किसानों का फसल बीमा कराया जाना सुनिश्चित किया जाये : निदेशक
फसल प्रबंधन की रणनीति एवं आकस्मिक कार्य योजना 2019 पर बैठक सम्पन्न

लखनऊ,। कृषि निदेशालय, लखनऊ के सभागार में गत दिवस ''इन्हेसिंग द प्रीपेयर्डनेस फाॅर एग्रीकल्चरल कन्टीजेंसीज ड्यूरिंग खरीफ-2019'' हेतु आकस्मिक कार्ययोजना विषयक एक इन्टरफेस बैठक सम्पन्न हुई। इसमें मौसम की सम्भावित स्थिति एवं इस हेतु आकस्मिक योजना और रणनीति पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।

यह जानकारी कृषि निदेशक  सोराज सिंह ने देते हुए बताया कि मुख्य रूप से कृषि विभाग द्वारा प्रदेश के लिए फसल प्रबन्धन की रणनीति एवं आकस्मिक कार्ययोजना-2019 पर विस्तृत चर्चा व विचार-विमर्श किया गया। केन्द्रीय बरानी कृषि अनुसंधान संस्थान (क्रीडा) एवं भारी दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर व क्षेत्रीय निदेशक, भारतीय मौसम विभाग द्वारा खरीफ-2019 में सम्भावित मानसून पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए अवगत कराया गया कि प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में सामान्य वर्षा व पश्चिमी क्षेत्रों में औसत से कम वर्षा हो सकती है।

श्री सिंह ने बताया कि वर्षा आधारित एवं शुष्क क्षेत्रों जहां मक्का, बाजरा, ज्वार तिल की खेती की जा सकती है, उसका नियमित अनुश्रवण एवं खेतों में नमी संरक्षण की आवश्यकता है। जिन जनपदों में भूगर्भ जल की रिचार्जिंग का óोत मानसून की वर्षा ही है, वहां पर धान का डायरेक्ट सीडेड विधि से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। नमी संरक्षण हेतु जागरूकता कार्यक्रम तथा ब्राड बेड फरो मैथेड को प्रोत्साहित किया जाना उचित होगा।

कृषि निदेशक ने बताया कि कम वर्षा की स्थिति में परिस्थितियों के अनुरूप विभिन्न फसलों की कम अवधि के उपलब्ध निम्न प्रजातियों की बुवाई को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, इस हेतु वैज्ञानिकों द्वारा सलाह दी गयी कि बाजरा की के0बी0एच0 सुपरबार, 86 एम 84, जे0के0बी0एच0-676, धनशक्ति  (अवधि 75-80 दिन) प्रजातियां, मक्का की डिकाल्ब-9162, एन0एम0एच0-920, युवराज गोल्ड, पी-3544 (अवधि 100-110 दिन) प्रजातियां, उर्दू की आई0पी0यू0 2-43, पी0यू0-40, वल्लभउर्द (अवधि 70-80 दिन) प्रजातियां, मूंग की आई0पी0एम0 2-14, श्वेता, स्वाति (अवधि 60-70 दिन), अरहर-पी0ए0-291, पूसा-2001 एवं 2002 (अवधि 150-180 दिन), प्रजातियां, तिल की आर0टी0-346, आर0टी0-351 (अवधि 75-85 दिन) प्रजातियां, मूंगफली-अवतार, दिव्या (अवधि 110-125 दिन) प्रजातियां, धान की पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1121 (125-135 दिन) की प्रजातियों की बुवाई उचित होगी। अधिक विलम्ब से मानसून आने एवं कम वर्षा की स्थिति में वैकल्पिक फसलों जैसे-अरहर, उर्द, मूंग, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, तिल इत्यादि के बीजों की समुचित व्यवस्था की जाये। ऐसे क्षेत्र जहां धान की रोपाई न हो सके अथवा रोपाई के बाद सूखे के कारण फसल नष्ट होने की आशंका हो, वहां तोरिया की फसल हेतु पर्याप्त मात्रा में बीज की उपलब्धता सुनिश्चित कराते हुए तोरिया की फसल लेने हेतु कृषकों को प्रेरित किया जाय।

श्री सिंह ने बताया कि उपस्थित अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों द्वारा खरीफ-2019 में लागू प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनान्तर्गत विभिन्न जनपदों विशेषकर सम्भावित सूखा प्रभावित जिलों में अभियान चलाकर अधिक से अधिक किसानों का फसल बीमा कराया जाना सुनिश्चित किया जाये। इसके साथ ही राजकीय नलकूपों/निजी नलकूपों पर निरन्तर पर्यवेक्षण व अनुश्रवण करने की आवश्यकता होगी, जिससे फसलें पानी के अभाव में सूख न पाये। वर्षा के कम होने की स्थिति में मल्चिंग के साथ-साथ ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई विधियों के प्रयोग हेतु कृषकों को निरन्तर प्रशिक्षित व प्रेरित करने की आवश्यकता होगी।

बैठक में केन्द्रीय बरानी कृषि अनुसंधान संस्थान (क्रीडा) हैदाराबाद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों/कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक, निदेशक गन्ना विकास निदेशालय भारत सरकार, क्षेत्रीय निदेशक भारतीय मौसम विभाग के साथ-साथ निदेशक, कृषि व कृषि विभाग के समस्त मण्डलीय संयुक्त कृषि निदेशक, बुन्देलखण्ड क्षेत्र के कृषि विभाग के अधिकारी एवं सिंचाई विभाग व उद्यान विभाग के मुख्यालय स्तर के अधिकारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।