सच्चाई, अहिंसा और धर्म के पालन करने का संदेश देता है जन्माष्टमी पर्व

अधिकार पाने के लिए कठोर संघर्ष और कर्म के महत्व की सिक्षा भी प्रदान करता है जन्माष्टमी


“पलकें झुकें, और नमन हो जाये…
मस्तक झुके, और वंदन हो जाये…
ऐसी नज़र, कहाँ से लाऊं मेरे कन्हैया,
की आपको याद करूँ और आपके दर्शन हो जाए…”


“तू चाहे तो मेरा हर काम साकार हो जाये,
तेरी कृपा से खुशियों की बहार हो जाये,
यूँ तो कर्म मेरे भी कुछ ख़ास अच्छे नहीं
मगर तेरी नज़र पड़े तो मेरा उद्धार हो जाये.”


 जन्माष्टमी श्री कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है । हिन्दू धर्म के अनुसार लोगों का मानना है की श्री कृष्ण जी भगवान् विष्णु के अवतार के रूप में लोगों के दुःख दर्द को दूर करने के लिए धरती में मानव रूप धारण कर मथुरा में जन्म लिए थे । श्री कृष्णा का अवतार अज्ञानता पर रौशनी और बुराई के अंत का प्रतिक है । कृष्ण जी का आकाश सामान नीला रूप भगवान के असीम क्षमता और शक्ति को दर्शाता है. उनके तन का पिला वस्त्र धरती के रंग रूप का वर्णन प्रकट करता है । एक शुद्ध, अनंत चेतना का रूप लेकर कृष्ण जी का धरती पर जन्म हुआ था जिसने बुराईयों का विनाश किया और अच्छाई को पुनर्जीवित किया । कृष्ण के बाँसुरी से निकलते मनमोहक मधुर आवाज़ दिव्य शक्ति का प्रतिक है जो लोगों के पीड़ा को हर लेता है ।


श्री कृष्ण  जिन्हें हम प्रेम से गोविंद, बालगोपाल, कान्हा, लड्डू गोपाल, माखन चोर और 108 अनेकों नाम से पुकारते हैं  ।उनका जन्म 5 हजार साल पहले मथुरा के एक कारागार में हुआ था । कृष्ण जी देवकी और वासुदेव के पुत्र थे लेकिन उनका पालन पोषण यशोदा मैया और नन्द जी के द्वारा हुआ था । हिन्दू धर्म के अनुसार कृष्ण जी देवता विष्णु के आठवें अवतार थे जिन्होंने मानव रूप लेकर हमारे धरती पर जन्म लिया था ताकि वो समस्त मनुष्य की रक्षा कर सकें और उनके दुःख दर्द को दूर कर सकें । जन्माष्टमी वाले दिन मथुरा वासियों के लिए बहुत ही ख़ास रहता है क्यूंकि मथुरा में ही भगवन कृष्ण का जन्म हुआ था. वहां पूर्ण भक्ति, आनंद और समर्पण के साथ लोग जन्माष्टमी का जश्न मनाते हैं ।


इस दिन कई जगहों पर रासलीला का आयोजन किया जाता है जिसमे कृष्ण लीला का नाटक होता है । देवालयों और धार्मिक स्थानों पर गीता का अखंड पाठ चलता है । जन्माष्टमी के दिन देश में कई जगहों पर दही-हांडी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जात है । इसमें नन्हे बालकों द्वारा दही से भरी मटकी फोड़ी जाती है । मथुरा और वृंदावन जहाँ श्री कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था वहां की जन्माष्टमी विश्व प्रसिद्द है । भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और क्रीडा स्थली होने के कारण यहाँ के मंदिरों की सजावट, उनमे होने वाली रासलीला एवं कृष्ण-चरित्र-गान बड़े ही सुन्दर होते हैं ।देश विदेश से लोग वहां कृष्ण जी के दर्शन करने आते हैं ।


जन्माष्टमी पर्व हमें सच्चाई, अहिंसा और धर्म के पालन करने का संदेश देता है । ये पर्व भगवन श्री कृष्ण के दिखाये गए पथ पर चलने और उनके आदर्शों का पालन कर मानवजाति के विकास के लिए अपना योगदान देने की तरफ हमें संदेश देता है । यह त्यौहार हमें जहाँ एक और श्री कृष्ण के बाल रूप का स्मरण कराता है वहीँ दूसरी ओर अपना उचित अधिकार पाने के लिए कठोर संघर्ष और कर्म के महत्व की सिक्षा भी प्रदान करता है ।


मथुरा में एक राजा था कंस जो अपने राज्य के लोगों पर अत्याचार करता था । उसकी सबसे प्रिय एक बहन थी जिसका नाम देवकी था । देवकी का विवाह कंस के मित्र वासुदेव के साथ हुआ. कंस देवकी से बहुत प्रेम करता था इतना की विवाह के पश्चात उसने अपनी बहन को स्वयं ससुराल छोड़ने जा रहा था । तभी आकाशवाणी हुई की कंस का वध देवकी और वासुदेव का आठवां संतान करेगा. इतना सुनते ही कंस ने अपनी बहन का ससुराल जाने वाला रथ वापस मोड़ लिया और देवकी को मारना चाहा लेकिन वासुदेव के समझाने पर उसने देवकी को छोड़ दिया । वासुदेव ने कंस से कहा जब उनकी आठवी पुत्र जन्म लेगी तो वो उसे अपने हाथों से कंस को सौंप देंगे. वासुदेव की बात सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया । देवकी का जब भी कोई संतान होता तो कंस उस शिशु का तुरंत हत्या कर देता । इसी तरह से उसने देवकी के सात संतानों की हत्या करने का पाप कर चूका था ।


कंस का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था, लोगों को उससे बचाने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लिया । आख़िरकार श्री कृष्ण का जन्म हुआ और स्वयं भगवान विष्णु देवकी और वासुदेव के सामने प्रकट हुए । उन्होंने वासुदेव से कहा की जो आप की आठवीं संतान हुई है वह मैं हूँ और उनके पुत्र की सुरक्षा के लिए उन्होंने वासुदेव के मित्र नन्द जी के घर वृंदावन में छोड़ आने को कहा. नन्द जी के यहाँ उसी दिन एक पुत्री जन्मी थी । वासुदेव ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और वो बालक को नन्द जी के यहाँ लेकर जाने लगे ।


उस दिन बहुत ही भयंकर वर्षा हो रही थी, जब वासुदेव नन्हे कृष्ण को एक टोकरे में ले जाने लगे तब उनके शारीर से बंधी जंजीर अपने आप की खुल गई और कारागार के दरवाजे भी अपने आप खुल गए. उन्हें वहां रोकने वाला कोई नहीं था क्योंकि भगवान की लीला से वहां के सारे सिपाही गहरी निंद्रा में सो गए थे । जब वासुदेव नदी पार कर रहे थे तब नदी भी छोटी हो गई और उन्हें रास्ता देने लगी. इस तरह वासुदेव कृष्ण जी को लेकर अपने मित्र नन्द जी के यहाँ पहुँच गए और उनकी सुपुत्री के जगह अपने बालक को पालने में बदलकर रख दिया । वासुदेव उस नन्ही सी बालिका को अपने साथ कारागार में वापस ले गए ।


जब कंस को यह बात पता चली की देवकी की आठवीं संतान ने जन्म ले लिया है तब उसे मारने वह कारागार पहुँच गया । जैसे ही कंश कन्या को मारने वाला होता है तभी वो कन्या अपने असली रूप में आ जाती है । वो कन्या एक देवी रहती है जो कंस को बताती है की तुझे मारने वाला बालक सुरक्षित वृंदावन पहुँच गया है और उसके हाथों तेरा विनाश निश्चित है । इतना कहकर वो देवी अदृश्य हो जाती है । कंस यह सुनकर भयभीत हो जाता है और कृष्ण को मारने के लिए अनेक प्रयास करता है । लेकिन वह अपने हर प्रयास में विफल हो जाता है आखिर वो समय आता है जब कंस कृष्ण के हाथों मारा जाता है और उसके अत्याचार से कृष्ण के माता पिता और नगरवासी मुक्त हो जाते हैं ।