यूपी स्टेट मेडिकल फैकल्टी के रजिस्ट्रार के खिलाफ मुख्यमंत्री ने बैठाई जांच

धन्ंजय सिंह 


यूपी स्टेट मेडिकल फैकल्टी के किंग डा. राजेश जैन


मेडिकल फैकल्टी में डा. राजेश जैन का एकछत्र राज्य

डॉ. जैन की बादशाहत बरकरार, शासनादेश दरकिनार


 लखनऊ । उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी के रजिस्ट्रार डॉ. राजेश जैन को उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी का किग कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगा, यानी डा.जैन इंज किंग। ऊंची पहुंच रखने वाले और रसूख के दम पर संस्थान में लगभग दो दशक से अधिक तक कुर्सी पर काबिज जैन का जलवा आज भी बरकरार है। एक गैर सरकारी संगठन के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को संबोधित शिकायती पत्र में डॉ. राजेश जैन पर कूट रचित दस्तावेजों को संलग्न कर सेवा विस्तार एवं नियुक्ति सहित कई गंभीर आरोप लगाए हैं। शिकायत को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री ने जांच बैठा दी है।


उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी के सचिव रजिस्ट्रार डा.ॅ राजेश जैन पर वित्तीय अनियमितताओं सहित कई गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री को संबोधित शिकायती पत्र में एनजीओ के अध्यक्ष रजनीश कुमार सिह ने कहा है की उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी एवं संबंधित काउंसिल गवîनग बॉडी को कार्यकाल बढ़ाने का अधिकार प्राप्त नहीं है। फैकल्टी एवं संबंधित काउंसिल के सचिव व रजिस्ट्रार की नियुक्ति का अधिकार उत्तर प्रदेश शासन को प्राप्त है। जैन की सेवानिवृत्त बढ़ाए जाने संबंधी कोई विधिक आदेश ना तो शासन स्तर से जारी किया गया है और ना ही फैकल्टी की सेवा नियमावली में कोई परिवर्तन किया गया है। स्टेट मेडिकल फैकल्टी की नियमावली के शासनादेश संख्या -8०3 -बी /वी -265 -1957 एम दिनांक 22-5- 1958 के अंतर्गत फैकल्टी के सचिव रजिस्ट्रार का सेवाकाल 6० वर्ष निर्धारित है और वर्तमान सचिव अपने 6० वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं, लेकिन नियमावली के विरुद्ध अवैध रूप से कार्यरत हैं। नियमावली के विरुद्ध फैकल्टी एवं संबंधित काउंसिल गवîनग बॉडी द्बारा श्री जैन की सेवानिवृत्ति आयु 6० से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई थी। वह भी 31 दिसंबर 2०17 को पूरी हो चुकी है। फिर भी आज भी किंग का कब्जा रजिस्ट्रार की कुर्सी पर बरकरार हैं।
डॉ.राजेश जैन की नियुक्ति को लेकर बताया गया है कि वर्तमान सचिव लगभग 2० वर्ष पूर्व पीएमएस सेवा में थे। वर्ष 2००1 में पीएमएस सेवा के संविलियन स्टेट मेडिकल फैकल्टी में उत्तर प्रदेश शासन द्बारा कराया था। जिसके चलते वह स्टेट मेडिकल फैकल्टी में अधिकारी हुए उक्त संविलियन के उपरांत उनका पीएमएस अथवा चिकित्सा शिक्षा सेवा में कार्यरत शिक्षकों की भांति कोई लेना-देना नहीं लेकिन डॉक्टर जैन कूट रचित दस्तावेजों के दम पर आज तक तैनात हैं। नियुक्ति को अवैधानिक ठहराते हुए उदाहरण दिया गया कि तत्कालीन फैकल्टी सचिव एवं रजिस्ट्रार की सेवा को उत्तर प्रदेश सरकार ने निरस्त कर दिया था, जिसको उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में सरकार के फैसले को सही पाया ।
गौरतलब हो कि जैन के खिलाफ यह पहली शिकायत नहीं है। पूर्व में भी कई शिकायतें हुई और निस्तारित हुईं विभागीय शिकायतों के अलावा अदालत की शरण ली गई यहां तक कि सदन में भी कुछ विधायकों ने सवाल किए लेकिन जैन की कुर्सी हिली तक नहीं और सबके मंसूबों पर पानी फ़ेरने पर कामयाब रहे। लेकिन इस बार सपा के कद्दावर नेता व तत्कालीन कैबिनेट मंत्री को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले तथा एक धनकुबेर आईएएस को लोकायुक्त के कटघरे में खड़ा करने वाले समाजसेवी रजनीश कुमार सिह ने कूट रचित दस्तावेजों को संलग्न कर स्टेट मेडिकल फैकल्टी में सचिव रजिस्ट्रार के पद पर डॉ. जैन की नियुक्ति और सेवा विस्तार पर आरोप लगाया है। यहां आरोपी और शिकायतकर्ता में एक समानता यह है कि दोनों अपने-अपने कौशल में माहिर हैं, एक को आरोपों से बाहर निकलने में महारत हासिल है तो दूसरा आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने में निपुण हैं। अब देखना यह है कि जीरो टॉलरेंस के नक्शे कदम पर चल रही योगी सरकार आरोपी को क्या गुल खिलाती है ।
इस सम्बन्ध में डा. राजेश जैन से बात करने पर उन्होंने कहा कि फैकल्टी ऑटोनॉमस बॉडी है। स्वयं फंड एकत्रित करती हैं, और कमाती है, खर्चा भी करती है। इससे उत्तर प्रदेश सरकार का कोई लेना देना नहीं है।