गन्ना आपूर्ति व्यवस्था में माफिया के चक्रव्यूह के खिलाफ बड़़ा हथियार बन गया

चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग पूंजीपतियों और माफियाओं का दबदबा


सूबे के गन्ना किसानों की बदहाली किसी से नहीं छिपी रही


कुछ रसूखदार किसानों और माफिया ने इस व्यवस्था में भी सेंध लगाने में कसर नहीं छोड़ी


गन्ना किसानों में आया दम, शुगर लॉबी हुई बेदम


मंडलवार पर्ची निर्गत करने का ठेका निजी वेंडर को दिया गया 


 

लखनऊ।  चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग का गन्ना एप चीनी मिलों को गन्ना आपूर्ति व्यवस्था में माफिया के चक्रव्यूह के खिलाफ बड़़ा हथियार बन गया है। इस एप के जरिए पूरी व्यवस्था में काफी हद तक पारदर्शिता आई है। सबसे बड़़ा फायदा लघु गन्ना उत्पादक किसानों का हुआ है। इस एप के जरिए किसान अपने मोबाइल फोन पर ही प्राइमरी कैलेंडऱ, फाइनल कैलेंडऱ पर्चियों की स्थिति, सट्टा मिल में गन्ना तुलने के लिए अवशेष पर्चियों समेत तमाम बिंदुओं पर जानकारी घर बैठे ही प्राप्त कर रहे हैं।

पूर्ववर्ती सरकारों में चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग पूंजीपतियों और माफियाओं का दबदबा होने के कारण सूबे के गन्ना किसानों की बदहाली किसी से नहीं छिपी रही। लेकिन अब बीते तीन सालों से चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग पूंजीपतियों और माफियाओं का दबदबा बिल्कुल खत्म हो गया है। जिसका नतीजा यह है कि जहां गन्ना किसानों का शोषण काफी हद तक खत्म हो गया है वहीं चीनी और एथेनॉॅल उत्पादन में यूपी नम्बर वन बनकर उभरा है। इस बदलाव के पीछे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संकल्प और प्रमुख सचिव संजय भूसरेड्डïी की ईमानदारी के तालमेल की वजह से संभव हुआ है।

 पहली बार प्रदेश मुख्यालय से केन्द्र्रीयकृत व्यवस्था लागू कर गन्ना सोसायटियों को गन्ना पर्ची निर्गत कराने का हक दिया। पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की आर्थिक खुशहाली काफी हद तक कैश क्रॉप मानी जाने वाली गन्ने की फसल पर निर्भर रही है। इस व्यवस्था के लागू होने से पहले गन्ना पैदा करने के बाद उसे कैश में बदलने की राह मुश्किलों भरी होती थी। इसकी वजह गन्ना सट्टा निर्धारण और मिलों को गन्ना आपूर्ति व्यवस्था पर लगभग सभी जिलों में माफिया का वर्चस्व रहा है। ये माफिया और कुछ रसूखदार किसान मिलों व गन्ना सोसाइटियों के अधिकारियों से साठगांठ कर मनमाफिक सट्टा निर्धारित कराने के साथ ही गन्ना पर्ची हथियाकर लघु किसानों के हितों पर चोट करते रहे हैं।

मार्च 2017 में प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ना उत्पादक किसानों के हितों को अपने प्रमुख एजेंड़े में रखते हुए नौकरशाहों को गन्ना आपूर्ति व्यवस्था में माफिया के वर्चस्व को तोड़ऩे के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री के आदेश पर प्रमुख सचिव संजय भूसरेड्डïी ने विभाग की खामियों को सुधारने के लिए जमीनी स्तर पर सख्त फैसले किए। इसके साथ ही तकनीक का भी इस्तेमाल किया। गन्ना सट्टा व बेसिक कोटा निर्धारण में पारदर्शिता लाने के लिए जीपीएस से गन्ना सर्वे कराया गया।

कुछ रसूखदार किसानों और माफिया ने इस व्यवस्था में भी सेंध लगाने में कसर नहीं छोड़ी। पेराई सत्र 2019-2020 के लिए अफसरों ने डिजिटल ईआरपी के माध्यम से खंगाला तो माफिया का खेल सामने आया। गन्ना विकास समितियों की टीमों से गन्ना सर्वे का सत्यापन कराया गया तो पता चला कि 27288 मृत, 3619 भूमिहीन,डबल सट्टा 5630 और 861 फर्जी किसानों के गन्ना बांड संचालित हो रहे थे। इस खुलासे के बाद आला अफसरों ने आंकड़े दुरुस्त कर पेराई सीजन में ही ऐसे 37398 बांड से गन्ना आपूर्ति पर ब्रेक लगा दिया। इतना ही नहीं पेराई सत्र 2018-19 में पिछले पेराई सत्र में सरकार ने मिलों से गन्ना पर्ची निर्गत करने का हक छीनकर इसे गन्ना समितियों को सौंपा। मंडलवार पर्ची निर्गत करने का ठेका निजी वेंडर को दिया गया। इस व्यवस्था में भी कुछ माफियाओं द्वारा सेंध लगाने की बात सामने आई तो इस बार प्रदेश मुख्यालय से केंद्रीयकृत व्यवस्था लागू की गई। इसके तहत सभी जनपदों से किसानों के गन्ना क्षेत्रफल, सट्टा व बेसिक कोटा सहित अन्य ड़ाटा प्रदेश मुख्यालय को भेजा गया।