इस वर्ष 16 सितंबर 2020 को विश्वकर्मा पूजा की जाएगी।

विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर 2020 : जानिए मुहूर्त, मंत्र, महत्व और 8 पौराणिक तथ्य



इस वर्ष 16 सितंबर 2020 को विश्वकर्मा पूजा की जाएगी


 


हर साल अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को विश्वकर्मा पूजा की जाती है


 


वास्तुशिल्प के रचनाकार हैं विश्वकर्मा


 


पूरे ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता हैं विश्वकर्मा


 


लखनऊ । हस्तशिल्पी कलाकार भगवान विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है। इसे विश्वकर्मा पूजा के नाम से भी जानते हैं। लेकिन इस बार विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर को की जाएगी। विश्वकर्मा पूजा हर वर्ष बंगाली माह भाद्र के आखिरी दिन भाद्र संक्रांति को मनाया जाता है, इसे कन्या संक्रांति भी कहा जाता है। इस वर्ष कन्या संक्रांति 16 ​सितंबर दिन बुधवार को है। ऐसे में इस बार विश्वकर्मा पूजा कल बुधवार 16 सितंबर को मनाया जाएगा। आज के दिन विधिपूर्वक भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से रोजगार और बिजनेस में तरक्की मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पी कहा जाता है। वे निर्माण एवं सृजन के देवता हैं। वे संसार के पहले इंजीनियर और वास्तुकार कहे जाते हैं।


धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा जी का जन्म कन्या संक्रांति के दिन हुआ था। इसी कारण हर साल कन्या संक्रांति पर इनकी पूजा की जाती है। आपको बता दें कि इस साल विश्वकर्मा दिवस के दिन कई ऐसे योग बन रहे हैं जिनमें पूजा करने पर आपको कई गुना लाभ प्राप्त होंगे।


विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त



16 सितंबर को सुबह 06 बजकर 53 मिनट पर कन्या संक्रांति का क्षण है। इस समय पर सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। कन्या संक्रांति के साथ ही विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त प्रारंभ हो जाएगा। पूजा के समय राहुकाल का ध्यान रखना होता है। विश्वकर्मा पूजा के दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से 01 बजकर 53 मिनट तक है। इस समय काल में पूजा न करें। राहुकाल को छोड़ कर किसी भी समय पूजा कर सकते हैं। भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए सपत्नीक घर और प्रतिष्ठान में फूल व चावल हल्दी और जल छिड़कने चाहिए। इसके बाद पूजन करने वाले व्यक्ति को पत्नी के साथ यज्ञ में आहुति देनी चाहिए। पूजा करते समय दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि का प्रयोग करना चाहिए। पूजन से अगले दिन प्रतिमा के विसर्जन करने का विधान है।


 



पूजन के लिए मंत्र:-



भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ‘ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनंतम नम:, पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला हो। यदि आप चाहे तो मात्र एक मंत्र "ॐ विश्वकर्मणे नमः" का जाप करना चाहिए। यह विश्वकर्मा जी को प्रसन्न करने का सबसे सुलभ और शुभ फल प्राप्ति करने का मंत्र है। जप शुरू करने से पहले ग्यारह सौ, इक्कीस सौ, इक्यावन सौ या ग्यारह हजार जप का संकल्प लें। चुंकि इस दिन प्रतिष्ठान में छुट्टी रहती है तो आप किसी पुरोहित से भी जप संपन्न करा सकते हैं।



औजारों की पूजा



विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिष्ठान के सभी औजारों या मशीनों या अन्य उपकरणों को साफ करके उनका तिलक करना चाहिए। साथ ही उन पर फूल भी चढ़ाएं। हवन के बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण करना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा के प्रसन्न होने से व्यक्ति के व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने वाले व्यक्ति के यहां घर धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती। इस पूजा की महिमा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि होती है तथा सभी मनोकामना पूरी हो जाती है। जिस फैक्टरी के मालिक भगवान विश्वकर्मा की जयंती को धूम-धाम से नहीं मनाते उन्हें पूरे साल समस्याओं का सामना करना पड़ता है।



वास्तुशास्त्र के जनक विश्वकर्मा जी से जुड़ी पौराणिक कथाएं :-



1. हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को सृजन का देवता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा जी ने इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका आदि का निर्माण किया था। प्रत्येक वर्ष विश्वकर्मा जयंती पर औजार, मशीनों, औद्योगिक इकाइयों की पूजा की जाती है।



2. भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा जाता है। उन्होंने अपने ज्ञान से यमपुरी, वरुणपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी, पुष्पक विमान, विष्णु का चक्र, शंकर का त्रिशूल, यमराज का कालदण्ड आदि का निर्माण किया।



3. विश्वकर्मा जी ने ही सभी देवताओं के भवनों को भी तैयार किया। विश्वमर्का जयंती वाले दिन अधिकतर प्रतिष्ठान बंद रहते हैं। भगवान विश्वकर्मा को आधुनिक युग का इंजीनियर भी कहा जाता है।



4.एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रहा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रहा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नाम स्त्री से हुआ।



5.वास्तुशास्त्र के जनक विश्वकर्मा
धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था। वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तुशास्त्र में महारथ होने के कारण विश्कर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ। 



6.भगवान विश्वकर्मा के जन्म से जुड़ा प्रसंग



एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रहा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रहा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह वस्तु नाम स्त्री से हुआ। धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण थे। वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तुशास्त्र में महारथ होने के कारण विश्कर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ।


7 .सबसे बड़े पुत्र मनु ऋषि
भगवान विश्वकर्मा के सबसे बड़े पुत्र मनु ऋषि थे। इनका विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना के साथ हुआ था। इन्होंने ही मानव सृष्टि का निर्माण किया। विष्णुपुराण में विश्वकर्मा को देवताओं का देव बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया ह। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। विश्वकर्मा इतने बड़े शिल्पकार थे कि उन्होंने जल पर चलने योग्य खड़ाऊ तैयार की थी।


विश्वकर्मा पूजा का महत्व


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संसार में जो भी निर्माण या सृजन कार्य होता है, उसके मूल में भगवान विश्वकर्मा विद्यमान होते हैं। उनकी आराधना से आपके कार्य बिना विघ्न पूरे हो जाएंगे। बिगड़े काम भी बनेंगे।


कौन हैं भगवान विश्वकर्मा


वास्तुदेव तथा माता अंगिरसी की संतान भगवान विश्वकर्मा हैं। वे शिल्पकारों और रचनाकारों के ईष्ट देव हैं। उन्होंने सृष्टि की रचना में ब्रह्मा जी की मदद की तथा पूरे संसार का मानचित्र बनाया था। भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग लोक, श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका, सोने की लंका, पुरी मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियों, इंद्र के अस्त्र वज्र आदि का निर्माण किया था। ऋगवेद में उनके महत्व का पूर्ण वर्णन मिलता है।


पूरे ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता हैं विश्वकर्मा


हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया है। पौराणिक युग में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों को भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था जिसमें 'वज्र' भी शामिल है। जो भगवान इंद्र का हथियार था. वास्तुकार कई युगों से भगवान विश्वकर्मा को अपना गुरु मानते हुए उनकी पूजा करते आ रहे हैं।