दिवंगत शायर राहत इंदौरी पर वेबिनाॅर: हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी मुहब्बत का पैगाम दिया तो जगायी समाजिक राजनीतिक चेतना

लखनऊ, 23 अगस्त। राहत इंदौरी महज एक मशहूर शायर ही नहीं वर्तमान समय के बहुआयामी प्रतिभा के धनी चर्चित व्यक्तित्व थे। मंचीय शायरी से अलग सामाजिक राजनीतिक चेतना जाग्रत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी की ओर से आज षाम ‘मैं जब मर जाऊं मेरी अलग पहचान लिख देना, मेरी पेशानी पर हिन्दुस्तान लिख देना’ जैसे षेर कहने वाले शायर की फन और षख्सियत विषयक वेबिनार में कुछ ऐसे ही विचार देश-विदेश के विद्वानों ने व्यक्त किये। मंचों पर छाये रहने वाले 70 वर्षीय शायर राहत इंदौरी का 11 अगस्त को बीमारी से निधन हो गया था। वर्ष 1975 में बरकत उल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से एम ए किया और फिर 1985 में उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और षिक्षक के तौर पर कार्य करते हुए षोधछात्रों का मार्गदर्षन किया। राहत इंदौरी ने सर, खुद्दार, मर्डर, मुन्नाभाई एमबीबीएस, मीनाक्षी, बेगम जान, इष्क आदि लगभग दो दर्जन फिल्मों में एम बोले तो...., तुमसा कोई प्यारा...., दिल को हजार बार.... जैसे अनेक लोकप्रिय गीत लिखे।
वेबिनाॅर में मुख्य अतिथि के तौर पर दोहा कतर की बज्मे सदफ के सदर मो.सबीह बुखारी तथा विषिष्ट अतिथियों के तौर पर दुबई के जुबैर फारुकी, दोहा के शहाबुद्दीन अहमद, लाहौर के अब्बास ताबिष और कराची के कैसर बज्दी आमंत्रित थे।
प्रख्यात षायर हसन कमाल की अध्यक्षता और हसन काजमी के संचालन में हुए वेबिनाॅर में वरिष्ठ शायर मुनव्वर राना के पढ़े गये संदेष में उन्होंने राहत से कई दशकों के सम्बंधों का हवाला देते हुए कहा कि राहत मेरे बड़े भाई की तरह थे और खुद को मेरे वालिद की बड़ी औलाद बताते थे। हमारे अंतरंग सम्बंधों का अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि अपनी मां के निधन पर इकलौता फोन उन्होंने मुझे किया था।
मुख्य वक्ता अलीगढ़ विष्वविद्यालय प्रो.शाफे किदवई ने शायरी में उनके योगदान को रेखांकित करते हुए उन्हें प्रोटेस्ट का शायर बताया और कहा कि वे स्वयं एक षिक्षक थे। पीएचडी करने के बाद उन्होंने प्रोफेसर के रूप में 16 वर्ष तक शिक्षण किया तथा अपने मार्गदर्शन में कई छात्रों को पीएचडी कराया। दिल्ली विष्वविद्यालय के प्रो.इर्तिजा करीम ने कहा कि राहत ने एक तरह की षायरी से अपना विषिष्ट मुकाम बनाया और अनेक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दे उठाये।
कमेटी के महामंत्री व संयोजक अतहर नबी ने राहत की षायरी को मायूसी के अंधेरे में उम्मीद की किरन जैसी बताते हुए कहा कि राहत ने अपनी षायरी के जरिये सोती हुई कौम को जगाने का काम किया और उनके समाजी और सियासी षऊर पैदा करने की कोषिष की। उनका लहजा बेजोड़ था तो आवाज में कषिश थी।
वेबिनार में अंजुम बाराबंकवी ने कहा कि अपनी बेवाक शायरी के बल पर वह हमेशा जिंदा रहेंगे। कई षेर पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे षायर को उनके अशआर जिन्दा रखेंगे। चरन सिंह बषर ने बताया कि शायर बनने से पहले वह चित्रकार बनना चाहते थे। अपनी षायरी में भी उन्होंने उम्दा चित्रांकन किया है। षबीना अदीब ने अनेक मुशायरे साझा करने का ब्यौरा देते हुए कहा कि वे सबका हौसला बढ़ाने वाले प्रेरक शायर थे। फरहाद बहादुर इंदौरी ने अपने संस्मरण रखते हुए बताया कि राहत ने जीवन में कठिन दौर देखे थे उन्हीं अनुभवों की बदौलत उनकी शायरी में एक ओर बगावती तेवर थे तो दूसरी ओर मुहब्बत के रंग भरे अल्फाज थे।
उज्जैन से शामिल शबनम अली के अनुसार राहत मंचीय मुशायरों की जान हुआ करते थे, उनका एक बड़ा श्रोता वर्ग था। डा.अनीस अंसारी राहत इंदौरी के निधन को षेर ओ अदब की दुनिया की हानि बताते हुए कहा कि इसकी भरपाई असम्भव है। सुहैल काकोरवी ने उन्हें मंच का बादशाह बताते हुए कहा कि किताबों के कवर पेज डिजाइन करना भी उनका षौक था। पहले उन्होंने फिल्मों के लिए पोस्टर व बैनर भी डिजाइन किए। षायर मनीष षुक्ला ने कहा कि सारे विष्व के मुशायरों में उनके जैसा स्टारडम किसी और को नहीं मिला। राजवीर रतन ने कहा कि उम्दा रचनाकार तो वे थे ही मंच पर एक अभिनेता की भांति ‘थियेट्रिकल एप्रोच’ से अपनी प्रस्तुति को आकर्षक बना देते थे। जौहर कानपुरी ने कहा उनका जाना पूरी उर्दू अदब का नुकसान है। डा.एहतिशाम खान ने बताया कि संवेदनषील बेबाक शायर के साथ ही वे जरूरतमंदों के लिए मददगार फरिष्ता भी थे। इसके अलावा वेबिनाॅर में संजय मिश्रा षौक, मेराज हैदर, डा.मसीहुद्दीन खान, मंसूर हसन, साबरा हबीब, शहाबुद्दीन अहमद, डा.सुल्तान षाकिर हाषमी, एसएन लाल, जियाउल्लाह सिद्दीकी, डा.यासिर जमाल इत्यादि ने भी विचार व्यक्त किये और शामिल हुए।