खजाना भरने की चाह में दारुबाजों की भीड़ से जारी है कोरोना के भस्मासुरो की खोज?

...आह कोरोना!पियक्कड़ों के भरोसे घुटनों पर सरकार?


सड़कों पर काबिज है पियक्कड़ दारूबाज 

कहीं निरर्थक ना साबित हो अब तक कोरोना से लड़ने के लिए प्रयास

 सड़कों पर उमड़े नशे के शौकीनों ने देश की छवि को किया आहत?




कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)


बाराबंकी।  कोरोना से जारी जंग के बीच सरकार ने जिस तरह से सरकारी शराब के ठेकों को खोला एवं शराब को महंगी करके अपने कुकर्म को छिपाने की नापाक कोशिश की है! उससे साफ हो गया है कि कहीं न कहीं सरकारें पियक्कड़ों  के भरोसे जंग को जीतने की जुगत में हैं। जबकि सड़कों पर उमड़ी नशे के शौकीनों की भीड़ ने जहां कोरोना के भस्मासुरो की खोज को तेज कर दिया है वहीं इससे देश की छवि भी आहत हुई है?

कोरोना से लड़ने के लिए पूरा देश मार्च से लगाकर अब तक एकजुट दिखा है। केंद्र की सरकार से लेकर प्रदेश की सरकारों ने भी एकजुटता दिखाई। यही नहीं कई अच्छे प्रयास भी हुए और तमाम कोरोना योद्धाओं ने  अपने स्तर से इस महामारी से युद्ध भी किया। यह प्रयास आज भी जारी है। इधर बीते दिनों जब से केंद्र व प्रदेश की सरकार ने शराब के सरकारी ठेकों को खोलने के आदेश दिए तभी से लॉक डाउन के नियमों एवं कोरोना से छिड़ी जंग  की रफ्तार को लकवा मार गया। सरकार ने अपने खजाने को भरने के लिए सबसे ज्यादा यदि किसी पर भरोसा दिखाया तो वह थे परम सम्मानीय दारूबाज महानुभाव? सरकार ने सरकारी ठेकों को खोला ।जिसके बाद देश की सड़कों पर जाम छलकाने वाले नशे के शौकीनों की भीड़ ऐसी उमड़ी जैसे लगा कि पूरा देश व पूरा प्रदेश जैसे केवल नशेड़ी रहते हो?

 कुरौना युद्ध से लड़ने के लिए लगाए गए लॉक डाउन कानून की धज्जियां ऐसा उड़ी पूरा सिस्टम  शर्मसार हो गया? सरकार के इस निर्णय ने उसके गाल पर तमाचो की बौछार जारी कर रखी है! मीडिया, जागरूक लोगो ने भी इस पर गहरी चिंता व्यक्त की। लेकिन सरकार को शायद केवल एक चिंता थी उसने जो धन हाल ही में कोरोना से टक्कर लेते समय गरीब जनता के कल्याण के लिए खर्च किए हैं उसकी पूर्ति भी होनी जरूरी है? जी हां सरकार अपने खजाने को भरने के लिए पूरी तरह से उतावली हो उठी थी? आज उत्तर प्रदेश में शराब को महंगा कर दिया गया। दिल्ली प्रदेश में पहले ही शराब को महंगा कर दिया गया है। लेकिन क्या यह टोटके किसी भी सभ्य समाज के लिए अच्छे कहे जाएंगे ।फिलहाल तो बिल्कुल नहीं।

 पियक्कड़ दारूबाज सड़कों पर काबिज है। पुलिस के लिए अनावश्यक एक और उलझन बढ़ गई है। सरकार खजाना भरने में जुटी हुई है। सामाजिक संगठन एवं स्वयं सरकार के सिस्टम से तमाम गरीबों को खाना व राशन पहुंचाया जा रहा है। वहीं कई पियक्कड़ों ने अपने घरों में बनने वाले खाने पर नशे को उड़ेल दिया है। कई घरों में चूल्हे ठंडे हो गए हैं। शराबियों का तांडव ठेकों के खुलने के बाद प्रारंभ हो गया है। कई महानुभाव दारू बाज दारू के नशे में टल्ली होकर स्वर्ग सिधार चुके हैं? सरकार पर इसका कोई फर्क नहीं है? सरकार लाक डाउन के नियमों के उल्लंघन अब तक बहुत कार्यवाही कर चुकी है। उसकी अधीनस्थ पुलिस ने हजारों लोगों को जेल भेजा है? उन पर मुकदमा दर्ज किया है? यह नहीं तमाम लोग सड़क पर पुलिस के हाथों पिटे भी हैं? तमाम मजदूर भूखे प्यासे पैदल जो अपने घरों की ओर निकले थे उन्हें भी लॉक डाउन  के उल्लंघन के नाम पर जमकर पीटा गया है?

देश में  तमाम स्थानों पर लोगों को क्वारन्टाइन रखा गया है। धारा 144 लगी हुई है लेकिन खजाना भरना है सरकार का !इसलिए सरकारी ठेकों के सामने लगी हुई नशे के शौकीनों की भीड़ चाहे जितने नियमों को धराशाई कर दे सरकार को वह बिल्कुल नजर नहीं आता? सरकार की आंखों में राजस्व प्राप्ति की  काली पट्टी बंधी हुई है? आने वाले दिनों में यह भीड़ कहीं न कहीं कोरोना के लिए रामबाण साबित हो सकती है! शराब को महंगा करके सरकार ने अपने नागरिकों के समक्ष अपने कुकर्मो को छिपाने का प्रयास किया है? उसे यह दिखाई नहीं दे रहा है कि जिस तरह से शराब खरीदने के लिए लोग भीड लगा रहे हैं यदि कोरोना दबे पांव से उसी भीड़ में दाखिल हुआ तो वह देश की क्या दुर्गति करेगा?  दारू खरीदारों की भीड़ को ऐसा छूट दी गई है  जैसे कोरोना के लिए भस्मासुरो की खोज की जा रही हो? नशेडियो की इतनी बड़ी भीड़ ऐसा सड़कों पर नजर आई जिसके चलते देश की छवि भी इससे आहत हुई है!

 सवाल यह भी है कि दारू के लिए महंगे से महंगा प्रयास करने वाले लोग क्या वास्तव में सरकार के द्वारा चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं के लाभ को पाने के हकदार भी हैं? दारू के लिए दारुबाजो में ऐसे लोगों की भी नजर आ रही है जिनके घर के लोग अथवा वह स्वयं सरकार से मिलने वाली राहत सामग्री के लिए भी लाइन में आगे खड़े  थे? स्पष्ट है कि केंद्र की मोदी सरकार एवं उत्तर प्रदेश में योगी सरकार तथा अन्य प्रांतों की वे सरकारें जो नशे के इस बड़े सरकारी कारोबार की आड़ में राजस्व प्राप्ति अथवा अपना खजाना भरने में लगी हुई हैं! कहीं आने वाले दिनों में यह प्रयास देश के माथे पर अभिशाप ना बन जाए? जी हां कोरोना के मामले तेजी से देश देश में बढ़ते जा रहे हैं। दारूबाजों की भीड़ ने सारे लॉक डाउन के नियमों को तोड़ डाला है। ऐसे में जरूरी है कि सरकारें चेते। सरकार  इस मुद्दे पर अपना फैसला वापस ले।  यदि उसे पैसों की जरूरत है, अपना खजाना भरने की जरूरत है! तो दारू की सप्लाई भी वह घर तक करवा दें? यही नहीं दारू लेने आने वाले लोगों की पहचान की भी व्यवस्था हो ताकि वह जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ न ले सकें! लेकिन ऐसे उपाय सरकार शायद ही करें क्योंकि जब अपनी कमाई होती है तो सरकार को अपनी कमियां भी कतई नजर नहीं आती? हां यह जरूर है कि छोटे-छोटे ठेला ,खोमचे वाले दुकानदारों अथवा दिहाड़ी धंधा करके अपना परिवार पालने वाले लोगों को सरकार जरूर  नियमों का पालन करने के लिए डंडे के बल पर आमादा है? सरकार को अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए और उसे महंगी शराब नहीं सरकार के ठेके नहीं बल्कि देश की जनता में आत्मविश्वास को पैदा करना चाहिए। आज सरकार कोरोना से युद्ध में पियक्कड़ों के सामने घुटनों पर बैठी हुई नजर आ रही है! यह देश का दुर्भाग्य है कि नशे में डगमगाते कदमों पर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी है ! यह शर्म की बात है।फ़िलहाल अपना खजाना भरने लिए सरकार को एक नया रास्ता  खोजना ही होगा।