क्या योगी के संकटमोचक बन पाएंगे नवनीत सहगल ?

क्या योगी के संकटमोचक बन पाएंगे नवनीत सहगल ?



सीएम योगी ने अवनीश अवस्थी के कतर दिए  पर 


योगी के सत्ता में आने के बाद नवनीत सहगल पर कार्रवाई की तलवार लटकती रही


जब मीडिया खूटे से उखड़ कर बेलगाम सी हो जाता है और इसे संभालना जटिल होता है


 


लखनऊ । माना जा रहा है कि मीडिया प्रबंधन की लचर स्थिति को देखते हुए अवनीश अवस्थी से सूचना विभाग छीनकर इसकी जिम्मेदारी नवनीत सहगल को दी गयी है। सहगल के पास सूचना विभाग हैंडल करने का लंबा चौड़ा अनुभव है। वे मुलायम, मायावती और अखिलेश के कार्यकाल में सूचना विभाग के सर्वेसर्वा रह चुके हैं। योगी के सत्ता में आने के बाद नवनीत सहगल पर कार्रवाई की तलवार लटकती रही। उन्हें काफी समय तक साइडलाइन रखा गया। बाद में उन्हें महत्वहीन विभाग दिया गया। अब उन पर योगी सरकार ने भरोसा जता दिया है। नवनीत सहगल तेजतर्रार अफसर माने जाते हैं। लखनऊ-नोएडा एक्सप्रेसवे के रिकार्ड समय में उच्च गुणवत्ता के साथ निर्माण का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने पहले की सरकारों में कई सफल उद्योगपति सम्मेलन कराकर प्रदेश में पूंजीनिवेश करा चुके हैं।  1988 बैच के आईएएस अफसर नवनीत सहगल के उत्तर प्रदेश का नया अपर मुख्य सचिव सूचना बनने से पत्रकारों में खुशी का माहौल है। नवनीत सहगल ने 1987 बैच के आईएएस अधिकारी अवनीश अवस्थी की जगह ली है। अप्रैल 2017 में अवस्थी ने सहगल से इस पद का चार्ज लिया था।नवनीत सहगल के पास पहले से जो दो विभाग हैं, वे बने रहेंगे। वे खादी और लघु उद्योग विभाग के प्रमुख हैं।


कांग्रेस के सत्ता वनवास के बाद करीब ढाई दशक से अधिक समय से यूपी में सपा, बसपा और भाजपा की सरकारें बनती रहीं। 1988 के बैच के आईएएस नवनीत सहगल की योग्यता को सबसे पहले बसपा सुप्रीमों मायावती ने परखा। बहन जी ने अपने कार्यकाल में श्री सहगल को शंशाक शेखर के बाद दूसरा सार्वधिक भरोसेमंद अफसर माना। पिछली सपा सरकार में अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में नवनीत सहगल को बड़ी जिम्मेदारियां दीं। सूचना/मीडिया संभालने की जिम्मेदारी के साथ अखिलेश सरकार ने ड्रीम प्रोजेक्ट साकार करने का दायित्व दिया। और अब ये हरदिल अज़ीज़ अफसर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अज़ीज बनते जा रहे हैं। यूपी सरकार ने इन्हें मीडिया संभालने की अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी है। आमतौर से ये दायित्व काफी ठोक-बजा कर किसी योग्य और भरोसेमंद आलाधिकारी को दिया जाता है।


सरकार के कार्यकाल का अंतिम लगभग डेढ़ वर्ष का कार्यकाल सूचना और प्रचार-प्रसार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। किये गये तमाम जनकल्याणकारी कार्यों, योजनाओं और उपलब्धियों को जनता तक पंहुचाने का लक्ष्य होता है। पिछले दौर पर ग़ौर कीजिए तो पता चलेगा कि सरकार का अंतिम एक-डेढ़ वर्ष वो समय होता है जब मीडिया खूटे से उखड़ कर बेलगाम सी हो जाता है और इसे संभालना जटिल होता है।


उत्तर प्रदेश का एक अलग सियासी मिजाज़ है। किसी भी सरकार के अंतिम बरस में सो रहा विपक्ष भी जाग जाता है। विरोधी ऊर्जा के साथ सक्रिय होने लगता है। सियासी कारसतानियों से धर्म या जातिवाद के दानव का क़द बढ़ने लगता है। प्रशासन के नाकारेपन की नुमाइश में कानून व्यवस्था से जनता नाखुश होने लगती है। और इन सब में कभी आग तो कही घी बनकर मीडिया छुट्टे सांड की तरह खूटे से अलग हो जाता है। सरकार के हाथों से इसकी लगाम छूट जाती है।
ऐसे समय में बहुत सोच समझ कर और परख कर ही मुख्यमंत्री योगी ने नवनीत सहगल को मीडिया संभालने की जिम्मेदारी दी होगी। उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी के तहत एसीएस सूचना विभाग बनाया गया है।


 इधर कुछ चंद दिनों से टीआरपी को लेकर टीवी चैनल्स की जंग का एक पहलू सरकार को हलकान कर रहा है। सब कुछ ठीक चल रहा था। देश के मूड की तरह मीडिया का मिजाज़ था और मीडिया का ख्याल और बड़ी आबादी के विचार एक दूसरे का समर्थन कर रहे थे। इसलिए गाड़ी स्मूथली चल रही थी। जब पटरी चिकनी हो, पहिये ग्रीस से तरबतर हों तो तेज़ी से दौड़ती गाड़ी की आवाज़ में किसी रेप पीड़िता की सिसकियां तक नहीं सुनाई देतीं। बेरोजगारी, मंहगाई और कुव्यवस्था की पीड़ा की आवाज़ बुलंद नहीं हो पाती। असंतोष भी छूत की बीमारी जैसा होता है। मीडिया मैनेजमेंट इसे दबा दे तो ये अपना दायरा नहीं बढ़ा पाता। अधिकांश जनता के बीच में मोदी-योगी की लोकप्रियता सिर चढ़ कर बोलती है। जनता इनकी सरकारों पर भरोसा करती है और कमियों को नजरअंदाज करना पसंद करती है। इसलिए सरकार का एजेंडा या भाजपा के विचारों को अपनाकर राष्ट्रीय चैनलों में टीआरपी हासिल करने की होड़ लग गयी। केंद्र की मोदी सरकार के साथ योगी सरकार के लिए भी ये सब सुखद था।


 


क्यों शुरू हुई  मीडिया वार 


 


एक मामूली टीवी चैनल रिपब्लिक भारत ने सरकारी एजेंडे की लाइन पर इतनी शिद्दत और जुनून से काम किया कि वो नंबर वन टीआरपी हासिल करने में कामयाब हो गया। और जो आजतक चैनल दशकों से नंबर वन की टीआरपी पर स्थापित था वो पिछड़ गया। ये बेहद बड़ा झटका था। नंबर वन की पोजीशन छिनने से आजतक घबरा गया। ये चैनल पिछले दो दिनों से सरकार को घेरने वाली खाली आलोचनात्मक स्पेस को हासिल करके दुबारे नंबर वन होने का प्रयोग कर रहा है। आजतक चैनल जिस पर कल गोदी मीडिया का आरोप लगता था वो भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रामक हो गया। यूपी के हाथरस मामले को निर्भया कांड जैसा बनाने में आजतक कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।


पहले एनडीटीवी एवं किसी हद तक न्यूज 24 जैसे कुछ राष्ट्रीय और भारत समाचार जैसे एक/दो क्षेत्रीय चैनल केंद्र को नहीं बख्शते थे। लेकिन नब्बे फीसद चैनल सरकार का एजेंडा फॉलो करते नज़र आते थे। सरकार की नाकामियों और सवाल उठाने वाली खबरों को दबाने के लिए गैर जरूरी मुद्दों को न्यूज और डिबेट का हिस्सा बनाया जाता रहा है। कहा जाता रहा है कि यूपी की तमाम सरकारों में होनहार समझे जाने वाले सदाबहार वरिष्ठ आईएएस नवनीत सहगल की मीडिया में अच्छी पकड़ है। वो मीडिया मैनेजमेंट में माहिर हैं। बेलगाम से हो चले आजतक और अन्य राष्ट्रीय टीवी चैनलों को यूपी का ये अफसर संभाल पाता है या नही ये तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन ये दिलचस्प बात है कि सहगल की एहमियत की सहालग के दिन हर सरकार में देखने को मिलते हैं।