प्राकृतिक खेती बेरोजगारी दूर करने का सशक्त माध्यम
किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है
मंडल स्तर पर होगा फसलों के प्रमाणीकरण का कार्य
6 जिलों में फसलों के प्रमाणीकरण हेतु लैब की विधाप्राकृतिक खेती का रकबा बढ़ाने पर जोर
कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम
भारत में खेती की इस पद्धति को 'ऋषि खेती' कहते हैं
त्रिनाथ कुमार शर्मा
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कृषि के विकास तथा किसानों की खुशहाली के लिए कृतसंकल्पित हैं। इसके दृष्टिगत प्रदेश में किसानों के हित से जुड़ी अनेकों योजनाएं संचालित की जा रही हैं। किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोवंश आधारित जीरो बजट प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन हो और आय बढ़ सकें। जीरो बजट खेती किसान की आय दोगुनी करने का सबसे सस्ता माध्यम है। प्रदेश में निराश्रित गोवंश आश्रयस्थलों को गौ आधारित प्राकृतिक कृषि एवं अन्य गौ उत्पादों के प्रशिक्षण केंद्र में विकसित करने की योजना है। बुंदेलखंड को जीरो बजट खेती के मुख्य केंद्र में रूप में विकसित किया जाएगा, जिससे पूरे क्षेत्र का आर्थिक विकास कृषि के माध्यम से संभव हो सकेगा। प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए इसे कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल करने की भी योजना है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है।
प्राकृतिक खेती जापान के किसान एवं दार्शनिक फुकुओका (1913–2008) द्वारा स्थापित कृषि की पर्यावरणरक्षी पद्धति है। फुकुओका ने इस पद्धति का विवरण जापानी भाषा में लिखी अपनी पुस्तक 'सिजेन नोहो' में किया है। इसलिए कृषि की इस पद्धति को 'फुकुओका विधि' भी कहते हैं। इस पद्धति में 'कुछ भी न करने' की सलाह दी जाती है जैसे जुताई न करना, गुड़ाई न करना, उर्वरक न डालना, कीटनाशक न डालना, निराई न करना आदि। भारत में खेती की इस पद्धति को 'ऋषि खेती' कहते हैं।
भारत में खेती की इस पद्धति को 'ऋषि खेती' कहते हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की अधिकांश आबादी आजीविका के लिए कृषि पर आधारित है। कृषि क्षेत्र से ही सबसे ज्यादा रोजगार मिलता है।
गोवंश आधारित खेती
प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है। गोबर, गौमूत्र और कुछ कृषि उत्पादों को मिलाकर बनने वाले जीवामृत और घनजीवामृत में जमीन को उपजाऊ बनाने और फसल को पोषण देने की पर्याप्त क्षमता होती है।मुख्यमंत्री योगी का गौ प्रेम जग जाहिर है। प्रदेश में 5 लाख से अधिक गोवंश की जियो टैगिंग की गयी है तो 4.76 लाख से अधिक निराश्रित गोवंश की देखभाल जा रही है। निराश्रित गायों के पालन-पोषण के लिए गोपालकों को प्रति माह प्रति गाय 900 रुपए की सहायता राशि प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। गोकशी और गोवंश से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 लागू है। अध्यादेश के तहत 10 वर्षों तक का कठोर कारावास और 5 लाख तक का जुर्माने का प्रावधान है। देसी गायों के पालन और उनके गोबर के इस्तेमाल से बेहतर खेती की जा सकती है और 90 प्रतिशत तक पानी बचाया जा सकता है। ऐसे में सूखे का दंश का झेलने वाले बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती किसी वरदान से कम नहीं साबित होगी।
धीमे जहर से मिलेगी मुक्ति
खेतों में रसायनों के अधिक प्रयोग अधिक पानी की आवश्यकता होती है, लगातार रासायनिक खाद के उपयोग से उपजाऊ भूमि के उपज क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव अलग पड़ता है। रासायनिक खाद से उपजे अनाज से हमारे अंदर कहीं न कहीं धीमा जहर भी पहुंच रहा है। इससे लोग तरह-तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। अगर स्वास्थ्य जीवन की ओर उन्मुख होना है, तो भी प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करना ही होगा। मोदी सरकार 2.0 के पहले बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों की आर्थिक हालत में सुधार के लिए कई कदम उठाए जाने का ऐलान किया था, जिसमें जीरो बजट खेती मुख्य बिन्दु था। जीरो फार्मिंग के जरिए कृषि के पारंपरिक और मूलभूत तरीके पर लौटने पर जोर दिया जा रहा है। जीरो बजट फार्मिंग में किसान जो भी फसल उगाएं उसमें फर्टिलाइजर, कीटनाशकों के बजाय किसान प्राकृतिक खेती करेंगे। इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़ और मिटटी से बने खाद का इस्तेमाल किया जाता है।
कम खर्च में अधिक पैदावार
जीरो बजट खेती का उद्देश्य किसानों को कर्ज के जाल से बाहर निकालना है। उन्हें महंगे बीज, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की खरीद के चंगुल से मुक्त कराना है। किसान प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कर खेती इसमें उनकी आत्मनिर्भरता है। जीरो बजट खेती में खेतों की सिंचाई, मड़ाई और जुताई का सारा काम गोवंश की मदद से किया जाता है, जिसकी वजह से किसी भी प्रकार के डीजल या ईंधन वाले वाहनों की जरूरत नहीं होती। कम लगात लगने में खेती करने पर किसानों को फसलों पर अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। सोने पे सुहागा यह है कि इस विधि से जो भी फसल उगाई जाती है वह सेहत के लिए काफी लाभदायक होती है, क्योंकि इसे उगाने के लिए के लिए किसी भी तरह के रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस तकनीक से खेती करने में फसलों की पैदावर कम होती है तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इन विशेषताओं के कारण योगी सरकार प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही है।
गंगातट के 1038 ग्राम पंचायतों में व्यापक रूप से प्राकृतिक खेती
27 जिलों, 21 नगर निकाय, 1038 ग्राम पंचायतों और 1648 राजस्व ग्रामों में आयोजित गंगा यात्रा के दौरान प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों को विशेष रूप से जागरूक किया गया। गंगा के तटवर्ती दोनों ओर नमामि गंगे परियोजना के तहत व्यापक रूप से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। पहले चरण में 1038 ग्राम पंचायतों में मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा रहे हैं, जो गांवों में जाकर किसानों को गो आधारित खेती का प्रशिक्षण देंगे। गंगा किनारे गंगा मैदान, गंगा उद्यान, गंगा वन तथा गंगा तालाब को विकसित किया जा रहा है, जो प्राकृतिक खेती के लिए काफी सहायक होंगे। वहीं, गंगा नर्सरी के माध्यम से किसानों को मुफ्त में फूल तथा फलों वाले पौधे वितरित की योजना है। तटवर्ती ग्रामवासियों को प्राकृतिक खेती व अपने खेतों की मेड़ों पर लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। गोवंश आधारित जीरो बजट खेती के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी समय-समय पर आयोजित किए जा रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से न सिर्फ प्राकृतिक कृषि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, बल्कि अधिक से अधिक किसानों को इसके प्रति प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती का रकबा बढ़ाने का है। प्राकृतिक कृषि उत्पाद मूल्यों का उचित मूल्य मिल सकें, इसके लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश के 6 जिलों लखनऊ, वाराणसी, मेरठ, गोरखपुर, आगरा और झांसी में प्राकृतिक उत्पादों के प्रमाणीकरण हेतु लैब की सुविधा भी जल्द उपलब्ध करायी जाएगी। प्राकृतिक खेती की फसलों के प्रमाणीकरण का कार्य मंडल स्तर पर मंडी परिषद द्वारा किया जाएगा।
कृषि ऋषि पद्मश्री सुभाष पालेकर ने बताया कि देशी गाय के गोबर मूत्र में ही वह सूचना जीवाणु होते हैं जो पौधे को भोजन निर्माण में मदद करते हैं उन्होंने कहा कि देसी गाय क दिन में 11 किलो गोबर देती है साथ ही दो लीटर मूत्र देती है कम दूध देने वाली गाय का गोबर मूत्र ज्यादा प्रभावी होता है। उन्होंने बताया जो गाय बच्चा वह दूध नहीं देती वह खेती के लिए सर्वोत्तम होती हैं ऐसे में प्राकृतिक खेती अपनाकर अन्ना गायों की समस्या से भी निजात पाया जा सकता है क्योंकि हर किसान को ऐसी गायों की जरूरत होगी। पालेकर ने कहा की देसी गाय के गोबर मूत्र आज से ही जीवामृत बनाकर और खेत में डालकर जो किसान प्राकृतिक खेती करना चाहते हैं उन्हें यह जानकारी होना चाहिए कि जीवामृत बनाने में ताजा गोबर ज्यादा अच्छा होता है उन्होंने जीवामृत बनाने की विधि का विस्तार से वर्णन किया। आने वाले समय में जहां हर ओर रोजगार घट रहे हैं ऐसे में कृषि क्षेत्र ही ऐसा क्षेत्र बचेगा जहां रोजगार सृजित होते रहेंगे ऐसे में शून्य लागत प्राकृतिक खेती से देश की रोजगार की समस्या हल की जा सकती है। उन्होंने बताया कि शून्य लागत खेती की ओर लोग लाखों रुपए की नौकरी छोड़कर आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती से 8 लाख प्रति एकड़ आसानी से पैदा किया जा सकता है यह धनराशि और भी ज्यादा हो सक।