'राम काज कीन्हे बिना मोंहि कहाँ विश्राम '

 'राम काज कीन्हे बिना मोंहि कहाँ विश्राम '


  ...अब लोक जीवन में रमे राम


...अब लगे हाथ रामराज्य की बुनियाद भी पड़ जानी चाहिए


त्रिनाथ कुमार शर्मा  
 


लखनऊ। जिन पांच लोगों महंत दिग्विजयनाथ, महंत अविराम दास, बाबा राघवदास, रामचन्द्र परमहंस और हनुमान दास पोद्दार ने राममंदिर मुक्ति आंदोलन की आरंभिक कमान संभाली, उनमें से कोई भी भूमि पूजन की शुभ घड़ी को देख पाने के लिए अब मौजूद नहीं हैं। अशोक सिंघल जिन्होंने इस आंदोलन को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, वे भी गोलोकवासी हो चुके हैं। ऐसे में जरूरी है कि जन-जन की आस्था के प्रतीक प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण में अब एक पल भी बर्बाद न किया जाए। अयोध्या को त्रेता युग जैसी बनाने का जो विचार सरकार के स्तर पर व्यक्त किया है, उसे राममंदिर निर्माण के समानांतर ही मूर्त रूप दिया जाए, यही वक्त का तकाजा भी है। राम को सबका बताया है। सम्पूर्ण विश्व वसुधा का बताया है। उमा भारती की इस बात में दम है कि राममंदिर निर्माण का सपना पूरा हो रहा है, अब बारी रामराज्य लाने की है। रामराज्य मंदिर बनने से ही आ जाएगा, ऐसा संभव नहीं है। यह देश सोने की चिड़िया इसलिए था कि मंदिर जन-जागरण के केंद्र हुआ करते थे। वे अपने क्षेत्र के लोगों को न केवल एकजुट रखते थे बल्कि उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित करने का दायित्व भी निभाते थे। समाज को उसके संस्कारों और आदर्शों से जोड़े रखते थे।


राम आदर्शों के समुच्चय हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। अपने भाइयों से तो प्रेम करते ही हैं, जीव मात्र के प्रति दया और करुणा का भाव रखते हैं। राम लोकजीवन की मर्यादा हैं। लोग कसम भी खाते हैं तो राम का नाम लेते हैं। तौल व्यापार करते हैं तो भी राम का नाम लेते हैं। जीवन-मरण के हर लोक व्यवहार में राम प्रासंगिक हैं, तभी तो राम जन-मन में बसते हैं। तभी तो गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तीन तैसी।कबीरदास ने लिखा है कि एक राम घट-घट में बोला, एक राम दशरथ गृह डोला। एक राम का जगत पसारा। एक राम सब जग से न्यारा। मतलब एक ही राम की सर्वत्र व्याप्ति है। रामराज्य तब आता है जब लोकजीवन में राम के आदर्श और सिद्धांत जीवंत और जागृत होते हैं।

 


1528 से चला आ रहा इंतजार खत्म हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन कर राममंदिर निर्माण की औपचारिक शुरुआत कर दी। साथ ही अपना संकल्प भी जाहिर कर दिया- 'राम काज कीन्हे बिना मोंहि कहाँ विश्राम।' जो बात रामभक्त हनुमान ने मैनाक पर्वत से कही थी, वही बात देशवासियों से कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का दिल जीत लिया है।

रामभक्तों की असल परीक्षा तो अब शुरू हुई है। अयोध्या भगवान राम की ही थी, है और रहेगी, इसे साबित करने का समय आ गया है। प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा है कि राम का काम हुए बिना उन्हें चैन नहीं है। यही भाव हर भारतवासी में होना चाहिए। हर सनातन हिन्दू धर्मावलंबी में होना चाहिए। यह हर रामभक्त की परीक्षा की घड़ी है। राम के काम में परीक्षा जरूर देनी पड़ती है। परम शक्तिशाली हनुमान को भी समुद्र लांघना होता है, सुरसा के मुंह में जाना होता है। सिंहिनी राक्षसी का ग्रास बनने से बचना पड़ता है। लंका में बंधना पड़ता है। उपहास झेलना पड़ता है। यही नहीं, उन्हें जिंदा जलाने के दानवी प्रयास भी होते हैं। रामकाज में प्रतिष्ठा तो मिलती है, लेकिन इससे पूर्व कम अपमानित भी नहीं होना पड़ता। प्रधानमंत्री कारसेवक बनकर अयोध्या आए थे और इसबार नींव रखने। इस बीच 29 साल का समय लग गया। संकल्प है कि तीन साल में भव्य और दिव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार की, राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र परिषद ट्रस्ट की भूमिका और बढ़ गई है। तय समय में राम मंदिर का परिपूर्ण भव्यता और दिव्यता से गुणवत्तापूर्वक बनाया जाना मौजूदा समय की मांग भी है।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आध्यात्मिक व्यक्ति हैं, वे हर क्षण देशवासियों को प्रेरित और जागरूक करने में जुटे रहते हैं। राममंदिर पर दिए गए अपने व्याख्यान से भी उन्होंने ऐसा ही कुछ किया है। मौजूदा समय राम को अपने जीवन और व्यवहार में उतारने का है। राम इस देश की आत्मा हैं। प्राण हैं। वह राजराजेश्वर हैं। पृथ्वीपति हैं। आत्माराम हैं। परम आचरणवान हैं। विग्रहवान धर्म है। मंदिर निर्माण की उपादेयता व्यक्ति के चरित्र निर्माण में है, लोक व्यवहार की शुचिता और उसके सुनिश्चित अनुपालन में है।

राम मंदिर के निर्माण की बुनियाद का पूजन हो गया है। अब लगे हाथ रामराज्य की बुनियाद भी पड़ जानी चाहिए। सरकार ने मंदिर के साथ ही नव्यअयोध्या के विकास का भी संकल्प लिया है। यह एक स्वस्थ सोच है। हर जिले, तहसील और गांव को विकसित होना चाहिए। गांव-गांव, घर-घर राम के आदर्शों और सिद्धांतों की प्रतिष्ठा हो। कोई दरिद्र, अशिक्षित और बेरोजगार न रहे, इस दिशा में भी सोचने और काम करने की जरूरत है। तभी यह देश परम सांस्कृतिक वैभव का स्वामी बन सकता है। सामाजिक-राजनीतिक जीवन में 'रामराज्य' हर तरह के ताप अर्थात कष्ट से मुक्ति को रेखांकित करता है। इस रामराज्य की शर्त है स्वधर्म का पालन करना। अपने को निमित्त मान कर दी गई भूमिकाओं का नि:स्वार्थ भाव से पालन करने से ही रामराज्य आ सकेगा। ऐसा करने के लिये पर हित और परोपकार की भावना करनी होगी क्योंकि वही सबसे बड़ा धर्म है- पर हित सरिस धर्म नहि भाई। यही मनुष्यता का लक्षण है क्योंकि अपना हित और स्वार्थ तो पशु भी साधते हैं। अत: राम की प्रीतिलोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। वाल्मिकी ने तो राम को धर्म की साक्षात साकार मूर्ति घोषित किया है (रामो विग्रहवान धर्म:)। इसलिए रामभक्त होने से यह बंधन भी स्वत: आ जाता है कि हम धर्मानूकूल आचरण करें। हमारी कामना है कि राम मन्दिर निर्माण के शुभ कार्य से देश के जीवन में व्याप्त हो रही विषमताओं, मिथ्याचारों, हिंसात्मक प्रवृत्तियों और भेदभाव की वृत्तियों का भी शमन होगा और समता, समानता और न्याय के मार्ग पर चलने की शक्ति मिकेगी।


दरअसल, अयोध्या में बनने वाला भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर भौगोलिक समरसता का एक ऐसा अनुपम उदाहरण बन सकता है, जो विश्व में जाति, पंथ, धर्म और भाषावाद के नाम पर होने वाले भेदों से ऊपर उठकर मानव जीवन के उत्थान को प्रेरणा देगा। लेकिन यह सिर्फ श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अथवा सरकार एवं अकेले अयोध्या वासियों के प्रयासों से फलीभूत नहीं होगा, इसके लिए देश के हर नागरिक को समरसता के इस यज्ञ में शामिल होना होगा।


प्रधानमंत्री का यह कहना कि भारत भगवान भास्कर के सानिध्य में सरयू के किनारे एक स्वर्णिम अध्याय लिख रहा है, कोई साधारण शब्द नहीं है। सही अर्थों में आज देश के हर नागरिक के समक्ष एक ऐसा अवसर है जो राममंदिर के जरिए समरसता के एक ऐसे अनुष्ठान का हिस्सा बन सकता है, जिसमें कन्याकुमारी से क्षीर भवानी, कोटेश्वर से कामाख्या, जगन्नाथ से केदारनाथ, सोमनाथ से काशी विश्वनाथ, बोधगया से सारनाथ, अमृतसर से पटना साहिब, अंडमान से अजमेर, लक्षद्वीप से लेह तक हर देशवासी सांस्कृतिक रूप से समरस हो जाएं। श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट एवं मंदिर निर्माण में जुटे संतों के प्रयासों से देश के हर पवित्र स्थल की मिट्टी मंदिर के निर्माण में लगाई जाएगी, पवित्र नदियों का जल मंदिर निर्माण लगाया जाएगा लेकिन इन सबके साथ देश के हर नागरिक को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन दर्शन को राष्ट्र जीवन के साथ एकाकार करने के लिए एकरस होना पड़ेगा।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों के जरिए मंदिर आंदोलन में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहभागी रहे महान हुतात्माओं को 130 करोड़ देशवासियों के जरिए शब्दांजलि प्राप्त हुई। राम हमारे मन में किस प्रकार घुले-मिले हैं, इसका उन्होंने समकालीन परिस्थितियों के साथ उदाहरण दिया। आज कोरोना संकट हो या फिर जाति, पंथ के झगड़े उनका समाधान यदि कहीं मिलता है तो भगवान राम के मर्यादित जीवन आचरण से। व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में ऐसी मर्यादित आचरण संहिता भगवान राम ने प्रस्तुत की, जो मानव जीवन के हर पक्ष को दिशा और समाधान प्रदान करती है। लेकिन यह भी सत्य है कि भगवान राम के अस्तित्व को मिटाने के न जाने कितने प्रयास हुए लेकिन आज भी भगवान राम हमारी संस्कृति के आधार हैं।


प्रधानमंत्री ने जब यह कहा कि भगवान श्रीराम का मंदिर भारतीय संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा। तो इसके संकेत मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों के साथ अयोध्या शहर को नए सिरे से तैयार करने में जुटे हर व्यक्ति व संस्थान के लिए निहित है। इस मंदिर के बनने के बाद अयोध्या की भव्यता ही नहीं बदेलगी, पूरे क्षेत्र का अर्थतंत्र भी बदल जाएगा। इसकी कुछ-कुछ झलक दिखनी प्रारंभ भी हो गई है। अयोध्या में 104 करोड़ रुपये की लागत से रेलवे स्टेशन बनाया जाएगा। इसका निर्माण दो चरणों में पूरा होगा। जून 2021 तक बनकर तैयार होने वाला यह रेलवे स्टेशन दुनिया का सबसे आधुनिक रेलवे स्टेशन होगा, साथ ही इसमें भारत के सांस्कृति झलक, उसके गौरवशाली इतिहास का हर प्रतिबिंब परिलक्षित होगा।


अयोध्या को सांस्कृतिक पर्यटन की वैश्विक राजधानी बनाए जाने का सबसे सुंदर अवसर है। जाहिर है, इसके लिए पर्यटन क्षेत्र से जुड़ी तमाम परियोजनाएं साकार करनी होगी। पर्यटन सुविधाओं का जिक्र आता है तो सर्वप्रथम नागरिक उड्डयन की बात आती है। अयोध्या के पास अंतर्राष्ट्रीय हवाई सुविधा के विस्तार का एक ऐसा अवसर है जो राम सर्किट के साथ पूर्वी भारत के सभी तीर्थ स्थलों को एक सूत्र में पिरो सकता है। प्रधानमंत्री ने राम सर्किट का अपने उद्बोधन में जिक्र कर उस पूरे क्षेत्र में पर्यटन की सुविधाओं का विस्तार की संभावनाओं को बल दिया है, जो राम सर्किट से जुड़े हैं, या जोड़े जा रहे हैं।


दरअसल अभी भी देश में हर दूसरा घरेलू पर्यटक धार्मिक यात्रा पर ही जाता है। इसलिए सरकार इसे और बढ़ावा देने की कोशिश में जुटी है। ऐसे में जरूरी है कि अयोध्या ही नहीं भगवान राम के जहां-जहां पदचिह्न पड़े उन सभी स्थलों और पर्यटन केंद्रों को आधारभूत संरचनाओं से युक्त किया जाए। अयोध्या में ही एक नया एयरपोर्ट बनने जा रहा है। जिस प्रकार पीएम मोदी ने अपने उद्बोधन में आज की मानवीय चुनौतियों को देखते हुए भगवान राम की मर्यादाओं को प्रासंगिक बताया है, उससे एक उम्मीद यह भी बढ़ी है कि अयोध्या को एक ऐसे शहर के रूप में विकसित किया जाए, जो मानव जीवन की कई चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करे।


अयोध्या को जितना जल्द हो सके प्लास्टिक और पॉलिथिन के प्रयोग को शून्य स्तर पर ले जाना होगा। पिछले कुछ वर्षों में अयोध्या और उसके आसपास की हरियाली को विकास के नाम पर काफी क्षति पहुंचाई गई है, इसे पुन: लौटाना होगा। हालांकि कई स्थानों पर वृक्षारोपण के व्यापक अभियान संचालित किए गए हैं लेकिन शहर के भीतर सजावटी पौधे अधिक लगाए गए हैं, जो पर्यावरण को टिकाऊ रूप नहीं दे पाते हैं। बेहतर होगा कि सड़क किनारे जहां सजावटी पौधे लगाकर कुछ समय के लिए आकर्षण पैदा करने का प्रयास किया गया है, उसे नीम, पीपल, बेल, आम, जामुन आदि लगाए जाएं। छायादार और फलदार पौधे अयोध्या की पहचान रहे हैं।


आज पूरी दुनिया जिस प्रकार पर्यावरण और ऊर्जा संकट से जूझ रही है, ऐसे में भगवान राम का पर्यावरण प्रिय व्यक्तित्व हमारे समक्ष समाधान लेकर आता है। आज जिस तेजी से भारत गैस आधारित अर्थव्यवस्था अथवा स्वच्छ ऊर्जा उपक्रमों की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में जरूरी है कि अयोध्या और उसके आसपास के शहरों में पाइपलाइन के जरिए लोगों के घरों तक गैस पहुंचाए जाने की योजना का विस्तार किया जाए। इसी प्रकार पवन ऊर्जा से लेकर सौर ऊर्जा की संभावनाओं को भी अवसर में बदला जा सकता है। ध्यान रहे अयोध्या के अर्थतंत्र का पूर्व नियोजन सिर्फ एक या दो दशकों की चुनौतियों को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि भविष्य में पर्यटन की संभावनाओं, जीवन में बढ़ते डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की उपयोगिता, आत्मनिर्भरता और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते अनुप्रयोग के आधार पर करना होगा। जाहिर है, अयोध्या में पर्यटन की संभावनाओं के इतने बड़े व्यापक अवसर को बिना कौशल विकास के मूर्त रूप देना संभव नहीं होगा, ऐसे में यहां के मानव संसाधन को पर्यटन क्षेत्र से जुड़ी तमाम सेवाओं को लेकर प्रशिक्षित करना होगा, यह रोजगार सृजन के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के लिए स्वर्णिम अवसर है। ऐसा कर हम सही अर्थों में अयोध्या को एक ऐसा प्रकल्प बना सकते हैं, जहां दुनिया आध्यात्मिक चेतना, मानव जीवन की मर्यादाएं, शांति, समरसता और संकल्प से सिद्धि का साक्षात्कार करेगी।