 'रेपकांड के दाग

लखनऊ। एक के बाद एक हो रही महिला उत्पीडऩ की घटनाओं को लेकर प्रदेश की योगी सरकार इन दिनों सुर्ख़ियो में है। योगी सरकार के तीन साल से ज्यादा कार्यकाल में महिला उत्पीडऩ की तीसरी बड़ी घटना है जिसकों को लेकर राजधानी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक में उबाल है। हाथरस में एक दलित युवती के साथ बीते माह 14 सितंबर को बलात्कार के बाद उसकी नृशंसतापूर्वक हत्या कर दी गयी। इसी तरह की घटना हाल ही में बलरामपुर जनपद में हुई। इन दोनों घटनाओं ने प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ विपक्ष को घेरने का मजबूत हथियार दिया है। राजनीतिक दलों के साथ महिला संगठन भी सरकार की कार्रवाई से असंतुष्ट है।


 

विपक्ष का कहना है कि जिस तरह प्रदेश में महिला उत्पीडऩ की घटनाएं बढ़ी है उससे बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओं का नारा हवा-हवाई है। हाल की महिला उत्पीडऩ की घटनाओं के तेजी से बढ़े ग्राफ  ने सरकार की पेशानी पर बल डाल दिया है। सरकार द्वारा की जा रही त्वरित कार्रवाई के बावजूद सरकार की यह कार्रवाई नाकाफी लगती है। हाल की घटनाओं से पहले पहले योगी सरकार में इसी तरह की घटना उन्नाव जनपद में एक बलात्कार पीडि़ता को जलाकर मार डालने का प्रयास किया गया। बाद में पीडि़ता की मौत भी हो गयी। ऐसी ही एक अन्य घटना में रेपपीडि़ता को एक्सीडेंट के जरिए मारने का प्रयास किया गया जिसमे सत्तारूढ़ दल के ही पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर इस समय तिहाड़ जेल में है। हाथरस और बलरामपुर की घटना ने राजनीतिक दलों के साथ महिला संगठनों को और उग्र कर दिया। जिस सरकार में बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं का नारा दिया जाता हो उसी सरकार में बच्चियों के अलावा महिलाओं के साथ बलात्कार उन्हे मार देने की घटनाओं ने यूपी में विपक्ष  को सरकार के खिलाफ बैठे बिठाए एक मुद्दा दिया है। सरकार भी इन घटनाओं को लेकर सदन से सड़क तक इस मुद्दे पर सरकार असहज है। 

 

हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं है जब इस तरह की घटनाएं हो रही है इससे पहले इसी प्रदेश में इस तरह की घटनाओं ने एक सरकार की बलि तक ले ली थी। प्रदेश में इस तरह की घटना के चलते जहां एक मुख्यमंत्री को अपनी सरकार गंवानी पड़ी तो दूसरे मुख्यमंत्री ने कानून व्यवस्था न संभाल पाने को मुद्दा बनाकर अपने पद से  इस्तीफा दे दिया था। बात अस्सी के दशक से पहले की है। 1979-80 में प्रदेश में बनारसी दास के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार के कार्यकाल में देवरिया में नारायणपुर के हाटा थाना क्षेत्र में हुई बलात्कार की घटना सरकार के पतन का कारण बनी। बनारसीदास सरकार बर्खास्त कर दी गयी थी। इसके पले हुई शुभ्रा लाहिड़़ी कांड ने भी बनारसी दास सरकार बर्खास्तगी को और बल दिया। एमए की छात्रा शुभ्रा लखनऊ के आलमबाग पोस्ट आफिस से अगवा हुई थी। आठ-नौ दिन बाद उसकी अर्धनग्न लाश शहर के पॉश एरिया मॉलएवन्यू के नाले में बरामद की गयी थी। इस मामले की सीबीआई जांच हुई। जबकि नारायणपुर की घटना की गंभीरता को देखते हुए इंदिरा गांधी ने स्वयं नारायणपुर क्षेत्र का दौरा किया था। 

 


1981-82 में श्रीपति मिश्र के मुख्यमंत्रित्वकाल में बस्ती के सिसवा बाजार में गैंगरेप की घटना में पुलिसकर्मियो की ही संलिप्तता पाई गयी। पूरा थाना निलंबित हुआ। इसी तरह के एक प्रकारण विश्वनाथ प्रताप सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में बागपत में माया त्यागी कांड को लेकर दिल्ली तक कोहराम मचा रहा। 16 जून 1980 की इस घटना में पुलिसकर्मियों ने माया त्यागी के साथ जो अमानुषिक कृत्य किया वो तो किया ही उसके भाइयों को भी डकैत बताकर उनके खिलाफ उत्पीडन की कार्रवाई की। इस घटना में माया त्यागी को निर्वस्त्र करके उसके साथ सादी वर्दी में पुलिसकर्मियों द्वारा गैंगरेप की घटना को अंजाम दिया गया। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि इसकी जांच के लिए विधिवत पीएन राय आयोग का गठन किया गया। जिसमें घटना को सही पाते हुए पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार ठहराया गया। मामला अदालत पहुंचा और आरोपियों को सजा हुई। इस मामले में आरोपी एक सब इंस्पेक्टर की हत्या कर दी गयी। सजा पाने वालों में पुुलिसकर्मी शामिल थे।

 

कंाग्रेेस के ही शासनकाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऊषा धीमान नाम की महिला से बलात्कार की घटना को लेकर काफी बवाल मचा। इस घटना में पहले उसके बलात्कार की घटना को अंजाम दिया फिर उसे घुमाया गया। महिला उत्पीडऩ की घटना के अलावा कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने में विफल होने की पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने भाई की हत्या के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। कालपी के बेहमई में दस्यु सुंदरी फूलन देवी द्वारा 14 फरवरी 1981 को 22 ठाकुरों का सामूहिक संहार किये जाने के बाद वीपी सिंह सरकार द्वारा चलाए गए दस्यु उन्मूलन के बाद श्री भसह के न्यायाधीश भाई की इलाहाबाद में हत्या कर दी गई थी।