कोराना का कहर बढ़ता जा रहा है भारत में 

कोराना का कहर बढ़ता जा रहा है भारत में 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को संपूर्ण देश में सुबह सात बजे से रात में नौ बजे तक जनता कफ्र्यू का ऐलान किया। लोगों ने उसका ईमानदारी से पालन किया। उसके बाद 25 मार्च से 21 दिन का लॉकडाउन, पार्ट दो में 3 मई और पार्ट तीन में 17 मई तक लॉकडाउन की घोषणा कर की। अब बदले हुए रंग-रूप में लॉकडाउन का चौथा चरण 18 मई से शुरू होगा। कोरोना योद्धाओं के सम्मान में थाली, ताली पीटने और दीप जलाने के प्रधानमंत्री के आह्वान का लोगों ने जमकर समर्थन भी किया। हालांकि सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन से सबसे अधिक परेशानी देश के प्रवासी मजदूरों को हुई। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में 45 करोड़ से ज्यादा लोग प्रवासी हैं। यह आंकड़ा भारत की कुल जनसंख्या का 37 फीसदी है। मजदूरों को रोजी-रोटी की तलाश में अपना घरबार छोड़कर अन्य शहरों अथवा दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है।

भारत में कोराना का कहर बढ़ता जा रहा है। कोराना वायरस से संक्रमित होने और मरने वालों का आंकड़ा भी सरपट दौड़ रहा है। केंद्र सरकार ने संपूर्ण देश में 25 मार्च से ही लॉकडाउन कर रखा है। लोगों को घरों में सुरक्षित रहने, बाहर निकलने पर अनिवार्य रूप से मास्क पहनने, सोशल डिस्टैंङ्क्षसग का पालन करने और हाथ धोने अथवा सैनेटाइज करने की एडवाईजरी लगातार जारी की जा रही है। लेकिन समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा इसको गंभीरता से न लेने के चलते सरकार और समाज के जिम्मेदार लोगों के किए गए प्रयासों पर पानी फिर रहा है। प्रवासी मजदूरों की रेल की पटरियों और सड़क मार्ग से यात्रा के बाद बिना जांच-पड़ताल के गांवों में प्रवेश और शराब की दुकानों में मारामारी ने ङ्क्षचता बढ़ा दी है। सब्जी, फल, किराना और दूध विक्रेता कोरोना वायरस की चपेट में बहुत तेजी से आ रहे हैं। एक ओर समाज में अनेक ऐसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष योद्धा हैं जो न सिर्फ वायरस के खिलाफ जंग को प्रभावी बनाने में लगे हैं, बल्कि अपना जीवन दांव पर लगाकर लोगों की सेवा कर रहे हैं। दूसरी ओर सब्जी मंडी, किराना दुकानों, सड़क-गलियों और अन्य सार्वजनिक स्थानों में सैकड़ों लोग बिना मास्क के घूम रहे हैं। अगर समाज का कोई जागरूक नागरिक उनको समझाने की कोशिश भी करता है तो ऐसे लोगों को दी जानी वाली सीख बेहद बुरी लगती है। चीन यानी जिस देश के वुहान प्रांत से कोराना वायरस फैला, उसने कोरोना से लडऩे के लिए लॉकडाउन जैसा सख्त कदम 30 लोगों के मारे जाने के बाद उठाया, इटली में लॉकडाउन का कदम उस समय उठाया गया जब मरने वालों की संख्या 800 हो गई। इन देशों के मुकाबले भारत ने यह कदम तब उठाया जब कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 10 भी पार नहीं किया था। इस कठिन फैसले की तारीफ वैश्विक स्तर पर की गई।

 उत्तर प्रदेश और बिहार से पलायन करने वाले लोगों की संख्या देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कुल संख्या का 50 फीसदी पलायन देश के ङ्क्षहदी भाषी प्रदेशों-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान से हुआ है। देश के दो बड़े महानगरों दिल्ली और मुंबई की ओर पलायन करने वालों की कुल संख्या लगभग एक करोड़ है जो वहां की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा है। रोजी-रोटी के साधन, उद्योग-धंधों के बंद होने और काम न होने के चलते प्रवासी मजदूरों में असुरक्षा की भावना पैदा होने लगी। वे अपने गांव लौटने को उतावले हो गए। हालांकि सरकार ने उनके लिए राहत पैकेज की घोषणा की और उनके खातों में पैसे भी ट्रांसफर किए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सेवा भारती, विश्व ङ्क्षहदू परिषद सहित अनेक सामाजिक संगठनों ने ऐसे परेशान लोगों को राशन और भोजन भी उपलब्ध करा रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन पार्ट तीन में कोरोना के बढ़ते कहर और बढ़ती चुनौतियों से मजदूरों में बेचैनी बढ़ गई और उनके सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने प्रदेश और केंद्र सरकारों से घर वापसी की गुहार लगाई।

सरकारों ने बसों और ट्रेनों के माध्यम से उनकी मांग पूरी करनी भी शुरू कर दी। लेकिन राज्यों के हजारों प्रवासी मजदूर अपने-अपने गांवों के लिए सड़क और रेल पटरियों से पैदल जाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा। हालांकि बहुत से मजदूरों को स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने क्वारंटीन किया लेकिन सैकड़ों मजदूर ऐसे भी हैं जो बिना क्वारंटीन हुए अपने गांवों में पहुंच चुके हैं। सरकार ने तीसरे चरण का लॉकडाउन कुछ छूट के साथ बढ़ाया। इसमें 4 मई से शराब की दुकानें खोलने की छूट भी दे दी गई। छूट मिलते ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में शराब की दुकानों के सामने कई किलोमीटर तक खरीददारों की लंबी-लंबी कतारें लग गईं। यहंा मास्क न पहनने के मामले बढ़ गए और सोशल डिस्टैंङ्क्षसग की जमकर धज्जियां उड़ीं। कई स्थानों पर भगदड़ मचने की वजह से पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और शराब की दुकानें तक बंद करनी पड़ीं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरङ्क्षवद केजरीवाल को यहां तक कहना पड़ा कि अगर लोग नियमों का पालन सब्र के साथ नहीं करेंगे तो दी गई छूट वापस ले जी जाएगी। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने शराब के दाम बढ़ा दिए। दिल्ली सरकार के इस निर्णय के बाद अनेक राज्यों ने 15 से 30 फीसदी तक अपने प्रदेश में भी शराब के रेट बढ़ा दिए हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि विपक्षी दल समस्या का समाधान निकालने की जगह अपनी सियासी रोटी सेंकने में जुट गए हैं। विपन्न हालात में जीवन-यापन कर रहे मजदूरों की परेशानी स्वाभाविक है। उनकी समस्या को सुनियोजित तरीके से हल किया जा सकता है। लेकिन इसमें समाज के पढ़े-लिखे लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा। उनको नागरिकों को जागरूक करना चाहिए कि वे भी सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस के हिसाब से मास्क पहनें, सोशल डिस्टैंङ्क्षसग और सैनेटाइजेशन का पालन करें और दूसरों से भी कराएं। हर नागरिक के अंदर जिम्मेदारी का भाव पैदाकर ही कोरोना जैसी महामारी को शिकस्त दी जा सकती है।