महिला का कथित एडिटेड वीडियो अश्लील साइटों पर हुआ अपलोड  


 महिला का कथित एडिटेड वीडियो अश्लील साइटों पर हुआ अपलोड  


अपराधियों की जगह उल्टे उनपर ही बार-बार दबिश देते रहे


पोर्न साइट्स पर अपलोड हुआ 


लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज इलाके की एक महिला का कथित एडिटेड वीडियो अश्लील साइटों पर अपलोड किया गया। इस वीडियो को इन साइटों पर मोबाइल नंबर के साथ अपलोड किया गया है। पीड़ित पक्ष के मुताबिक मामले की जानकारी मिलने के बाद उन्होंने इस वीडियो का पूरा डिटेल निकालकर 25 सितंबर 2018 को उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग और राज्य अनुसूचित जाति आयोग में शिकायत दर्ज करायी। उनका आरोप है कि पीड़ित परिवार को बदनाम करने के उद्देश्य से षडयंत्रकारी पुलिस के साथ मिलकर अपराधियों की जगह उल्टे उनपर ही बार-बार दबिश देते रहे। 


पीड़ित पक्ष का कहना है कि महिला और उसके परिवार ने अभी तक अपना बयान दर्ज नहीं कराया है क्योंकि उन्हें पुलिस से ही जान का खतरा आभास हो रहा है। महिला का एडिट किया हुआ वीडियो अश्लील साइट पर कैसे और क्यों पहुंचा, इन सभी सवालों का जवाब मोबाइल नंबर 9596028835 से मिलेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस इस मामले के संदिग्ध आरोपियों का मोबाइल नंबर छिपा रही है। पीड़ित पक्ष ने कहा, 'हमारा यह मामला साइबर अपराध का है फिर भी जाँच/कार्यवाही के लिए साइबर सेल को नहीं दिया गया और न ही संदिग्ध मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लिया गया। जांच संबन्धित क्षेत्राधिकारी महानगर संतोष कुमार सिंह के पास गलत तरीके से पहुंचाया गया जबकि यह जाँच साइबर सेल द्वारा की जानी थी ताकि पुलिस अपराधियों तक पहुंचकर उनके ससबूत सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजती। इससे यह साफ होता है कि पुलिस के बेष में छिपे भ्रष्ट अधिकारियों के संरक्षण में महिला अपराध/साइबर अपराध किए जा रहे हैं।'


उन्होंने आगे कहा कि 'संतोष कुमार सिंह के द्वारा की गई जाँच/विवेचना पूर्ण रुप से असत्य एवं गलत है जोकि शासनादेश का उलंघन करते हुए निजी स्वार्थवश की गयी है। बचाव में पुलिस के कुछ लोग बदले की भावना से पीड़ित परिवार के खिलाफ षडयंत्र रच रहे हैं और फर्जी लिखा-पढी कर रहे हैं। इस संबंध में कुछ पुलिसवालों से वार्तालाप की कॉल रिकार्डिंग सुरक्षित हैं (ऑडियो की कॉल रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराई गई हैं)। आरोप लगाया कि कई अराजक प्रवृति के लोगों को पीड़ित परिवार के खिलाफ उकसाकर लगाया गया है। पीड़ित परिवार पुलिस और बदमाशों के डर से तंग आकर राजधानी में ही छिपकर रह रहा है लेकिन वहां पर वह सुरक्षित नहीं है, कभी भी परिवार के अस्तित्व को ही समाप्त किया जा सकता है।
इस मामले में 7 फरवरी को हजरतगंज के महिला थाना में सुरेंद्र सिंह, साधना सिंह, विवेक शुक्ला और मुंगेश शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई लेकिन पीड़ित परिवार का कहना है कि थानाध्यक्ष ने महिला का बयान दर्ज करने से मना कर दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपी आतंकी सुरेन्द्र सिंह उत्तर रेलवे में टीटीई के पद पर 2018 में रायबरेली में कार्यरत था। उसकी पत्नी दो बच्चों के साथ रायबरेली में रहती हैं। सुरेन्द्र सिंह और साधना सिंह को बचाने के लिए पुलिस ने संदिग्ध नंबरों को सर्विलांस पर नहीं लगाया और आज तक साइबर जांच नहीं करायी। दिलीप कुमार आगे बताते हैं कि एफआईआर दूसरे सर्किल में दर्ज की गई है लेकिन फिर भी जांच महानगर के सीओ को दे दी जाती है और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर तथ्यों के साथ हेराफेरी करके एफआईआर को महानगर थाने में दर्ज दिखाकर गलत आचरण कर रहे हैं और उच्च अधिकारियों व न्याय व्यवस्था को गुमराह कर रहे हैं। जांच विवेचना के नाम पर पुलिस संबंधित साक्ष्यों को नष्ट करने में लगी हुई है|


पीडित पक्ष जनवरी 2019 से (एफआईआर दर्ज होने के पहले से) जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी/सीबीसीआईडी से कराए जाने की मांग कर रहा है। इस संबंध में मुख्यमंत्री जन सुनवाई पोर्टल पर और डायल 1076 पर कई शिकायत दर्ज करायी जा चुकी है। पीड़ित परिवार के मुताबिक, पुलिस प्रशासन एवं शासन प्रशासन के उच्च अधिकारियों को अनेक पत्र देकर अनुरोध किया गया कि जांच स्वतंत्र एजेंसी/सीबीसीआईडी/एसआईटी से करायी जाय। लेकिन उनके पत्रों को अनदेखा किया जा रहा है और जबरदस्ती एक पक्षीय जांच/कार्यवाही किया जा रही है।