दलितों पर फोकस करना शुरू कर दिया है सपा ने 

बसपा के अम्बेडकरी मिशन के नेता तेजी से सपा में जुड़ रहे हैं


लोकसभा चुनाव में सपा ने तमाम समझौते करते हुए बसपा से गठबंधन किया था


सपा ने मिशन अम्बेडकर चलाना शुरू किया
 


लखनऊ।  यूपी के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि दलितों के मसीहा और बसपा संस्थापक  कांशीराम ने वर्ष 1993 में मुलायम सिह यादव की समाजवादी पार्टी से गठजोड़ किया था। इस गठजोड़ का प्रदेश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा था। बसपा ने 67 सीटें जीत कर इतिहास रचा था और मुलायम सिह यादव के नेतृत्व में सपा की सरकार बनवाई थी। लेकिन यह गठजोड़ ज्यादा दिन तक चल नहीं पाया था। अगर यह दलितों और पिछड़ों का यह गठजोड़ लम्बे समय तक चलता तो भारतीय राजनीति और सामाजिक स्तर पर काफी बदलाव आता। लेकिन यह संभव नहीं हो सका। इस बात कसक सपा संरक्षक मुलायम सिह यादव को आज भी है। एक अन्य घटनाक्रम में सपा मुखिया अखिलेश यादव को शूद्र होने का एहसास तब हुआ जब मुख्यमंत्री पद से हटने के बार पांच कालीदास मार्ग (मुख्यमंत्री आवास) को गंगा जल से नहलवा कर शुद्घ करवाया गया। कई मौकों पर सपा मुखिया अखिलेश यादव अपना यह दर्द पार्टीजनों के सामने आ चुका है। लोकसभा चुनाव में सपा ने तमाम समझौते करते हुए बसपा से गठबंधन किया था। इस गठबंधन से जहां बसपा शून्य से दस तक पहुंच गई वहीं सपा पांच सीटें ही जीत पाई। इसके परिणाम के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने एकतरफ गठबंधन समाप्त करने का ऐलान किया था। बसपा सुप्रीमो मायावती के इस फैसले पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कोई भी तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी। जिसका काफी सकारात्मक असर दलित समाज पर पड़ा। अखिलेश के प्रति उपचुनावों में सहानुभूति वोटों के तौर पर नजर आई। इस घटनाक्रम के बाद से सपा ने मिशन अम्बेडकर चलाना शुरू किया। इसके तहत बसपा के तमाम प्रभावशाली नेता सपा में शामिल हो चुके हैं। अब सपा प्रदेश भर में बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस पर कई कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी में है।  बसपा की 36 साल की राजनीति में यूपी के दलितों हर पल और हर कदम तन, मन और धन से साथ दिया। इस दौरान बसपा ने यूपी में तीन बार गठबंधन से और एक बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। हर बार दलित बदनाम जरूर हुआ, लेकिन सामाजिक और आर्थिक तौर पर अछूत बना रहा। यानी सत्ता का लाभ नहीं मिला। बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उल्लेखनीय किए। लेकिन अम्बेडकरी मिशन को तगड़ा झटका पहुंचाने में भी कोई कोर-कसर नहीं रखी। बसपा से मान्यवर कांशीराम के करीबी और अम्बेडकरी मिशनरी नेताओं को एक-एक करके साइड लाइन करने के साथ पार्टी से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया। इस वजह से दलितों का बसपा सुप्रीमो मायावती से मोहभंग हुआ है।
कुछ माह से सपा की गतिविधियों पर नजर डाले तो पता चलता है कि सपा ने दलितों पर फोकस करना शुरू कर दिया है। सपा मुखिया अखिलेश यादव को इस बात का एहसास है कि अगर दलित सपा से जुड़ जाते हैं तो यूपी की सत्ता हाथ में आएगी ही और अन्य राज्यों में भी सपा का वर्चस्व बढ़ेगा। बसपा के अम्बेडकरी मिशन के नेता तेजी से सपा में जुड़ रहे हैं। मायावती के काफी करीब रहे कमलाकांत गौतम ने सपा की सदस्यता ज्वाइन करना बसपा को एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। कमलाकांत गौतम की दलितों में खासी पकड़ और प्रभाव है। इससे पहले इंद्रजीत सरोज जैसे दिग्गज नेता सपा में शामिल हो चुके हैं।