भाषणों में शांति की कोशिशें कहीं नहीं दिखीं

पुलवामा हमले को देश के इतिहास में हमेशा एक त्रासदी के रूप में याद किया जायेगा। भले ही बहुत से लोग इसे स्वीकार न करें लेकिन यह हमारी सेना के लिए एक त्रासदी ही थी जब बिना युद्ध किये हमारे बहुत से जवान शहीद हो गये। भले ही केंद्र की मोदी सरकार ने इस हमले के बाद की गयी सर्जिकल स्ट्राइक से इस हमले का बदला लेने की बात कहकर इसकी इतिश्री कर दी हो। इस स्ट्राइक के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह अपनी हर सभा में सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र कर रहे हैं वह भले ही उन्हें गौरान्वित करने की अनुभूति करा रही हो लेकिन जिस तरह से पुलवाला हमला हुआ उस पर सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि यह भी सरकार की नाकामी ही थी जिसके चलते इतने जवाब शहीद हो गये। दुखद यह है कि इस बिंदु पर कोई चर्चा नहीं हो रही कि आखिर कैसे आतंकियों को पता चला कि अमुक बस में ही बुलेट प्रूफ नहीं है। कैसे जिस सड़क पर सेना का काफिला गुजर रहा था वहां 35० किलो आरडीएक्स लेकर कैसे कोई कार खड़ी रही। आदि-आदि कई सवाल हैं। कोई नहीं पूछ रहा कि जवाब दिया तो अच्छी बात है पर हमला क्यों हुआ। आखिर सरकार इस पर खुद तो बोलेगी नहीं क्योंकि पीएम मोदी और उनके रणनीतिकार व सभी सहयोगी मंत्री व पदाधिकारी इस मुद्दे की हर सभा में इस तरह चर्चा करते हैं कि मानो उन्होंने देश को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।


दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि इस मुद्दे ने उनको इतनी ऊर्जा दे दी जो अगला चुनाव जिताने के लिए पर्याप्त है। अगर ऊर्जा न होती तो देश से कैसे रफाएल घोटाला, किसान आंदोलन, बेरोजगारी, घटती जीडीपी, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, प्रदूषण, नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे मुद्दे चर्चा से गायब हो गए हैं और कई टीवी चैनलों के एंकर भाजपा की जीहुजूरी में पाकिस्तान को सबक सिखाने में लगे हैं। दरअसल भाजपा के पिछले पांच सालों के शासन में देश की राजनीति ही नहीं बदली, मीडिया भी बदल गया है। भाजपा के लिए हिदुत्व, देशभक्ति और वीरता सब समानार्थी शब्द हैं। यहां तक कि जब अभिनंदन पाकिस्तान की कैद में थे, तब मोदीजी मेरा बूथ सबसे मजबूत कार्यक्रम में व्यस्त थे और तब भी मीडिया ने सवाल नहीं किया। नहीं पूछा कि साढ़े तीन सौ किलो विस्फोटक की बात कितनी सच है, अगर इतना विस्फोटक सच में था, तो अतिसुरक्षित क्षेत्र तक कैसे पहुंचा?
पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने राष्ट्रभक्ति को खूब भुनाया। यूनिवर्सिटियों में 2०7 फीट ऊँचे खंभे पर राष्ट्रीय झंडा लहराने का आदेश देना, जेएनयू में टैंक खड़ा करने की बात करना, तिरंगा यात्रा निकालना और भारत माता की जय के नारे लगाना, सवाल पूछने वालों को देशद्रोही बताना ऐसे तमाम हथकंडे भाजपा सरकार में आजमाए गए। इस तथाकथित देशभक्ति में जनता और जनहित से जुड़े सवाल गायब ही हो गए। जिसका असर था कि भाजपा नोटबंदी के तुरंत बाद हुए चुनाव में भी यूपी में 325 के करिश्माई आंकड़े को हासिल कर पायी।
बालाकोट में असल में कितने आतंकी मारे गए। सरकार इसका आधिकारिक तौर पर खुलासा क्यों नहीं करती? इस तरह के कोई सवाल नहीं पूछ रहे। और जो पूछ रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह मिल रही है। मोदीजी ने पटना में विजय संकल्प रैली में भी यही कहा कि विपक्ष सेना का मनोबल गिरा रहा है और इससे दुश्मनों का चेहरा खिल रहा है। वो खुद को चौकन्ना चौकीदार बता रहे हैं।
रामविलास पासवान मोदीजी की छाती को अब 156 इंच की बता रहे हैं। इस तरह की बातों से चुनावी लाभ मिल सकता है, लेकिन आखिर में देश का नुकसान ही होगा। 14 फरवरी को पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुआ हमला, जम्मू-कश्मीर की अब तक की सबसे भीषण त्रासदी है। लेकिन इस दुखद घटना के बाद से जिस तरह मोदीजी अपनी रैलियों और सभाओं में पुलवामा हमले और बालाकोट स्ट्राइक को भुना रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि इतना गंभीर मसला भी उनके लिए चुनाव मुद्दा बन गया। 14 फरवरी को उन्होंने घटना की जानकारी के बाद भी उत्तराखंड में फोन से रैली को संबोधित किया। उसके बाद 15 फरवरी को वंदेभारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई। झांसी में 2० हजार करोड़ की परियोजनाओं को शुरु करते हुए कहा कि बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। 16 फरवरी को सर्वदलीय बैठक में न आकर महाराष्ट्र के यवतमाल और धुले में रैलियों को संबोधित किया और कहा कि हर परिवार को मैं ये भरोसा देता हूं कि हर आंसू का जवाब लिया जाएगा। 17 फरवरी को झारखंड और बिहार में अपने भाषणों में पुलवामा को बखूबी भुनाया। एयर स्ट्राइक के बाद तो मोदीजी के भाषणों में वीर रस कुछ ज्यादा ही टपकने लगा। राजस्थान के चुरु से लेकर तमिलनाडु में कन्याकुमारी तक हर जगह उन्होंने जनता को यही बताया कि कैसे उनकी सरकार ने पाकिस्तान को मजा चखाया और ये तो अभी शुरुआत है। चुरू में उनके मंच पर शहीदों की तस्वीरें लगाकर सियासत चमकायी गयी। इस बीच मोदीजी द.कोरिया से शांति पुरस्कार भी लेकर लौट गए लेकिन उनके भाषणों में शांति की कोशिशें कहीं नहीं दिखीं। अंत में बस इतना ही, मोदी जी बस ऐसा प्रयास कीजिये कि दोबारा कोई सैनिक शहीद न हो। इस पर सियासत न कीजिये गंभीरता दिखाइये। आप प्रधानमंत्री हैं देश को आप से बहुत उम्मीद है।