जैन दर्शन में दीपावली को निर्वाण उत्सव के रूप में मनाया जाता है

प्रदीप कुमार सिंह


27 अक्टूबर - विश्वात्मा महावीर के निर्वाण दिवस पर शत्-शत् नमन! आइये, जय जगत तथा वोटरशिप के अखण्ड दीप जलाकर दीपावली को


विश्व बन्धुत्व तथा प्रत्येक परिवार की आर्थिक समृद्धि के रूप में मनायें विश्वात्मा भरत गांधी 


       दीपावली विश्वात्मा महावीर के निर्वाण से जुड़ी घटना भी है। महावीर ने 30 वर्ष की उम्र में संन्यास ग्रहण किया था। भारतीय संस्कृति में पर्वों का अत्यधिक महत्व है। पर्व में व्यक्ति, आनंद, उल्लास, स्वास्थ्य, समृद्धि तथा उत्सव से भर जाता है। दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की परम्परा भी भारतीय संस्कृति में है। दीपावली से अनेक महापुरूषों के जीवन की घटनाएं जुड़ी हुई हैं। मर्यादा पुरूषोत्तम राम के 14 वर्ष के वनवास तथा रावण का वध करके पुनः अयोध्या में प्रवेश की सुखद स्मृति से जुड़ा है। जैन दर्शन में दीपावली को निर्वाण उत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रतिवर्ष अधिकांश जैन भाई-बहन, तीन दिन के उपवास के साथ स्वाध्याय व ध्यान में लीन रहकर इस पर्व को मनाते हैं। इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक मनुष्य अपनी देह का सदुपयोग लोक कल्याण के लिए करने में संलग्न रहेंगे तो दिवाली मनाना सार्थक होगा। मनुष्य जीवन का महान उपहार हमें नौकरी या व्यवसाय लोक कल्याण भावना से करते हुए आत्मा को प्रकाशित करने के महान उद्देश्य के लिए मिला है। हमें जीवन का उपयोग इस ढंग से करना चाहिए कि हमारे आध्यात्मिक दीपक जलते रहें। जीवन में मर्यादा, विश्व एकता, जय जगत, अहिंसा, करूणा के दीपक जलें, यही आध्यात्मिक दीपावली है और दीपावली पर्व की सच्ची सीख है।   महावीर का जन्म वैशाली (बिहार) के एक राज परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशिला था। बचपन से ही वे 23वें तीर्थकर पाश्र्वनाथ की आध्यात्मिक शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे। एक राजा के पुत्र के रूप में युद्ध के बारे में उनका विचार भिन्न प्रकार का था। वे क्रोध, मोह, लालच, विलासिता पूर्ण वस्तुओं आदि पर विजय पाना सच्ची विजय मानते थे। वे आरामदायक और विलासपूर्ण जीवन पसंद नहीं करते थे। उनका विश्वास एक न्यायपूर्ण प्रजातंत्र व्यवस्था में था।


 महावीर जैसे -जैसे बड़े हुए उनका ध्यान समाज में फैले छूआछूत, भेदभाव, धार्मिक रूढ़िवादिता, अन्याय, गरीबी, दुखों तथा रोगों की पीड़ा की तरफ ज्यादा खिंचने लगा। इन्हीं सब बातों ने महावीर के मस्तिष्क में कोलाहल मचा रखा था। वह समय देश की संस्कृति के इतिहास का अंधकारमय काल था। एक राजा के घर में पैदा होने के बाद भी महावीर जी ने युवाकाल में अपने घर को त्याग कर वन में जाकर लोक कल्याण के द्वारा आत्मिक आनन्द को पाने का रास्ता चुना।


साढ़े बारह वर्ष तक के तप के बाद उन्हें 'कैवल्य' ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुई। उन्होंने पूर्ण ज्ञान होने के पश्चात 30 वर्ष तक निरन्तर जन-जन को सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूक किया। विश्व बंधुत्व और समता का आलोक फैलाने वाले महावीर स्वामी, 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में तीन दिन तक लगातार उपदेश देते हुए दीपावली की अर्धरात्रि में निर्वाण को प्राप्त हुए अर्थात् सिद्ध-बुद्ध मुक्त हो गए। 


जैन धर्म ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न पक्षों को बहुत प्रभावित किया है। दर्शन, कला और साहित्य के क्षेत्र में जैन धर्म का महत्वपूर्ण योगदान है। जैन धर्म में वैज्ञानिक तर्कों के साथ अपने सिद्धान्तों को जन-जन तक पहंुचाने का प्रयास किया गया है। अहिंसा का सिद्धान्त जैन धर्म की मुख्य शिक्षा है। जैन धर्म में पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधे तक की हत्या न करने का अनुरोध किया गया है। भारत हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिक्ख, सिंधी, पारसी, ईसाई आदि महान धर्मों का पवित्र घर है। इन धर्मों ने मनुष्य जाति को जीवन जीने की सच्ची राह दिखलाई है। जैन धर्म भारत की पवित्र भूमि में जन्मा पवित्र धर्म और विश्वव्यापी दर्शन है। 


अहिंसा की शिक्षा से ही समस्त देश में दया को ही धर्म प्रधान अंग माना जाता है। जैन धर्म की मानवीय शिक्षाओं से प्रेरित होकर कई दानवीरों ने उपासना स्थलों, औषधालयों, विश्रामालयों एवं पाठशालाओं के निर्माण करवाये। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धान्त 'अनेकांतवाद' है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है। जीव या आत्मा का मूल स्वभाव शुद्ध, बुद्ध तथा सच्चिदानंदमय है। आत्मा अजर अमर अविनाशी है।


जैनों में 24 तीर्थकर हंै। यथार्थ में जैन धर्म के तत्वों को संग्रह करके प्रकट करने वाले महावीर स्वामी ही हुए हैं। पंचशील सिद्धान्त के प्रर्वतक एवं जैन धर्म के चैबीसवंे तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उन्होंने दुनियाँ को सत्य, अहिंसा तथा त्याग जैसे उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की सफल कोशिश की है। महावीर स्वामी ने जैन धर्म में अपेक्षित सुधार करके इसका व्यापक स्तर पर प्रचार किया। महावीर स्वामी के कारण ही 23वें तीर्थकर पाश्र्वनाथ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों ने एक विशाल धर्म का रूप धारण किया। विश्वात्मा महावीर ने संसार में बढ़ती हिंसक सोच तथा अमानवीयता को शांत करने के लिए मुख्य रूप से अहिंसा के विचारों पर आधारित उपदेश दिए, उनके उपदेश तथा ज्ञान बेहद सरल भाषा में है जो आम जनमानस को आसानी से समझ आ जाते हैं। विश्वात्मा महावीर ने इस विश्व को ''जियो और जीने दो'' का एक महान संदेश दिया।


विश्वात्मा महावीर को अमावस के दिन ज्ञान हुआ था। ओशो ने इसका बहुत प्यारा वर्णन किया है, 'महावीर के ज्ञान की घटना जीवन का जो विरोधाभास है, उसे स्पष्ट करती है कि कितना ही अंधेरा हों, घबराना नहीं चाहिए। अमावस की गहरी अंधेरी रात में भी निर्वाण घटा है। जीवन में कितना की कीचड़ हो, घबराना मत, इसी कीचड़ में सुन्दर कमल खिले हैं। मिट्टी का दीया हो, तो चिंता मत करना कि मिट्टी के दीये में क्या होगा? मिट्टी पृथ्वी का हिस्सा है, ज्योति आकाश का। इसलिए ज्योति हमेशा ऊपर की तरफ भागती रहती है। ज्योति हमेशा हमें ज्ञान की ऊँचाइयों की ओर ले जाती है।' इसका स्मरण रखना ही दिवाली के उत्सव का उद्देश्य है। नेलशन मंडेला ने कहा है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व को बदला जा सकता है। प्रसिद्ध शिक्षाविद् डा. जगदीश गांधी का कहना है कि विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।               


हमारा प्रयास होना चाहिए कि हमारे घरों में सभी धर्माें की पवित्र पुस्तकंे तथा उनके मार्गदर्शकों के चित्र हों तथा एक ही परमात्मा की ओर से युग-युग में भेजी गई इन पवित्र पुस्तकों में समय-समय पर जो ज्ञान हम पृथ्वीवासियों के लिए परमात्मा ने प्रगतिशील श्रृंखला के अन्तर्गत सिलसिलेवार भेजा है, उन सभी ईश्वरीय ज्ञान के प्रति बच्चों में बाल्यावस्था से ही श्रद्धा एवं सम्मान की भावना पैदा करें। बच्चों को परिवारजन, स्कूल के टीचर्स तथा समाज के लोग बताये कि परमात्मा एक है, सभी धर्म एक है तथा सारी मानव जाति उसी एक परमात्मा की संतान है। हमें पूर्ण विश्वास है कि स्कूल, परिवार और समाज के संयुक्त प्रयास से परमात्मा को, धर्म को तथा पवित्र पुस्तकों के माध्यम से भेजे दिव्य ज्ञान को अलग-अलग समझने का अज्ञान धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगा। 


 सारी सृष्टि को बनाने वाला और संसार के सभी प्राणियों को जन्म देने वाला परमात्मा एक ही है। सभी अवतारों एवं पवित्र ग्रंथों का स्रोत एक ही परमात्मा है। साढ़े सात अरब जनसंख्या वाला विश्व मानव परिवार शरीर की कोशिकाओं के समान हैं। हम प्रार्थना कहीं भी करें, किसी भी भाषा में करें, उनको सुनने वाला परमात्मा एक ही है। अतः परिवार तथा समाज में भी स्कूल की तरह ही सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ मिलकर एक प्रभु की प्रार्थना करें तो सबमें आपसी प्रेम भाव भी बढ़ जायेगा और संसार में अहिंसा, त्याग, सुख, एकता, शान्ति, न्याय के कारण अभूतपूर्व भौतिक समृद्धि तथा आध्यात्मिक समृद्धि आ जायेगी।


  आधुनिक युग में महात्मा गांधी अहिंसा के प्रबल समर्थक रहे है। अहिंसा के बल पर महात्मा गांधी ने देश को अंग्रेजी क्रूर शासन की गुलामी से आजादी दिलाई थी। महात्मा गांधी तथा उनके आध्यात्मिक शिष्य विनोबा भावे ने देश की आजादी अर्थात जय हिन्द के बाद 'जय जगत' का नारा बुलन्द किया। 'जय जगत' का नारा विश्व बन्धुत्व के सार्वभौमिक भावना से ओतप्रोत है। यह विश्वात्मा महावीर की उच्चतम आध्यात्मिक चेतना से जोड़कर लोकतांत्रिक तथा अहिंसा से ओतप्रोत सारे विश्व की जय का उद्घोष करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों का वैश्विक मान्यता प्रदान करके उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को प्रतिवर्ष सारे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है।


विश्व परिवर्तन मिशन के संस्थापक विश्वात्मा भरत गांधी के नेतृत्व में यूरोपियन यूनियन से प्रेरणा लेकर पहले चरण में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका दक्षिण एशियाई सरकार, दूसरे चरण में भारत, चीन, रूस, जापान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार श्रीलंका आदि दक्षिण-उत्तरी एशियाई सरकार तथा तीसरे चरण में विश्व सरकार का गठन करने के लिए संकल्पित है। वर्तमान में विश्वात्मा भरत गांधी भगवान महावीर, महात्मा गांधी तथा विनोबा भावे के विचारांे का आदर्श समाज अर्थात समाज के अन्तिम व्यक्ति की आर्थिक समृद्धि के लिए वोटरशिप अधिकार कानून बनाने के लिए अपने विश्व परिवर्तन मिशन के लगभग 40 लाख समर्पित समर्थकों के साथ संघर्षरत हैं। इस मिशन का नारा 'जय जगत' है।


वोटरशिप अधिकार के जन्मदाता विश्वात्मा भरत गांधी ने भारत सरकार से लोकतंत्र में असली मालिक प्रत्येक वोटर को छः हजार रूपये प्रतिमाह देने की मांग उठा रखी है। आगे दक्षिण एशियाई सरकार बनने से सुरक्षा के लिए खर्च होने वाली धनराशि के बचने से वोटरशिप की धनराशि पन्द्रह हजार रूपये हो जायेगी। इसी तरह आधे विश्व की सरकार बनने से वोटरशिप की धनराशि पच्चीस हजार रूपये प्रतिमाह तथा विश्व सरकार बनने से चालीस हजार रूपये प्रतिमाह हो जायेगी।                परमाणु शस्त्रों की होड़ में उलझी मानव जाति के हृदय में विश्वात्मा भरत गांधी ने वोटरशिप अधिकार कानून के द्वारा आर्थिक समृद्धि का रास्ता दिखाया है। प्रत्येक वोटर की असली ताकत उसके एक-एक वोट में निहित है। वोटर के जागरूक होने से वल्र्ड लीडर्स को हिंसक तरीकों का समझदारी से त्याग करके अन्तिम लक्ष्य लोकतांत्रिक विश्व सरकार का गठन समय रहते करना आवश्यक हो जायेगा। इसके साथ मानव जाति राजनैतिक आजादी के साथ ही साथ आर्थिक आजादी का सुखद अनुभव करेगी। सम्पूर्ण विश्व आज एक भूमण्डली गांव बन चुका है। 


 बहाउल्लाह ने कहा है कि पृथ्वी एक देश है तथा हम सभी उसके निवासी है। सूचना तथा तकनीकी क्रान्ति ने पृथ्वी ग्रह को एक देश बना दिया है। 21वीं सदी में जी रही मानव जाति के सुरक्षित भविष्य के लिए राष्ट्रवाद, प्रभुसत्ता, नागरिकता, शासन प्रणाली तथा संविधान में आवश्यक संशोधन करके उसे वैश्विक तथा बदलते समय के अनुसार आधुनिक स्वरूप देना आवश्यक हो गया है। डा. कोफी अन्नान के अनुसार 20वीं सदी मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे बड़ी खूनी तथा हिंसक सदी रही है। किसी महापुरूष ने कहा है कि जो इतिहास से सबक नहीं लेते हैं उन्हें तथा उनके समर्थकों को बाद में उसके भारी परिणाम भुगतने पड़ते हैं। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं?