गीत नाटक अकादमी में हुई डा.रविशंकर खरे की रिकाॅर्डिंग
लखनऊ, । रंगकर्म पहले की अपेक्षा आज बहुत बढ़ गया है पर आज एक ठोस कला नीति की ज़रूरत है। गोरखपुर में रंगमंच पर समारोहों-महोत्सवों के ज़रिये बाहर के आने वाली प्रस्तुतियों और बड़े कलाकारों के बल पर वहां का रंगकर्म पुष्ट हुआ है और कलाकारों की समझ बढ़ी है। रंग आलेखों की कमी को दूर किया जाना चाहिए। साथ ही रंगकर्मियों को नई तकनीकें अपनानी चाहिए। इस दिशा में भारतेंदु नाट्य अकादमी और संस्कार भारती प्रयासरत हैं।
ऐसी ही ढेरों बातें डा.रविशंकर खरे ने गोरखपुर के रंगकर्म और अपने कार्यों का उल्लेख करते हुए साक्षात्कारकर्ता रंगकर्मी, लेखक व पत्रकार अनिल मिश्र गुरुजी से बतायीं। गोमतीनगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए आज अपने स्टूडियो में रंगकर्मी और भारतेन्दु नाट्य अकादमी के अध्यक्ष डा.रविशंकर खरे की रिकार्डिंग करायी।
एक बाल अभिनेता के तौर पर रंगमंच से 1954 में जुड़ने वाले डा.खरे ने बताया कि कला नीति अवश्य निर्धारित होनी चाहिये। प्रदेश ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर पिछले कुछ सालों में इसपर कई बैठकें हुईं पर नीति अब तक निर्धारित नहीं हो पाई। इसपर संजीदा ढंग से काम अवश्य होना चाहिये। उन्होंने बताया कि जगह-जगह नाट्य लेखन की कार्यशाला आयोजित कराने की कोशिशों में लगे हैं।
डा.खरे ने बताया कि उनकी रंगकर्म में रुचि बचपन में मुहल्ले में चित्रगुप्त पूजा के अवसर पर होने वाले नाटकों से जागी। फिर आगे प्रो.सत्यमूर्ति और डा.गिरीश रस्तोगी की वजह से उनका जुड़ना गोरखपुर में काम कर रही रंगसंस्था दर्पण से हुआ। दर्पण गोरखपुर के वे अध्यक्ष भी रहे और इस समय भारतेंदु अकादमी के अध्यक्ष के तौर पर काम करने के साथ ही राष्ट्रीय सहसंयोजक के रूप में संस्कार भारती के लिये पूरे देश में काम कर रहे हैं। इससे पहले अकादमी के सचिव तरुणराज ने डा.खरे का स्वागत किया।