<no title> कौन सी चौखट है जहाँ कोई पुलिस वाला अपना दर्द बता सके ?

 


 


 


 


लखनऊ।पिछले कुछ समय में उत्तर प्रदेश में जहाँ आपराधिक मुठभेड़ में वीरगति पाने वाले उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानो के कुछ मामले सामने आये जिसमे सब इंस्पेक्टर जे पी सिंह , सब इंस्पेक्टर सहजोर सिंह , सिपाही हर्ष चौधरी, सिपाही अंकित तोमर आदि प्रमुख हैं तो उसी के मुकाबले खुद से खुद को ही मौत देने वाले भी कई अधिकारियो और कर्मचारियों के मामले भी प्रकाश में आये . यद्दपि विभाग का एक मजबूत तंत्र ऐसे आत्महत्या करने वाले तमाम मामलो को दबा देता है और मरने वाले का राज़ सिर्फ राज़ बन कर रह जाता है .. इस लिस्ट में पी पी एस अधिकारी राजेश साहनी जैसे वो जांबाज़ अफसर भी हैं जिनकी तूती भले ही दुर्दांत आतंकियों में बोली गयी लेकिन आख़िरकार अपने ही विभाग से वो हार गये ।


 कभी एक छोटे से वीडियो से निलंबित, कभी वर्दी फटी होने के कारण लाइन हाजिर, कभी आवाज ऊंची होने के चलते ट्रांसफर जैसे मामले तो आम हैं इस विभाग में.. भारत की सेना जैसा अनुशासन रखने की आशा होती है पुलिस के जवानो और अधिकारियो से लेकिन सवाल खड़ा होता है कि क्या उनकी सुविधाएं और परवरिश सेना के जैसी है .. उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के रानोपाली के चौकी इंचार्ज श्री निर्मल सिंह जी को उनके ही आवास में सांप काट लेता है क्योंकि आवास जर्जर हालत में होता है और वो इंसानों से बेहतर सांपो के रहने के लिए प्रयोग हो रहा होता है . .इलाहाबाद के दारागंज थाने की बांध में बनी पुलिस चौकी टीन शेड से ढकी है जहाँ दोपहर में चावल पानी में रख देने से गर्मी के चलते वो खुद ही उबल जाएगा .. फिर भी उनकी पेंशन खत्म कर डाली गयी , उनकी वर्दी का सालाना भत्ता इतना है कि उसमे अब मोज़े तक नहीं आते लेकिन फिर भी ऊपर अनुशासन ठीक फ़ौज वाला चाहिए ।


ध्यान देने योग्य है कि उत्तर प्रदेश पुलिस पहले से ही स्टाफ की कमी से जूझ रही है.. एक सिपाही और पुलिस इंस्पेक्टर को कभी कभी 48 से 72 घंटे की ड्यूटी करनी होती है लेकिन फिर भी उसकी एक झपकी या उसकी वर्दी की कहीं से खुली सिलाई उसकी नौकरी को खत्म कर सकती है .. उत्तर प्रदेश के जवान और अधिकारियो से अगर पूछा जाय कि क्या वो किसी बड़े से बड़े अपराधी से भी ज़रा सा भी विचलित होते हैं जो उनका उत्तर आएगा कि हरगिज नहीं क्योकि अभी भी उत्तर प्रदेश पुलिस का विभाग ऐसे कुछ उच्च अधिकारियो से भरा पड़ा है जिनका खौफ अपराधियों में भले ही अपराधियों में जरा सा भी न हो लेकिन उन्होंने अपने खुद के विभाग और अपने अधिनस्थों में दहशत बना रखी है , वो अधीनस्थ अधिकारी जो हर दिन हर पल उनके आगे सर झुका कर खड़े रहते हैं और जी सर जी सर कह कर हर पल इसी चिंता में रहते हैं कि कहीं उनसे कोई गलती तो नहीं हो गयी .. सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य ये है की आत्महत्या करने वाले पुलिस के जवान या अधिकारी किसी भी प्रकार से भ्र्ष्टाचार आदि में लिप्त नहीं पाए गए या निष्कलंक छवि के थे .. फिर सवाल तो बनता ही है कि उन्हें खुद से ही खुद को खत्म क्यों करना पड़ा ।


पुलिस वो विभाग है जहाँ 99.99 % सही कार्य करने के बाद भी मात्र .1 % गलती पर सब शून्य पर आ जाया करता है ।अपराधियों के बजाय अपने ही विभाग में दहशत बनाने की प्रथा आज से नहीं सन 1861 से चल रही है और उसी कानून के चलते आज तक न जाने कितने कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियो और जवानो ने असहनीय पीड़ा झेली है . यहाँ चर्चा करते हैं सहारनपुर पुलिस के दिवंगत सब इंस्पेक्टर कुलदीप सिंह की , कुलदीप सिंह में नेक व्यक्तियों को ले कर तमाम अच्छे और नेक भाव थे और अपराधियों को ले कर अटल और कड़े इरादे लेकिन उनके मनोबल को तोड़ने का दम कोई बाहरी अपराधी नहीं कर पाया. लेकिन अंत में वो अपने  विभाग से हार गये और खुद से ही खुद को खत्म कर लिया । कुलदीप सिंह के बहनोई सुधीर बालियान ने आरोप लगाया कि पुलिस के एक अधिकारी द्वारा कुलदीप का उत्पीड़न किया जा रहा था। उस पर काम का दबाव बनाया जा रहा था। बार बार उसकी ड्यूटी लगाई जा रही थी। कुलदीप ने उनसे इस बारे में बताया भी था। इसी वजह से कुलदीप मानसिक दबाव में था।


मूल रूप से मुजफ्फरनगर के थाना सिखेड़ा के ग्राम जन्धेड़ी निवासी कुलदीप का परिवार काफी समय से मेरठ के कंकरखेड़ा स्थित श्रद्धापुरी में रह रहा है। उसके पिता अशोक कुमार सेना से सेवानिवृत्त हैं। बड़ा भाई कंकरखेड़ा में ही मेडिकल स्टोर चलाता है। कुलदीप के दो बच्चे हैं. मेरठ के कंकरखेड़ा निवासी कुलदीप सिंह चार माह से प्रशिक्षु उपनिरीक्षक के रूप में देवबन्द की रणखंडी पुलिस चौकी पर तैनात था। गुरुवार सुबह 8:00 बजे वह अपनी ड्यूटी समाप्त करने के बाद देवबंद के रेलवे रोड स्थित अपने आवास पर पहुंचा। उसके बाद उसने चादर से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। साथी ने काफी देर तक उसका फोन लगाया। लेकिन जब काफी देर तक फोन नहीं मिला तो वह उसके आवास पर पहुंचा। दरवाजा न खुलने पर उसने पुलिस को भी सूचना दी। वहीं पुलिस ने मौके पर पहुंचकर दरवाजा तोड़कर अंदर जाकर देखा तो कुलदीप सिंह फांसी पर लटका हुआ मिला। पुलिस का कहना है कि कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है।


चर्चा है कि एसआई पुलिस ​अधिकारियों के शोषण से कई दिनों से परेशान था। फिलहाल, इस मामले में कोई भी अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।चर्चा है कि मरने से कुछ मिनट पहले ही उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर अपनी पत्नी को व्हाट्सएप पर कोई आडियो मैसेज छोड़ा था, जिसमें उन्होंने महकमे के ही कुछ अधिकारियों पर शोषण करने समेत गंभीर आरोप लगाए। हालांकि, पुलिस के अधिकारी पूरे मामले पर चुप्पी साधे है और जिस कमरे में आत्महत्या हुई पुलिस ने उस कमरे को सील कर दिया है. यदि मामला सिर्फ थाना प्रभारी तक सीमित होता तो यकीनन सब इंस्पेक्टर कुलदीप सिंह के पास और ऊपर जाने के रास्ते बचे होते .. लेकिन निश्चित तौर पर सब इंस्पेक्टर कुलदीप ने ऊपर के भी सभी रास्ते बंद पाए होंगे जिसके चलते उन्होंने मौत को ही अपनी मुक्ति और राहत का मार्ग पाया होगा ..


कुलदीप सिंह तो एक बहुत छोटा सा उदहारण है , ऐसे सैकड़ो पुलिस वाले हैं जिन्हें ये असहनीय पीड़ा आज भी झेलनी पड़ रही है ।


 आतंक, अपराध के साथ साथ असामजिक तत्वों के झूठे आरोपों से लड़ता एक पुलिसकर्मी अपनी व्यथा किस से बताये ?


उन उच्चाधिकारियों की लिस्ट कब जारी होगी जिनका खौफ अपराधियों में नहीं बल्कि अपने खुद विभाग में है ?


क्या पहले से ही संख्या बल की कमी से जूझ रही उत्तर प्रदेश पुलिस के लोगों के ऊपर ऐसे ही दबाव बना कर उन्हें आत्महत्या और प्रताड़ित कर के नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर देने से ही उत्तर प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था मुस्तैद हो सकती है ?


ऐसे हालत को देख कर और जान कर कोई क्यों भर्ती होगा पुलिस में ?


पुलिस का मनोबल कौन तोड़ रहा ? कोई अपराधी या खुद अपने ही ?


वो कौन सी चौखट है जहाँ कोई पुलिस वाला अपना दर्द बता सके ?


दुर्दांत अपराधियों और कुख्यात आतंकियों तक के मानवाधिकार के लिए हर पल चिंतित विभाग अपने ही जवानो के मानवाधिकार की चिंता कब करेगा ?


लगातार अपने ही विभाग की प्रताड़ना से हो रही पुलिसकर्मियों की आत्महत्या के बाद भी ऐसे मामलो पर लगाम न लगने का दोषी कौन है और अभी और कितनी बलि चढनी बाकी है ?