राम मंदिर बनते देखने की लालजी टंडन की अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकी

लखनऊ की जनता के प्रति था टंडन का विशेष लगाव


राजनीति में टंडन की खास पहचान इसलिए मानी गई


अटल जी का राजनैतिक इतिहास अगर लखनऊ की धरती से जुड़ा, तो उसके पीछे लाल जी टंडन की मुख्य भूमिका रही


त्रिनाथ कुमार शर्मा  









लखनऊ । मध्य प्रदेश के राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के नेता लालजी टंडन का मंगलवार सुबह निधन हो गया। 85 वर्षिया लालजी काफी लंबे समय से बिमार चल रहे थे। मंगलवार सुबह करीब 5:35 बजे लखनऊ के मेदांता अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। लालजी टंडन का निधन हो जाने से अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनते देखने की उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकी।

समर्थकों और शुभचिन्तकों के बीच 'बाबूजी' के नाम से लोकप्रिय लालजी टंडन का नाम उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं की सूची में शुमार है। उनका राजनीतिक करियर कई दशकों लंबा रहा, जिसमें उन्होंने राज्य में मंत्री बनने से लेकर कई राज्यों का राज्यपाल बनने तक का सफर तय किया। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर के नेता टंडन (85) लोकसभा सांसद भी रहे और मौजूदा समय में मध्य प्रदेश के राज्यपाल थे।

'बाबूजी' के नाम से लोकप्रिय टंडन 2009-14 में लखनऊ लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए। उस समय खराब स्वास्थ्य के चलते अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सीट से चुनाव नहीं लड़ा था। मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में उन्होंने 29 जुलाई 2019 को शपथ ली थी। इससे पहले 23 अगस्त 2018 से 28 जुलाई 2019 तक वह बिहार के राज्यपाल थे।

उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह की सरकार थी तब लालजी टंडन नगर विकास मंत्री के साथ अयोध्या मामले के प्रभारी भी थे। वो चाहते थे कि अयोध्या में जल्द भव्य राम मंदिर बने। राम मंदिर के लिए भूमि पूजन आगामी 5 अगस्त को प्रस्तावित है लिहाजा उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकी। लालजी जीवन के अंतिम समय में अयोध्या जाकर रामलला का दर्शन भी करना चाहते थे लेकिन बीमारी के कारण यह भी संभव नहीं हो सका। वह भोपाल से 10 जून को लखनऊ आए थे। उनकी तबीयत पहले से ही कुछ खराब थी। उन्हें 11 जून को मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनको सांस लेने में परेशानी के साथ बुखार तथा पेशाब की दिक्कत थी। उनका स्वास्थ्य तो भोपाल से ही गड़बड़ था इसलिए वो लखनऊ आने के लिए बेकरार थे। टंडन जब मध्य प्रदेश के राज्यपाल बने, तब वहां कांग्रेस सरकार थी। मार्च में वहां राजनीतिक उठा-पटक और कांग्रेस के बाहर जाने ओर भाजपा के सत्ता में आने के पूरे घटनाक्रम में टंडन की भूमिका काफी चर्चा में रही। मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से मार्च में छह मंत्रियों सहित 22 विधायकों ने बगावत कर दी और इस्तीफा दे दिया। ये सभी पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी माने जाते थे।


जब कमलनाथ ने शक्ति परीक्षण में देरी की तो मंझे हुए प्रशासक एवं राजनेता के रूप में टंडन ने सरकार से कहा कि वह विधानसभा में बहुमत साबित करे। इसके बाद मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच पत्राचार का सिलसिला चलता रहा, जो बाद में कानूनी लड़ाई में तब्दील हो गया। अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे प्रकरण में टंडन के निर्देश के पक्ष में फैसला सुनाया। कमलनाथ सरकार 22 विधायकों के इस्तीफे से अल्पमत में आ गयी और सरकार गिर गयी, जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने का रास्ता तैयार हुआ। उसी समय देश भर में वैश्विक महामारी कोविड-19 फैली और अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश में भी लॉकडाउन लगा। इस दौरान टंडन ने जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचाने के लिए राजभवन की रसोई खोल दी। साथ ही राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में टंडन शैक्षिक संस्थानों की नियमित निगरानी करते रहे और उन्होंने सुनिश्चित किया कि किसी भी कीमत पर शिक्षण के मानदंड बने रहें।


टंडन का जन्म 12 अप्रैल 1935 को लखनऊ के चौक में हुआ था। स्नातक करने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। पहली बार वह 1978 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बने। ऊपरी सदन में वह दो बार 1978-1984 और उसके बाद 1990 -1996 के बीच चुने गए। वह 1996 से 2009 के बीच तीन बार विधायक चुने गए और 1991-92 में पहली बार उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री बने। उस समय उनके पास उर्जा विभाग था।


उत्तर प्रदेश में भाजपा के दमदार नेता माने जाने वाले टंडन ने बसपा-भाजपा की गठबंधन सरकार में बतौर शहरी विकास मंत्री अपनी सेवाएं दी। उन्होंने कल्याण सिंह सरकार में भी बतौर मंत्री अपनी सेवाएं दी थीं। लालजी का विवाह 1958 में कृष्णा टंडन से हुआ था। उनके तीन बेटे हैं। उनमें से एक आशुतोष टंडन इस समय उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री हैं।


लाल जी टंडन के न रहने की खबर मंगलवार को तड़के जैसे ही आई, लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ कि उनके परिवार का कोई सदस्य उनसे रुखसत हो गया हो। लखनऊ के अलावा पूरा देश उनके निधन से स्तब्ध है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ उनकी राजनीतिक कर्मशाला और पाठशाला जैसी रही, तभी उन्हें 'लखनऊ का लाल' कहा जाता था। लखनऊ की मिट्टी से दो राजनेताओं का जुड़ाव सबसे ज्यादा रहा। अव्वल, अटल बिहारी वाजपेई और दूसरे लाल जी टंडन। बाबूजी के नाम से प्रसिद्व लाल जी टंडन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के हमेशा करीबी और अतिप्रिय रहे। अटल जी का राजनैतिक इतिहास अगर लखनऊ की धरती से जुड़ा, तो उसके पीछे लाल जी टंडन की मुख्य भूमिका रही।


अटल जी ने लखनऊ के अलावा कई बार दूसरे शहरों से चुनाव लड़ने का मन बनाया लेकिन ऐसा हो ना सका, कारण था? लखनऊ की जनता के प्रति उनका विशेष लगाव। लखनऊ के लोग कितना प्यार करते थे, ये बातें लाल जी टंडन ही उन्हें बताया करते थे। लाल जी का अलविदा कहना, निश्चित रूप से भारतीय राजनीति में एक ऐसा खालीपन होगा, जिसकी भरपाई सदियों कोई नहीं कर पाएगा? अटल जी का लखनऊ से दिल्ली और दिल्ली से अन्य शहरों में कहीं भी जाना होता, तो लाल जी टंडन उनके साथ साए की तरह साथ रहते थे। खैर, कुदरत की नियति और नियमों के समक्ष भला किसका जोर चला। मध्य प्रदेश के राज्यपाल और उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले लाल जी टंडन अब हमारे बीच नहीं रहे।

राजनीति में उनकी खास पहचान इसलिए मानी गई, वह अटल बिहारी वाजपेई के सबसे विश्वस्त सहयोगियों में गिने जाते थे। अटल जी जी उनपर आंख मूंदकर विश्वास किया करते थे। राजनीति में लाल जी टंडन का उप नाम बाबू जी था। इसी नाम से वह पुकारे जाते थे। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक समर्पित सेवक रहे। राजनीति के शुरुआती दिनों से ही उनकी संघ के भीतर सक्रियता अग्रणी रही। कई मंचों पर अटल जी ने अपने संबोधन में लाल जी को निष्ठावान और ईमानदार कार्यकर्ता कहा था। बाबूजी ने सियासत का ककहरा लखनऊ से सीखा। उन्होंने सदैव अटल जी को ही अपना राजनीतिक गुरु माना।

मध्य प्रदेश के राज्यपाल बनाए जाने के बाद भी उनका लखनऊ नियमित आना-जाना रहा। लखनऊ की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। अटल बिहारी वाजपेई के विभिन्न चुनावों के रणनीतिकार हुआ करते थे। टंडन जी विधान परिषद् एवं विधान सभा के सदस्य रहे। उत्तर प्रदेश के मंत्री के नाते उन्होंने प्रदेश के अनेक नगरों को विकास की ओर अग्रसर किया, विशेष कर नगरीय सुविधाओं के लिए महत्वपूर्ण काम किया। लखनऊ के नवीनीकरण में उनका योगदान सदा स्मरणीय रहेगा। टंडन जी कार्यकर्ताओं के बीच भी बेहद लोकप्रिय थे। उनका निधन राजनीति के लिए अपूर्णीय क्षति हुई है। टंडन जी के जाने से सुसंस्कृत एवं सिद्धांत प्रिय व्यक्तिव का गहरा अभाव रहेगा। हर दिल अजीज थे और लखनऊ की परंपराओं में रचे बसे थे।

विपक्ष दलों के भीतर भी बाबूजी का बड़ा आदर हुआ करता था। बसपा प्रमुख मायावती ने उनको मुंह बोला भाई बनाया हुआ था। प्रत्येक रक्षाबंधन पर उन्हें राखी बांधने घर जाया करती थीं। उत्तर प्रदेश में बसपा और भाजपा के बीच जब गठबंधन हुआ था, उसमें टंडन जी की अहम भूमिका थी। मायावती और लाल जी के बीच भाई-बहन का रिश्ता बन जाने के बाद दोनों दल एक साथ आए थे और मिलकर सरकार बनाई थी। प्रदेश भर में राखी बांधने की चर्चाएं हुआ करती थी। दरअसल, मायावती लाल जी टंडन को हमेशा चांदी की राखी बांधा करती थीं। मायावती खुद पर लाल जी टंडन का एहसान समझती थीं।

बात 1995 की है जब चर्चित गेस्ट हाउस कांड की घटना घटी, उस दौरान मायावती की जान खतरे में पड़ी, तब लाल जी टंडन और एक अन्य भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मौके पर पहुँचकर मायावती को सकुशल आजाद कराया था। तभी से मायावती उनका एहसान मानती थी। उसके कुछ सालों बाद मायावती ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। वह मुख्यमंत्री बनी थी। वहीं से मायावती और लाल जी टंडन के बीच भाई-बहन का रिश्ता बना, जो हमेशा यथावत रहा। रिश्ते-संबंध निभाने में उनका कोई सानी नहीं था। हर रिश्ते में वह ईमानदारी दिखाते थे। लाल जी टंडन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अपना साथी, भाई और पिता मानते थे। उनके साथ करीब पांच दशकों तक रहे। इतना लंबा साथ अटल का शायद ही किसी और राजनेता के साथ रहा हो। लाल जी का यूं चले जाना, भाजपा के लिए बड़ा आघात है। वह पार्टी के लिए विशालकाय प्रशिक्षक, थिंकर, प्रेरणादायक जैसे थे। आधुनिक लखनऊ के वह शिल्पकार थे। उन्हें श्रद्धांजलि!