'नीम चढ़े करेलों से सुस्त हुई निवेश की चाल

दम तोड़ रहे हैं दो इवेंस्टर समिट के निवेश के अधिकतर एमओयू सरकारी मकडज़ाल में उलझकर


निवेश की लुटिया डुबोने में लगे पनौती अफसर


इससे सरकार के भगीरथी प्रयासों पर पानी फिरने की उम्मीद है 


 

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर दो इवेंस्टर समिट के जरिए देश की दिग्गज कम्पनियों को निवेश कराने के लिए काफी प्रयास किए। इन प्रयासों का यह नतीजा रहा है कि प्रदेश में 4,28, 354 करोड़ के निवेश के प्रस्तावों पर 1045 एमओयू हुए। औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पहली ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में  61, 792 करोड़ रुपए के 81 प्रोजेक्टों के एमओयू हुए। 81 एमओयू में मात्र 36 ही शुरू हुए हैं। 30  एमओयू प्रक्रियाधीन की स्थिति में हैं। 12 शुरू ही नहीं हो पाए हंै। जबकि 3 कम्पनियों ने एमओयू तोड़ दिया है। इसी तरह दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग सेरमनी में 67,201.5 करोड़ रुपए के 290 एमओयू हुए। इनमें से 44 एमओयू पर काम शुरू हुआ है। जबकि 131 एमओयू प्रक्रियाधीन हैं। 111 एमओयू शुरू नहीं हो पाए हैं। 4 कम्पनियों ने एमओयू से पीछा छुड़ा लिया है। इसके साथ ही औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग थर्ड ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी की तैयारियों में जुटा है। 

11,488 करोड़ के 23 एमओयू विभिन्न कम्पनियों से होने की उम्मीद है। बीते तीन सालों में टॉप सिक्स मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 328, एग्रो एंड फूड प्रोसेसिंग में 196, आईटी एंड इलेक्ट्रिानिक्स  में 92, टूरिज्म में 76, इंफ्रास्ट्रक्चर में 73, रिन्यूएबिल इनर्जी में 71 एमओयू हुए। औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग के सूत्रों का कहना है कि फस्र्ट जीबीसी के 13 एमओयू जून 2020 में, 5 एमओयू दिसम्बर 2020 में और 6 एमओयू दिसम्बर 2021 तक पूरे होने की संभावना है। इसी तरह सेकेंड जीबीसी के 46 एमओयू जून 2020 तक, 40 एमओयू दिसम्बर 2020 तक और 17 एमओयू दिसम्बर 2021 तथा 28 एमओयू दिसम्बर 2021 तक पूरे होने की संभावना है। हाल ही में मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार तिवारी की अध्यक्षता में हुई बैठक में कई एमओयू को धरातल पर लाने में कई समस्यायें सामने आईं, जिसकी वजह से तमाम प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पा रहे हैं। फुजियामा पॉवर सिस्टम, चेनफेंग टेक की 200 करोड़ निवेश करने वाली कम्पनियों को ग्रेटर नोयडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी ने अभी तक 25 फीसदी लैंड रिबेट नहीं दिया है। विवो मोबाइल्स, हॉयर और ओपो मोबाइल्स के 10517 करोड़ का निवेश एसजीएसटी के रिम्बर्समेंट की एलओसी पेंडिंग है। प्रिप्रेक्च्युल ग्रेविटी लैब्स, अरिहंत इंटरप्राइजेस, एसआर मल्टी इंजीनियरिंग सॉल्यूसंश का 1030 करोड़ का एमओयू इलेक्ट्रिानिक्स मैन्यूफैक्चिरिंग नीति में संशोधन के कारण फंसे हुए हैं। सेंचुरी प्लाईवुड, ग्रीनलम लैमिनेट्स, स्पटम डिकोर और तजपुरिया लैमिनेट्स के 1746 करोड़ के निवेश फारेस्ट लाइसेंस में एनजीटी की रूलिंग को लेकर दुविधा में हैं। महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, भागवंत एजुकेशन डेवलपमेंट ट्रस्ट, आईआईएलएम एकेडमी के 957 करोड़ के निवेश एलओआई जारी न होने के कारण फंसे हुए हैं। टूरिजम्म क्षेत्र में एड संस, अभिनव एक्सओटिक रिसोर्ट, नटराज सईं होटल, आनंदी मैजिक वल्र्ड, रामोजो रिसोर्ट आदि नीति न बनने के कारण प्रभावित हैं।

 

एक ओर यूपी में औद्योगिक निवेश को लुभाने के लिए योगी सरकार जमीन से लेकर आसमान तक के किए गए भगीरथी प्रयासों से बीते तीन सालों में देश की नामचीन और छोटी-बड़ी कम्पनियों ने 4,28, 354 करोड़ के निवेश के लिए 1045 एमओयू किए तो दूसरी ओर इन 1045 एमओयू से यूपी में लगभग 33,81, 267 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलने संभावना है, लेकिन निवेश के अधिकतर एमओयू सरकारी मकडज़ाल में उलझकर दम तोड़ रहे हैं। इससे सरकार के भगीरथी प्रयासों पर पानी फिरने की उम्मीद है। 

 

नीम चढ़ा करेला की कहावत औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग पर सटीक साबित हो रही है। सरकार ने औद्योगिक विकास विभाग की गतिविधियों को धार देने के लिए औद्योगिक विकास आयुक्त के पद पर आलोक टण्डन को जिम्मेदारी सौंपी है। जबकि प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी आलोक कुमार को दी गई है। साफ-सुथरी छवि वाले दो-दो वरिष्ठï अफसरों के हाथ में के कारण जिस द्रुत गति से विभाग की फाइलें दौडऩी चाहिए, वह दौड़ नहीं रही हैं। इन विभागों की फाइलों की हालत कछुवा चाल वाली हो गई है। 

औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग के सूत्रों का कहना है कि औद्योगिक एवं अवस्थापना आयुक्त आलोक टण्डन बेमन से काम कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि  केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से डिबार होने और मुख्य सचिव न बनाए जाने से व्यथित हैं। इस वजह से अधिकतर फाइलों में कूट-कूट का नियम-कानून का अनुपालन किया जा रहा है। जिससे अधिकतर एमओयू धरातल पर आने के बजाए सरकारी मकडज़ाल में फंसकर रह गए हैं। यही हाल प्रमुख सचिव आलोक कुमार का है। पीएफ घोटाले में लापरवाही बरतने के बाद ऊर्जा विभाग से हटाकर औद्योगिक विकास विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन कई माह बीत जाने के बावजूद अभी तक ऊर्जा विभाग के झटके से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। इसका असर यह है कि औद्योगिक विकास विभाग के हर एमओयू में ढूंढ़कर खामियां निकाल कर फाइलें रंगी जा रही हैं। यही हाल सचिव औद्योगिक विकास नीना शर्मा का है। जिसकी वजह से औद्योगिक विकास विभाग के कर्मचारियों को पूर्व औद्योगिक विकास आयुक्त डा. अनूप चंद्र पाण्डेय और प्रमुख सचिव राजेश कुमार सिंह तथा सचिव संतोष यादव की कार्यप्रणाली बहुत याद आ रही है। जिनके समय में यूपी में जमीन पर औद्योगिक निवेश खूब परवान चढ़ा। 


औद्योगिक एवं अवस्थापना विकास आयुक्त आलोक टण्डन और प्रमुख सचिव आलोक कुमार से कई बार सम्पर्क किए जाने पर प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई।